शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

अपने ‘आइडिया आॅफ इंडिया’ को आगे बढ़ाते हुए 27 जून 1961 को तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने मुख्य मंत्रियों को लिखा कि मैं जाति आधारित किसी तरह के आरक्षण खास कर सरकारी नौकरियों में आरक्षण के सख्त खिलाफ हंू।
 पर हाल में छत्तीसगढ़ की कांग्रेसी सरकार ने पिछड़ों के लिए पहले से उपलब्ध  आरक्षण को हाल में दुगुना कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की मुहर के बाद मंडल आरक्षण की अधिसूचना को भी कांग्रेस शासन काल में जारी करनी पड़ी थी।
  यानी नेहरू की कांग्रेस के एक हिस्से ने भी बाद में आरक्षण की जरूरत समझी।
क्योंकि आरक्षण के अभाव में सरकारी नौकरियों में पिछड़ों के हकों की ‘हत्या’ हो रही थी।
  जवाहरलाल नेहरू ने कभी धारा 370 का समर्थन करके उसका प्रावधान संविधान मंे कराया। 35 ए का प्रावधान भी कराया।
पर, उसी धारा से मिली ‘सुविधा’ का लाभ उठा कर जब मुस्लिम अतिवादियों ने लाखों हिन्दुओं खास कर पंडितों को घाटी से निकाल बाहर किया,उन पर अन्य तरह के जघन्य अपराध किए तो मोदी सरकार ने उसे हटा देने की जरूरत समझी।
उसी धारा की उपस्थिति के कारण कश्मीर को देसी-विदेशी जेहादियों  का अड्डा बना दिया गया और उससे पूरे देश की सुरक्षा पर भी खतरा पैदा हो गया तो  क्या फिर भी उस धारा को नहीं हटाया जाना चाहिए था ?
  कोई कानून,संवैधानिक प्रावधान या नियम समय की जरूरतों को पूरा करने में विफल रहे तो अग्रसोची देश उसे समाप्त कर देते हैं या बदल देते हैं।
  पर अपना देश ?



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