रविवार, 28 जुलाई 2019

   अश्लील  फिल्में और भारतीय संस्कृति !
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  भारतीय संस्कृति की  ध्वजवाहक भाजपा के राज में भी गंदी फिल्में बनाने का धंधा जारी है।
यह शर्म की बात है।
भोजपुरी फिल्मों ने तो अश्लीलता के मामले में सारी हदें पार कर दी हंै।अपवादस्वरूप ही अब अच्छी फिल्में बन रही हैं।
इस बीच आदिल हुसेन ने कहा है कि 
‘साठ के दशक में अच्छी फिल्में बना करती थीं।
फिल्मकारों की जिम्मेदारी है कि वे अच्छी फिल्में दें।’
  आर्ट सिनेमा,बाॅलीवुड मेनस्ट्रीम सिनेमा और अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में अपनी पहचान बनाने वाले आदिल ने कहा है कि ‘फिल्मकार यह बहाना न बनाएं कि हम दर्शकों की पसंद की फिल्में बना रहे हैं।’
आदिल का तो आरोप है कि दर्शकों का मूड हम फिल्म मेकर्स ने ही बदला है।
  इधर मेरा मानना है कि फिल्मकार सेंसर के नियमों का पालन भर करें।सेंसर बोर्ड में ईमानदार व निडर लोग ही रखें जाएं। 
 बहुत पहले मैंने उन नियमों को पढ़ा था।
उन नियमों और आज की अधिकतर फिल्मों में कोई तालमेल ही नहीं है।
नियमानुसार तो ‘नदिया के पार’ और ‘बागवान’ जैसी फिल्में ही बन सकती हैं।
  सरकार ने तब से संेसर नियमों को नहीं बदला है।
 क्या यह उम्मीद की जाए कि कम से कम भाजपा की सरकार 
अश्लीलता के इस प्रदूषण को रोकने की कोशिश करेगी ?
यह प्रदूषण पीढि़यों को बर्बाद कर रहा है।



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