शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

खेती का रकबा बढ़ाने के साथ-साथ कृषि आधारित उद्योग भी जरूरी-सुरेंद्र किशोर



यह अच्छी बात है कि हमारे देश में करीब 50 लाख हेक्टेयर ऐसी बंजर जमीन उपलब्ध है जिसे खेती लायक बनाया जा सकता है।
 सरकार उसे खेती लायक बनाने को तैयार भी है।
यदि उसे खेती लायक बनाकर उसे भूमिहीनों के बीच बांटा जाए तो उससे समाज में कई तरह से सकारात्मक स्थिति पैदा होगी। 
पर हां, उससे पहले सरकार को इस बात पर गौर करना होगा कि खेती को धीरे- धीरे मुनाफे का धंधा कैसे बनाया जाए।
कृषि आधारित उद्योग का जाल कैसे बिछाया जाए।
भूजल की वैसे ही कमी होती जा रही है।
सरकार को पहले इस बात पर भी विचार करना होगा कि वर्षा जल का संचय करके उसे खेती के लिए कैसे उपयोग में लाया जाए।
 छोटी नदियों में चेक डैम बना कर कैसे सतही जल का संचय किया जाए।
  अभी देश में 15 करोड़ 90 लाख हेक्टेयर जमीन खेती के लिए उपलब्ध है।
  उसकी सिंचाई के लिए ही पानी कम पड़ रहा है।
50 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त जमीन के लिए तो और भी अधिक पानी  की जरूरत पड़ेगी।
--सरकारी योजनाओं की निगरानी--
केंद्र सरकार अपनी 85 योजनाएं अब जम्मू -कश्मीर और लद्दाख में भी लागू करेगी।
 इसके लिए संबंधित नियमों में परिवत्र्तन का प्रस्ताव है।
इस ताजा खबर के साथ इस बात का अंदाज हुआ कि केंद्र सरकार राज्यों में न जाने कितनी योजनाएं चलाती रहती हैं।
इन योजनाओं के बारे में सामान्य लोगों को पता भी नहीं चल पाता है।
कहते हैं कि इनमें से कुछ योजनाएं कागजी हैं।इनके नाम पर पैसों की बंदरबांट हो जाती है।
संंभव है कि इन 85 योजनाओं के अलावा भी कुछ योजनाएं जम्मू कश्मीर में पहले से लागू हों।
 इनके अलावा विकास व कल्याण के लिए राज्य सरकार भी अपनी योजनाएं चला रही होंगी।
  यदि अन्य राज्यों में चल रही राज्य व केंद्र की सभी योजनाओं की सूची बनाएं तो वे सैकड़ों में होंगीं।
  होना तो यह चाहिए था कि इन योजनाओं की पूरी सूची की जानकारी प्रचार माध्यमों के जरिए जनता तक पहुंचती रहती।
 ताकि, स्थानीय प्रशासन से जागरूक  लोग समय -समय पर यह पूछ पाते कि आप किस योजना को कहां- कहां लागू  कर रहे हैं।
  यदि यह सब जब तक नहीं हो रहा है,तब तक विभिन्न दलों के  कार्यकत्र्ता व एन.जी.ओ. से जुड़े लोग  इन योजनाओं की खोज -खबर ले सकते हैं।
वे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि योजनाओं के पैसे बीच में ही बंदरबांट में तो नहीं चले जा रहे हैं।
हां,इस काम में कुछ खतरे जरूर हैं।
पर कौन बड़ा नेता खतरा उठाए बिना जनता का लाड़ला बना है ?
  कई राजनीतिक कार्यकत्र्ता कहते हैं कि हमारे पास कोई काम ही नहीं है।
इससे बढि़या व जनहितकारी काम और कौन सा हो 
सकता है ?
  --पुलिस का एक पक्ष यह भी--
अधिकतर लोग पुलिसकर्मियों का एक ही पक्ष देखते हैं।
जाहिर है कि वह पक्ष नकारात्मक होता है।
उसे भी देखना चाहिए।उसमें सुधार की भी सख्त जरूरत है।
पर,पुलिसकर्मियों  का एक दूसरा पक्ष भी है।उसमें कई स्तरों के पुलिसकर्मी शामिल हैं।
वह पक्ष उनको मिल रही सुविधाओं के बारे में है।
 गैर सरकारी संगठन के सर्वेक्षण के आधार पर जो सूचनाएं हाल में सामने आई हैं,वे चिंताजनक हैं।
21 राज्यों में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार पुलिसकर्मी काम के भारी बोझ के कारण तनाव में रहते हैं।
 काम और निजी जिंदगी के बीच कोई संतोषजनक संतुलन नहीं है।
यही नहीं,जितनी अधिक जिम्मेवारियां पुलिसकर्मियों को सौंपी जाती हैं,उस अनुपात में उन्हें सुविधाएं नहीं दी जातीं ।
सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि देश के एक तिहाई पुलिसकर्मी अपनी नौकरी बदलना चाहते हैं ।यदि मौजूदा वेतन व सुविधाओं के बराबर का उन्हें कोई दूसरा काम मिल जाए।
     बिहार में पुलिस से पुलिस मंत्री बने रामानंद तिवारी ने सत्तर के दशक में सिपाहियों की खराब सेवा शत्र्तों और बदतर जिंदगी पर एक पुस्तिका लिखी थी।
उसे पढ़ने से बाहर के लोगों के सामने पहली बार उनका दूसरा पक्ष भी सामने आया था।
अब ताजा सर्वे ने तो यह बता दिया है कि दशकों के बाद अन्य स्तरों के पुलिसकर्मियों की स्थिति में भी कोई खास सुधार नहीं हुआ है। 
       --और अंत में-- 
सड़कों पर अतिक्रमण,गंगा में प्रदूषण और दवाओं में मिलावट ! 
अनेक लोगों को हाल तक यह लगता था कि पटना की सड़कों से अतिक्रमण  हट ही नहीं सकता।
पर, अब हट रहा है।
यहां तक कि अतिक्रमण के अब तक के ‘अछूते किले’ भी  ध्वस्त हो रहे हैं।उन अछूते किलों की ओर नजर गड़ाने की किसी सरकार को हिम्मत नहीं हो रही थी।इस बार पटना हाईकोर्ट ने वह हिम्मत प्रशासन को दे दी है।
पहले कई लोगों को यह भी लगता था कि पवित्र गंगा नदी को प्रदूषित करने वाले कल-कारखानों पर कार्रवाई  हो ही नहीं सकती।
पर,कान पुर के अनेक चमड़ा कारखाने कुम्भ के बाद भी इस बार बंद ही रहे।नतीजतन गंगा  जल की गुणवत्ता में थोड़ा सुधार हुआ है।
  पर, तीसरा काम अभी बाकी है।दवाओं में व्यापक मिलावट व नकलीपन अब भी जारी है।
  देखना है कि उस मिलावट पर इस देश में कारगर कार्रवाई कब हो पाती है ?
--30 अगस्त 2019 को प्रभात खबर-बिहार-में प्रकाशित साप्ताहिक काॅलम कानोंकान से।

कोई टिप्पणी नहीं: