गुरुवार, 18 जुलाई 2019

--अल कायदा की धमकी के बाद नेपाल सीमा पर अधिक चैकसी जरूरी--सुरेंद्र किशोर



इसी साल फरवरी में यह खबर आई थी कि बिहार से सटी नेपाल सीमा पर सशस्त्र सीमा बल ने अपनी चैकसी कई गुणा बढ़ा दी है।
 घुसपैठ और नशीली पदार्थों की तस्करी रोकने के लिए ऐसा किया गया।
पर ‘अल कायदा’ की हाल की धमकी के बाद अब सीमा पर खुफिया तंत्र को भी अधिक सशक्त और सक्रिय करने की जरूरत है।सीमावर्ती पुलिस थानों के प्रभारियों को भी चाहिए कि वे देशभक्त होकर अपनी ड्यूूटी निभाएं जिस तरह भारतीय सेना निभाती है।  
गत माह एक उच्चस्तरीय बैठक में मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने  अन्य बातों के अलावा यह भी कहा था कि बिहार पुलिस के स्पेशल ब्रांच के खुफिया तंत्र को और मजबूत करने की जरूरत है।
वैसे स्पेशल ब्रांच में मानव संसाधन बढ़ाने की भी जरूरत पड़ेगी।
वैसे केंद्रीय खुफिया  एजेंसी एस.आई.बी. भी समानांतर ढंग से अपना काम करती रहती है।
  इस बीच अंतरराष्ट्रीय आतंकी व जेहादी संगठन ‘अल कायदा’ के प्रमुख जवाहिरी ने भारत के सरकारी ठिकानों और सेना पर हमला करने की धमकी देकर हमें अधिकाधिक सतर्क रहने का अवसर दे दिया है। 
  --कड़ी जांच परीक्षा के बिना
 ड्राइविंग लाइसेंस देना घातक-- 
दिल्ली में स्वचालित ड्राइविंग लाइसेंस टेस्ट के तीन केंद्र 
खोले गए हैं।
जांच के इस नए तरीके से स्वचालित जांच में शामिल हुए करीब 49 प्रतिशत ड्राइवर फेल कर गए।
  पहले जब परंपरागत तरीके से जांच होती थी तो करीब 16 प्रतिशत आवेदनकत्र्ता ही असफल होते थे।
 याद रहे कि दिल्ली में हर साल 2000 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं।इनमें से अधिकतर मामलों में चालकों की ही गड़बड़ी पाई जाती है।
  इधर बिहार में तो स्वचालित ड्राइविंग जांच परीक्षा का अभी  प्रावधान ही नहीं है।
  यहां तो अधिकतर जिलों में डी.टी.ओ.आॅफिस के दलाल किसी भी तरह की जांच के बिना ही स्थायी ड्राइविग लाइसेंस भी दिलवा देते हैं।
कुछ दशक पहले धनबाद डी.टी.ओ.आॅफिस ने लिट्टे के प्रधान प्रभाकरण के नाम भी डी.एल.जारी कर दिया था।
  याद रहे कि 2015 के आंकड़े के अनुसार बिहार में करीब 5000 लोग सड़क दुर्घटना में मरे थे।अब तो वह आंकड़ा और भी बढ़ गया है। 
क्या बिहार में भी आॅटोमेटेड ड्राइविंग लाइसेंस टेस्ट केंद्र खोलने का अवसर नहीं आ चुका है ?  
--लोहिया नगर कब तक 
रहेगा कंकड़बाग !--
मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि पटना के बेली रोड को अब ‘नेहरू पथ’ के नाम से  जाना जाएगा।
 वैसे बहुत पहले उसका नाम पड़ गया था -जवाहर लाल नेहरू पथ।
पर,चार शब्दों के उच्चारण में लोगों को दिक्कत आती है।इसलिए वह बेली रोड ही कहा जाता रहा है।
अब शायद ‘नेहरू पथ’ प्रचलन में आ जाए।
  पर यही फार्मला गार्डिनर रोड पर लागू नहीं हो सकता।
उसका नाम पड़ा है वीरचंद पटेल पथ।
उसे यदि पटेल पथ कहा जाने लगे तो कई लोगों को  उससे  
सरदार पटेल का बोध होने लगेगा।
  पर आश्चर्यजनक बात है कि पटना के कंकड़बाग को आज भी लोहिया नगर नहीं कहा जाता।जबकि सन 1967 में यह नाम पड़ गया था।
मौजूदा शासन को चाहिए कि वह लोहिया नगर में जगह-जगह लोहिया नगर का बोर्ड लगवा दे ।
शायद नई पीढ़ी की जुबान पर वह नाम भी चढ़ जाए !
--नल -जल योजना से जुड़ी
 है सरकार की छवि-- 
बिहार सरकार की नल जल योजना को भारत सरकार ने भी अंगीकार कर दिया है।
पूरे देश में इस योजना को लागू किया जाना है।
पर, दोनों  सरकारों को इस बात को ध्यान में रखना होगा कि
इस योजना के साथ उनकी साख भी जुड़ी हुई है।
कहीं ऐसा न हो कि नल के जल के साथ सरकारी भ्रष्टाचार
की अविरल धारा की जानकारी घर -घर न पहुंच जाए !
  जिस तरह इस देश में सरकारों की लगभग हर योजना में भ्रष्टाचार का दीमक लगा हुआ है,उससे यह योजना अछूती कैसे रहेगी ?हालांकि प्रयास करके अछूती रखी जानी चाहिए।
बिहार में तो कई जगहों से यह खबर मिलनी शुरू भी हो गई है कि घटिया पाइप लगाए जा रहे हैं।
 यदि यह खबर सही है तो उसका घर- घर में क्या असर होगा ?
इसलिए कंेद्र और राज्य सरकारों को चाहिए कि इस योजना की वे सोशल आॅडिट कराते जाएं ताकि घर -घर में सरकार की बेहतर छवि बने।वैसे बिहार सरकार के संबंधित मंत्री विनोद नारायण झा ने वादा किया है कि इस योजना पर पूरी नजर रखी जाएगी।  
--और अंत में--
 खनन घोटाले के सिलसिले में 
 सी.बी.आई.ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और चार आई.ए.एस.अफसरों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है।
इस मामले में एक पूर्व मुख्य मंत्री भी देर-सवेर जांच के लपेटे में आ सकते हैं।
 हाल के दशकों में सरकारी-गैर सरकारी भ्रष्टाचार और घोटालों के सिलसिले में कई नेता,अफसर और व्यापारी जेल गए।कुछ जेल यात्रा के कारण ही मरे भी।
कुछ अन्य अब भी मुकदमों का सामना कर रहे हैं ।या जेल में सड़ रहे हैं।
कुछ दल व परिवार बर्बाद भी हो रहे हैं।
संकेत साफ हंै कि अगले चार -पांच साल के भीतर इस देश की  अन्य अनेक बड़ी हस्तियां जेल की हवा खाने वाली हैं।
इसके बावजूद प्रभावशाली लोगों में अपार धन की हवस कम ही नहीं हो रही है।
आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? क्या भ्रष्टाचार निरोधक कानून नाकाफी हैं ? या, सजा की दर कम है ? 
--12 जुलाई 2019 को प्रभात खबर-बिहार- में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से--  

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