पिछले जमाने के फिल्म अभिनेता राजेंद्र कुमार को
‘जुबली कुमार’ भी कहा जाता था।
क्योंकि जिस फिल्म में वे आते थे,वह जुबली मनाती थी।
उन्होंने अपने पुत्र कुमार गौरव को भी हीरो बनाना चाहा।
नहीं चले।
गौरव किनारे हो लिए।
उसी तरह राजनीति में कुछ नेता पुत्र नहीं चल पा रहे हैं।
उनके कारण पार्टियां कमजोर होती जा रही हैं।
पर उन्हें ही नया सुप्रीमो बनाए रखने की जिद जारी है।
निर्माताओं -निवेशकों ने तो कुमार गौरव जैसे प्रतिभा विहीन अभिनेताओं पर अपनी पूंजी डुबोने से मना कर दिया था।
पर उसके विपरीत कुछ जमी -जमाई राजनीतिक पार्टियां
नेता पुत्रों-पुत्रियों पर अपनी राजनीतिक पूंजी गंवाने पर अमादा है।
याद रहे कि मैं किसी ‘नेता पुत्र’ के राजनीति में आने के खिलाफ नहीं हूं।
लेकिन यदि वे किसी खास पद के योग्य नहीं हैं तो उन्हें किसी दूसरे काम मंे लगाइए।
योग्य हैं तो जरूर पूरा अवसर दीजिए।
सिंधिया परिवार की ‘ताजी फसल’ जैसों को और अधिक मौका मिले तो भी कोई हर्ज नहीं।
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