शनिवार, 20 जुलाई 2019

विभिन्न जांच एजेंसियों के मामलों में सजा दर में भारी अंतर क्यों ?



एन.आई.ए.,सी.बी.आई. और राज्य पुलिस के मामलों में अदालती सजा दर में भारी अंतर रहता है।आखिर ऐसा क्यों है ?
क्या इस अंतर को कम नहीं किया जा सकता ?
यदि कम किया जा सकता है तो किस हद तक ?
 ताजा जानकारी के अनुसार एन.आई.ए.यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी का कन्विक्शन रेट 92 प्रतिशत है।
 यह लगभग अमेरिका की सजा दर के बराबर है।
आदर्श स्थिति तो जापान में है जहां 98 प्रतिशत मामलों में अभियोजन को अदालतों में कामयाबी मिल जाती है।
सी.बी.आई.जिन मामलों की तहकीकात करती है,उनमंे से सिर्फ 65 प्रतिशत मुकदमों में ही वह अदालतों से सजा दिलवा पाती है।
सबसे खराब स्थिति राज्य पुलिस की है।सजा दिलाने का उसका राष्ट्रीय औसत मात्र 45 प्रतिशत है।
यानी इस देश के 55 प्रतिशत आरोपित अदालतों से बच जाते हैं।
पर बिहार पुलिस  तो सिर्फ 10 प्रतिशत मामलों में ही आरोपितों को सजा दिलवा पाती है।
ऐसे में कानून -व्यवस्था की स्थिति कैसी रहेगी,उसका अंदाजा कोई भी आसानी से लगा सकता है।
 हां, केरल पुलिस 77 प्रतिशत मुकदमों में सजा दिलवा देती है।
क्या केरल पुलिस पर काम का बोझ बिहार की अपेक्षा 
कम है ?
    इन सब बातों का विधिवत तुलनात्मक अध्ययन होना चाहिए।अध्ययन से जो सूचनाएं मिले , उनके आधार पर राज्य पुलिस की कार्य प्रणाली में भरसक सुधार किया जा सकता है।
  जिस राज्य में 90 प्रतिशत आरोपित अदालतांे से बरी हो जाते हों,वहां के आम लोग किस तरह के खौंफ में जीते हैं,उसका अंदाज लगाना कठिन नहीं है।
इस स्थिति को जल्द से जल्द बदलने की जरूरत है।
वैसे तो एन.आई.ए. के पास जांच कार्य के लिए कई तरह की ऐसी सुविधाएं उपलब्ध हैं जो राज्य पुलिस के पास नहीं हैं।पर क्या सिर्फ यही बात है ?
--जल संकट के मुकाबले 
 का एक उपाय यह भी-- 
 जैसा भीषण जल संकट इस साल लोगांे ने चेन्नई में झेला, वैसा ही संकट दो -तीन साल में देश के अन्य नगरों को भी झेलना पड़ सकता है।
पटना का भूजल स्तर भी तेजी से नीचे जा रहा है।
बिहार की राजधानी पर आबादी के बढ़ते दबाव के कारण भी जल संकट बढ़ रहा है।और अधिक बढ़ने वाला है।
पर, प्रस्तावित 160 किलोमीटर लंबी पटना रिंग रोड जल संकट को कम करने में मदद कर सकती है।
  जाहिर है कि इस रिंग रोड के बन कर तैयार हो जाने के बाद पटना पर आबादी का बोझ बढ़ना न सिर्फ कम होगा,बल्कि घट सकता है।
  क्योंकि पटना के अनेक लोग
जो किराए के मकानों में रहते हैं,वे अपेक्षाकृत सस्ती जमीन खरीद कर गंगा पार बस सकते हैं।
अनेक लोग वहां जमीन खरीद भी रहे हैं।
 हैदराबाद के रिंग रोड के किनारे बड़ी संख्या में लोग बसे हैं।
 इसलिए प्रादेशिक राजधानी में बढ़ते प्रदूषण और आशंकित जल संकट को कम करना हो तो प्रस्तावित पटना रिंग रोड का निर्माण प्राथमिकता के आधार पर करना होगा।
 तमिलनाडु सरकार ने एक बड़े उपाय पर काम शुरू कर दिया है।        
 जल समस्या से सबक सीखते हुए तमिलनाडु सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष में 10 हजार चेक डैम बनाने के लिए 312 करोड़ रुपए का आवंटन भी कर दिया है।
और इधर हम ऐसी छोटी योजनाओं के लिए अपने राज्य के सरकारी  इंजीनियरों को राजी नहीं कर पा रहे हैं।तो फिर हम रिंग रोड जैसी बड़ी योजना तो जल्द ही पूरी तो करवा ही सकते हैं।
अभी गंगा पार उतना जल संकट नहीं है जितना पटना में है।   
    --बिना अधिग्रहण रैयती
   जमीन पर सड़क क्यों ?--
 केंद्र सरकार की ताजा घोषणा के अनुसार प्रधान मंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तीसरे फेज के तहत देश में सवा लाख किलोमीटर सड़कों का निर्माण होगा।
उस पर 80 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे।
 यह तो बड़ी अच्छी खबर है।
  पर  इस योजना मंे शुरू से ही एक भारी कमी महसूस की जाती रही है।
 इस योजना के तहत जमीन के अधिग्रहण का कोई प्रावधान ही नहीं है।
पहले से मौजूद कच्ची सड़कों और आहर आदि  को इस योजना में शामिल कर लेने का प्रावधान रहा है।
जहां जमीन की कमी पड़ी,वहां भूस्वामी की अनुमति से उसकी रैयती जमीन पर सड़क बना दी गई।
कहीं सहमति के बिना भी जबरन कब्जा हो गया।ध्यान रहे कि अनेक ठेकेदार इलाके के दबंग व्यक्ति ही होते हैं।कौन कमजोर व्यक्ति उन भूस्वामियों से पंगा लेगा ?
यदि इस योजना के तहत निर्मित कोई सड़क नदी या बाढ़ के  कटाव से लुप्त हो गई तो कई बार विभाग बगल के किसान की रैयती जमीन पर सड़क जबरन बना देता है।
 यदि कोई किसान कोर्ट जाता है तो विभाग कह देता है कि हम क्या करें ?
इस योजना में भूमि अधिग्रहण के लिए पैसे का तो कोई प्रावधान ही नहीं है।
फिर  अदालत उस सड़क को उजाड़ने का आदेश दे देती है।
  भोज पुर जिले में एक पूर्व केंद्रीय मंत्री की जमीन पर बनी सड़क पटना हाई कोर्ट के आदेश से कुछ साल पहले उजड़ चुकी है।
  राज्यों के मुख्य मंत्रियों को चाहिए कि वे केंद्र सरकार से कहें कि इस योजना में भी भूमि अधिग्रहण के लिए धनराशि का आवंटन करे। 
          --और अंत में-- 
   केंद्र सरकार ने हाल में बिहार सरकार की नल जल योजना को अपना लिया है।यह बिहार सरकार की उपलब्धि है।
 उधर दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने एक अच्छी योजना शुरू की है।वह है सरकारी प्राथमिक शालाओं में सी.सी.टी.वी.कैमरे लगाने की योजना।
वहां के स्कूल में क्या हो रहा है,बच्चों के अभिभावक अपने मोबाइल पर देख सकेंगे।
  चाहे तो नमूने के तौर पर बिहार सरकार भी अपने यहां कुछ चुने हुए स्कूलों में सीसीटीवी कैमरे लगवा कर उसकी लाभ -हानि का आकलन कर सकती है। 
--19 जुलाई 2019 के प्रभात खबर -बिहार -में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से--



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