-ग्राउंड फ्लोर पार्किंग के बिना शहरों में जाम की समस्या से निजात नहीं-सुरेंद्र किशोर
इन दिनों पटना में सड़कों से अतिक्रमण हटाए जा रहे हैं।
आम लोगों की रोज -रोज की तकलीफें दूर करने की दिशा में यह सराहनीय कदम है।
भले पटना हाईकोर्ट के कड़े निदेश पर ही हो रहा है,पर हो तो रहा है।
इन दिनों सरकार किसी अतिक्रमणकारी की नहीं सुन रही है।
ऐसा ही होना चाहिए।अब सड़कें और भी चैड़ी हांेगी।लोगों का आना-जाना सुगम होगा।
पर एक मूल समस्या की ओर प्रशासन का भी ध्यान नहीं है।
वह है ग्राउंड फ्लोर पार्किंग की स्थायी व्यवस्था करने की जरूरत ।
पटना की मुख्य सड़कों के किनारे बड़े -बडे व्यावसायिक प्रतिष्ठान तो खडे़ कर दिए गए।
पर उन प्रष्ठिानों के भूतल पर भी पार्किंग की जगह दुकानें खोल दी गईं हैं।
जबकि नक्शा पास करवाए गए ग्राउंड फ्लोर पार्किंग के साथ।
आज भी जो मुख्य मार्गों पर जो व्यावसायिक भवन खड़े किए जा रहे हैं,उनमें भूतल या भूमिगत पार्किग का कोई प्रावधान नहीं रखा जा रहा है।
ऐसे निर्माणों की देखभाल करने वाली सरकारी एजेंसियों को सच्चे कामों से क्या मतलब ?
उन्हें तो कुछ और से ही मतलब रहता है।
कुछ महीने पहले पटना की दो मुख्य सड़कों के ग्राउंड फ्लोर पार्किंग रहित भवनों के मालिकों को संबंधित अधिकारी ने नोटिस भेजे थे।कहा था कि आप अपने भवन के निचले हिस्से में पार्किंग स्थल बनवाइए।
पर अब तक तो बनने के कोई संकेत नहीं हैं।
यदि भूतल या भूमिगत पार्किेग का प्रबंध नहीं होगा तो उससे कोई लाभ स्थायी नहीं होगा।
सड़कों को आप और कितना चैड़ा कीजिएगा ?
--एकलौती उपलब्धि--
अस्सी के दशक में पटना के मजहरूल हक पथ यानी फ्रेजर रोड के एक निजी होटल को भूमिगत पार्किंग बनाने के लिए शासन ने बाध्य कर दिया था।लोगबाग उससे खुश थे।
लगा था कि यह काम आगे भी बढ़ेगा।
अन्य प्रतिष्ठानों के नीचे भी पार्किंग स्थल बनवाने का काम होगा।
पर, वह हो नहीं सका।
पार्किंग की कमी समस्या सिर्फ पटना में ही नहीं है।
यह बिहार के अन्य शहरों में भी है।पर पहले पटना में तो सुधार हो !
--लाॅ कालेजों में शिक्षा-परीक्षा का हाल-
हाल में बिहार में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीशों की बहाली हुई।
कुल बारह उम्मीदवारों का चयन हुआ ।इनमें बिहार से सिर्फ चार हैं।
इन चार में से भी एक की पढ़ाई दिल्ली लाॅ कालेज में हुई है।
आखिर ऐसा क्यों होता है कि बाहर के ही अधिकतर उम्मीदवार चयनित हो जाते हैं ?ऐसा आज ही नहीं हुआ है।वर्षों से ऐसा हो रहा है।
इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि बिहार के अधिकतर लाॅ कालेजों में शिक्षण-परीक्षण का हाल ठीक नहीं है।
अपवाद स्वरूप ही बिहार के किन्हीं लाॅ कालेजों में अच्छी पढ़ाई होती है।
ऐसे मामले में चिंता प्रकट करने वालों को चाहिए कि वे पहले बिहार के लाॅ कालेजों में गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई का प्रबंध कराएं।
फिर उम्मीद करें कि बिहार के उम्मीदवार अधिक संख्या में जज बनेंगे।
--चीन की बदलती जनसंख्या नीति--
1949 के बाद यानी कम्युनिस्ट शासन काल में चीन अपनी जनसंख्या नीति में समय- समय पर परिवत्र्तन करता रहा है।
उसकी पहली नीति कार्ल माक्र्स की नीतियों पर आधारित थी।बाद की नीति व्यावहारिक अनुभव के आधार पर।
1949 की क्रांति के बाद चीन ने नारा दिया-‘आबादी,आबादी और आबादी।’
शासन ने गर्भ निरोधकों पर प्रतिबंध लगा दिया।
याद रहे कि माक्र्स आबादी बढ़ाने के पक्ष में थे।
हमारे देश भारत में भी इन दिनों जनसंख्या नियंत्रण पर गंभीर चर्चा शुरू हुई है।
पता नहीं ,नियंत्रण के लिए हमारी सरकार कोई नीति बना भी पाएगी भी या नहीं।
चीन में तो तानाशाही है।वहां तो ऐसी नीति लागू करना संभव भी है।
हमारे यहां तो यह बहुत मुश्किल काम है।पर मुश्किल काम को भी देशहित में कई बार करना पड़ता है।
भारत में तो आए दिन सरकारी निर्णयों को धार्मिक भावना या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जोड़ दिया जाता है।
पर जब चीन में वैचारिक कट्टरता थी तभी 1957 में चीन के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि ‘परिवार नियोजन के बिना हम देश को गरीबी के चंगुल से न तो शीघ्र मुक्त कर सकेंगे न ही समृद्ध और शक्तिशाली बना सकेंगे।’
चीन में तब गर्भ निरोधक बितरित किए गए थे।
पर उस नीति को थोड़े ही समय बाद
छोड़ दिया गया।
फिर एक दूसरा दौर भी आया।
1964 में चाउ एन लाई ने कहा कि हमने गर्भ नियंत्रण के तौर -तरीकांे के अध्ययन के लिए लोगों को जापान भेजा है।
चीन ने 1969 में दो बच्चों की नीति बनाई।
1979 में एक बच्चा नीति चली।
1980 में चीन सरकार ने आदेश दिया कि यदि पहली संतान लड़की हो तो दूसरी संतान पैदा की जा सकती है।
2019 की ताजा नीति दो बच्चों की हो गई।
भारत में दो बच्चे की नीति बनाना भी लोहे के चने चबाने जैसा काम होगा।पर कोशिश करने में कोई हर्ज नहीं।
जहां संसाधन कम और आबादी अधिक हो,उस देश की तरक्की
तो मुश्किल है ही।
--और अंत में-
1949 में चीन की मुख्य भूमि पर कम्युनिस्टों का आधिपत्य हुआ।
उन दिनों चीन सरकार ने आबादी बढ़ाओ कार्यक्रम चलाया।
उसका एक उद्देश्य यह भी था कि मुख्य भूमि से लोगों को ले जाकर उन्हें तिब्बत में बसाया जाए ताकि वहां जातीय स्थिति का स्वरूप बदले।
1950 में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया और वहां जन मुक्ति सेना के लाखों सैनिकों को बसाया गया।
--कानोंकान-प्रभात खबर-बिहार -23 अगस्त 2019 से।
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