बुधवार, 17 जुलाई 2019

    घुसपैठियों को भगाओ,
    अब नहीं तो कभी नहीं,
   भारत की अर्थ व्यवस्था पर बोझ कम करो,
    मोदी सरकार की अग्नि परीक्षा
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देश के गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि ‘देश की  इंच -इंच जमीन पर जितने भी घुसपैठिए रह रहे हैं,उन्हें देश से बाहर करेंगे।’
दरअसल यह काम बहुत पहले हो जाना चाहिए था।
लेकिन इस देश के अनेक वोट लोलुप नेताओं व दलों ने ऐसा नहीं होने दिया।
उन लोगों घुसपैठियों को खुली  सीमा के जरिए प्रवेश दिलवा कर उन्हें यहां जहां -तहां बसाया और उनके वोटर कार्ड 
बनवाए। 
उम्मीद है कि मोदी सरकार 2024 तक उन्हें यहां से निकाल बाहर करने का यह शुभ कार्य कर देगी।
 किस तरह कुछ खास दलों व अफसरों ने घुसपैठियों  की समय- समय पर मदद की,उसके दो  उदाहरण पेश हंै।
 वैसे उदाहरण तो बहुत हैं।
कुछ दशक पहले एक टी.वी.डिबेट सुन रहा था।
एक तरफ नेहरू युग के एक चर्चित आई.एफ.एस. अफसर थे तो दूसरी तरफ एक शिव सेना के एक सांसद।
  शिव सेना नेता ने कहा कि बंगला देश की सीमा पर मजबूत बाड़ लगाई जानी चाहिए।
उस पर उस अफसर ने कहा कि बाड़ लगाने से पूरी दुनिया में भारत की छवि खराब हो जाएगी।
उस पर शिव सेना नेता ने कहा कि आप भारत के विदेश सचिव थे या बंगला देश के ? 
वे चुप हो गए।
   एक दूसरा उदाहरण सुनिए।
नब्बे के दशक में मैं एक तथाकथित सेक्युलर पार्टी के लोक सभा उम्मीदवार के साथ पूर्वोत्तर इलाके के एक चुनाव क्षेत्र में घूम रहा था।वह अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं।
  एक गांव में दूर- दूर ताजी फूस की सैकड़ों झोपडि़यां में बंगला देशियों को अवैध ढंग से बसाया गया था।
उम्मीदवार हर झोपड़ी के सामने जाता था।कहता था कि आप लोग निश्चिंत रहिए।आपको यहां से कोई नहीं भगाएगा।
पता चला कि वे वोटर भी बना दिए गए थे।
क्या दुनिया के किसी अन्य देश में यह संभव है कि वोट के लिए करोड़ों घुसपैठियों को अपने देश में वहां के सत्ताधारी राजनीतिक दल ही बसा दे ?
पर यहां तो यह भी संभव है कि ऐसे पोस्ट लिखने पर कुछ लोग घुसपैठियों के पक्ष में तर्क देने लगें।
     
   


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