गुरुवार, 22 अगस्त 2019

   14 मार्च 2001 
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 तहलका कांड पर भाजपा संसदीय दल की बैठक के बाद पार्टी के प्रवक्ता प्रो.विजय कुमार मल्होत्रा ने मीडिया से कहा था कि ‘बैठक में पार्टी के सांसदों और घटक दलों से कहा गया कि उन्हें इस मामले में रक्षात्मक होने की जरूरत नहीं है।उन्हें इससे आक्रामक रूप से निपटना होगा।क्योंकि न तो कोई रक्षा सौदा हुआ है और न ही किसी मंत्री पर इसमें शामिल होने का आरोप लगा है।
कुछ दिन में जब सच्चाई सामने आ जाएगी तब पता चल जाएगा कि इसके पीछे कौन सी ताकत है।’
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नतीजा--
बंगारू लक्ष्मण को 2012 में चार साल की सश्रम सजा हुई।
भाजपा ने उनकी पत्नी को उनके बदले लोक सभा का उम्मीदवार बना दिया था।
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21 अगस्त 2019
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पी.चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई पर 
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी--
‘पी.चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई एक साजिश है।उनकी छवि खराब करने की कोशिश है।’
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नतीजा- हालांकि भविष्य के गर्भ है।
पर, संकेत बताते हैं कि यदि जांच एजेंसियों ने लगातार ठीक से काम किया तो चिदंबरम को सजा मिलनी तय मानी जा रही है। भले राहुल गांधी जो कहें !
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दशकों से इस देश की राजनीति देख रहा हूं।इसी तरह चल रही है।
मैंने तो सिर्फ दो उदाहरण दिए हैं।
ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं।
एक नेता के खिलाफ कार्रवाई होती है तो उसके दल का दूसरा  नेता कहता है कि ‘उसी पर क्यों ?’
फलां पर क्यों नहीं ?
कार्रवाई अभी ही क्यों ?
इसमें कोई साजिश है।
बदले की भावना है।
किसी खास जाति या समुदाय का होने के कारण ही 
कार्रवाई हो रही है।
1952 से जितने नेताओं ने देश को लूटा है,सब पर पहले कार्रवाई होनी चाहिए।
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यानी, मैं चोर तो तू भी तो चोर ! ! !
हमारी पार्टी में अपराधी तो तुम्हारी पार्टी कौन सी दूध की धुली हुई !! ?
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इसी तरह की बेशर्म डायलाॅगबाजी के बीच इस देश की राजनीति चल रही है।
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पर,इस बीच भी कुछ बातें पक्की हैं।
अच्छी हैं।
उम्मीद की किरणें भी मौजूद हैं।
विभिन्न दलों के कुछ नेता ईमानदार हैं।
उनमें से कुछ अत्यंत ईमानदार हैं।
योग्य भी हैं।
वे अपने लिए नहीं ,देश के लिए कुछ करना चाहते हैं।
कर भी रहे हैं।
विभिन्न दलों के कुछ ऐसे नेताओं को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं जो सत्ता में रहे,सत्ता में हैं,पर खुद के लिए या परिवार के लिए कुछ नहीं किया।
किसी का नाम लेना ठीक नहीं।
कुछ नेता तो जान पर खतरा उठा कर भी देश के लिए काम रहे हैं।
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राजनीतिक दलों में भी फर्क है।
कुछ दलों में स्वार्थी कम निःस्वार्र्थी अधिक हैं।
कुछ अन्य दलों में निःस्वार्थी कम और स्वार्थी अधिक हैं।
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निःस्वार्थी हल्का शब्द है।
इसका आशय आप चोर,डकैत,घोटालेबाज,हत्यारा,
बलात्कारी,साम्प्रदायिक कुछ भी समझ सकते हैं।
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फिर भी इन्हीं विपरीत परिस्थितियों में  अधिकतर मतदातागण
अपवादों को छोड़ कर अपेक्षाकृत कम भ्रष्ट और कम अपराधी को चुनते रहते  हंै। 
गनीमत है !  
जिस तरह उम्मीद पर दुनिया जिंदा है,
उसी तरह इस देश का लोकतंत्र भी !


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