बुधवार, 7 अगस्त 2019

1977 में हरियाणा में मंत्री पद संभालने से पहले जेपी 
का आशीर्वाद लेने पटना आईं थीं सुषमा स्वराज
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सुषमा स्वराज और उनके पति स्वराज कौशल आपातकाल में जार्ज फर्नांडिस के वकील थे।
तब जार्ज और उनके साथी बड़ौदा डायनामाइट केस के सिलसिले मंे जेल में बंद थे।
  आपातकाल में किसी सरकार विरोधी राजनीतिक नेता-कार्यकत्र्ता का वकील होना भी बहुत साहस की बात थी।
स्वराज दंपत्ति में वह साहस था।
   जार्ज फर्नांडिस का प्रचार करने सुषमा मुजफ्फर पुर आईं थीं।
उनका भाषण बेजोड़ होता था।इतनी कम उम्र में उतना प्रभावशाली भाषण मैंने पहली बार सुना था।
1977 के विधान सभा चुनाव के बाद सुषमा हरियाणा में 
विधायक बनीं।
उन्हें मंत्री पद की शपथ भी दिलाई गई।उनकी तेजस्विता-योग्यता देखते हुए उन्हें आठ  विभाग मिले थे।
तब तक मैं दैनिक ‘आज’ का संवाददाता बन गया था।
स्वराज कौशल ने मुझे दिल्ली से फोन किया कि आप जेपी से हमारी मुलाकात तय करा दीजिए।
मंत्री पद का कार्य भार संभालने से पहले सुषमा जेपी का आशीर्वाद लेना चाहती हैं।
 स्वराज दंपत्ति नियत समय पर ट्रेन से पटना पहुंचे।
हम तीन उन्हें रिसिव करने के लिए स्टेशन पर थे।
छायाकार कृष्ण मुरारी किशन, मेरे मित्र व सर्चलाइट के संवाददाता लव कुमार मिश्र और मैं।
  सुषमा ने मुझे देखते ही कहा कि बड़ौदा डायनामाइट केस के एफ.आई.आर.में कई जगह आपका नाम आया है।
याद रहे कि आपातकाल में उस केस में मुझे भी सी.बी.आई.बेचैनी से खोज रही थी।पर मैं फरार हो गया था।
खैर हमलोग जेपी के आवास कदम कुआं पहुंचे।
 वहां प्रारंभिक दिक्कत के बाद दंपत्ति की जेपी से मुलाकात हो गई।
  दरअसल जेपी के निजी सचिव सच्चिदानंद इस जिद पर अड़े थे कि जेपी से अशीर्वाद लेने सिर्फ सुषमा ऊपर-यानी पहली मंजिल पर-जाएंगी।
मैंने उनसे देर तक इस बात के लिए बहस की कि उनके पति 
हरियाणा से उनके साथ आए हंै। वे भी समाजवादी आंदोलन के साथी रहे हैं।
ऐसा कैसे होगा कि वे नहीं मिलेंगे ?
 भले हम लोग नहीं मिलें।
खैर किसी तरह स्वराज दंपत्ति जेपी से मिलकर हरियाणा लौट गए।
 दरअसल उनकी बीमारी को ध्यान में रखते हुए जेपी से मुलाकात में कड़ाई बरतना जरूरी था।पर, क्या स्वराज कौशल 
को भी रोकने की कोशिश उचित थी ?
  सुषमा के असामयिक निधन के बाद एक बार फिर एक बात मेरे जेहन में आई।
जो लोग समाज के लिए महत्वपूर्ण हैं,उन्हें अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा पर कुछ अधिक ही ध्यान देना चाहिए।
याद रहे कि अपनी सुरक्षा को नजरअंदाज करने के कारण ही तीन गांधी इस देश में बारी -बारी से हिंसा के शिकार हुए।
 जब मुझसे कम उम्र के लोग गुजर जाते हैं तो मुझे उन पर कुछ अधिक ही गुस्सा आता है।
 मंडल आरक्षण विवाद के समय उनकी भूमिका को छोड़ दें तो  लालू प्रसाद की राजनीतिक और प्रशासनिक शैली मुझे कभी नहीं भाई।
 पर, कुसंयम से उन्होंने जो अपना स्वास्थ्य खराब कर लिया है,उसके कारण उन पर मुझे जरूर गुस्सा आता है।
वे भी मुझसे उम्र में छोटे ही हैं।

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