युगेश्वर पांडेय की पुण्य तिथि पर
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पारंपरिक विवेक और आधुनिक चेतना से लैस
युगेश्वर पांडेय की आज चैथी पुण्य तिथि है।
इस अवसर पर मैं उन्हें श्रद्धापूर्वक याद कर रहा हूं।
बिहार वाणिज्य मंडल के पूर्व अध्यक्ष दिवंगत पाण्डेय
का मुझे आशीर्वाद मिला हुआ था।
मैं उन्हें तब से जानता रहा जब मैं गांव में रहता था।
वे वहां भी सार्वजनिक जीवन में सक्रिय थे । मेरे बाबू जी से मिलने आया करते थे।
हम लोग एक ही इलाके के थे।
बाबू जी के नहीं रहने के बाद मैं उनसे विभिन्न निजी व सार्वजनिक मुद्दों पर सलाह लिया करता था।
जब कभी मैं डा.रजी अहमद से मिलने गांधी संग्रहालय जाता था तो वे पूछते थे,
‘गुरूद्वारा से होकर आ रहे हैं या जाने वाले हैं ?’
रजी साहब जानते थे कि पांडेय जी मेरे गुरू तुल्य थे।
पांडेय जी एक खूबी यह भी थी कि वे ऐसे लोगों की भी मदद किया करते थे जिनसे उन्हें बदले में कुछ मिलने वाला नहीं होता था।
उसकी उन्हें कोई उम्मीद भी नहीं रहती थी।
मुझे उनमें सबसे अच्छी बात यह लगती थी कि वे गांव और नगर के संगम थे।
शायद वैसे लोग अब विरल हैं।
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पारंपरिक विवेक और आधुनिक चेतना से लैस
युगेश्वर पांडेय की आज चैथी पुण्य तिथि है।
इस अवसर पर मैं उन्हें श्रद्धापूर्वक याद कर रहा हूं।
बिहार वाणिज्य मंडल के पूर्व अध्यक्ष दिवंगत पाण्डेय
का मुझे आशीर्वाद मिला हुआ था।
मैं उन्हें तब से जानता रहा जब मैं गांव में रहता था।
वे वहां भी सार्वजनिक जीवन में सक्रिय थे । मेरे बाबू जी से मिलने आया करते थे।
हम लोग एक ही इलाके के थे।
बाबू जी के नहीं रहने के बाद मैं उनसे विभिन्न निजी व सार्वजनिक मुद्दों पर सलाह लिया करता था।
जब कभी मैं डा.रजी अहमद से मिलने गांधी संग्रहालय जाता था तो वे पूछते थे,
‘गुरूद्वारा से होकर आ रहे हैं या जाने वाले हैं ?’
रजी साहब जानते थे कि पांडेय जी मेरे गुरू तुल्य थे।
पांडेय जी एक खूबी यह भी थी कि वे ऐसे लोगों की भी मदद किया करते थे जिनसे उन्हें बदले में कुछ मिलने वाला नहीं होता था।
उसकी उन्हें कोई उम्मीद भी नहीं रहती थी।
मुझे उनमें सबसे अच्छी बात यह लगती थी कि वे गांव और नगर के संगम थे।
शायद वैसे लोग अब विरल हैं।
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