जब-जब मैं सुनता हूं कि फलां बड़े नेता की बात उसकी संतान नहीं सुन रही है तो मुझे निम्नलिखित कविता याद आ जाती है।
पहला सुख निरोगी काया,
दूसरा सुख पास में माया।
तीसरा सुख सुलक्षणा नारी,
चौथा सुख पुत्र आज्ञाकारी।।
हालांकि पुत्र को आज्ञाकारी बनाने की पहली शर्त यह है कि खुद पिता नैतिक धाक वाला हो।
गांव में कभी सुना था,
बढ़े पुत्र पिता के धर्मे,
खेती उपजे अपना कर्मे।
पहला सुख निरोगी काया,
दूसरा सुख पास में माया।
तीसरा सुख सुलक्षणा नारी,
चौथा सुख पुत्र आज्ञाकारी।।
हालांकि पुत्र को आज्ञाकारी बनाने की पहली शर्त यह है कि खुद पिता नैतिक धाक वाला हो।
गांव में कभी सुना था,
बढ़े पुत्र पिता के धर्मे,
खेती उपजे अपना कर्मे।
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