मोदी सरकार का जन समर्थन बढ़ा
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कश्मीर के सवाल पर आज देश की जन भावना
पूरी तरह केंद्र सरकार के साथ है,ऐसा साफ -साफ लग रहा है।
जिन राजनीतिक दलों के नेतागण संसद में इस सवाल पर मोदी सरकार का विरोध कर रहे हैं ,अपवादों को छोड़कर, उनके अनेक परंपरागत वोटर भी उनके खिलाफ बोल रहे हैं।
बिहार के गांवों से लेकर शहरों तक जहां भी फोन से बात कीजिए ,यही भावना पूर्ण आवाज सुनने को मिल रही है।
लोगों को लगता है कि एक चीज जो पूरी तरह हमारे पास नहीं थी,उसे हासिल करने के लिए केंद्र सरकार खतरा उठा कर काम कर रही है।
गृह मंत्री अमित शाह ने तो आज यह भी कह दिया कि
जम्मू कश्मीर के लिए तो हम जान दे देंगे।
ऐसी ही जन भावना 1977 में बिहार में जय प्रकाश नारायण के प्रति थी।
1990 के मंडल आरक्षण आंदोलन के समय भले गोलबंदी पिछड़ों-अल्पसंख्यकों की ही थी,पर वह व्यापक व सघन थी।
तब जन भावना बिहार में लालू प्रसाद के समर्थन में देखी गई थी।तब भी जो कुछ लोग उस जन उभार को नहीं देखना चाहते थे ,उन्हें नजर नहीं आ रही थी।
हां, गत लोस चुनाव में जिस तरह कई लोग अंत -अंत तक शुतुरमुर्ग बने रहे ,उसी तरह इस बार भी बने रह सकते हैं,उनकी मर्जी !
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कश्मीर के सवाल पर आज देश की जन भावना
पूरी तरह केंद्र सरकार के साथ है,ऐसा साफ -साफ लग रहा है।
जिन राजनीतिक दलों के नेतागण संसद में इस सवाल पर मोदी सरकार का विरोध कर रहे हैं ,अपवादों को छोड़कर, उनके अनेक परंपरागत वोटर भी उनके खिलाफ बोल रहे हैं।
बिहार के गांवों से लेकर शहरों तक जहां भी फोन से बात कीजिए ,यही भावना पूर्ण आवाज सुनने को मिल रही है।
लोगों को लगता है कि एक चीज जो पूरी तरह हमारे पास नहीं थी,उसे हासिल करने के लिए केंद्र सरकार खतरा उठा कर काम कर रही है।
गृह मंत्री अमित शाह ने तो आज यह भी कह दिया कि
जम्मू कश्मीर के लिए तो हम जान दे देंगे।
ऐसी ही जन भावना 1977 में बिहार में जय प्रकाश नारायण के प्रति थी।
1990 के मंडल आरक्षण आंदोलन के समय भले गोलबंदी पिछड़ों-अल्पसंख्यकों की ही थी,पर वह व्यापक व सघन थी।
तब जन भावना बिहार में लालू प्रसाद के समर्थन में देखी गई थी।तब भी जो कुछ लोग उस जन उभार को नहीं देखना चाहते थे ,उन्हें नजर नहीं आ रही थी।
हां, गत लोस चुनाव में जिस तरह कई लोग अंत -अंत तक शुतुरमुर्ग बने रहे ,उसी तरह इस बार भी बने रह सकते हैं,उनकी मर्जी !
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