सच्चा,संतुलित और निष्पक्ष इतिहास
लिखने के लिए पूरा मैदान खाली है
.......................................................................................................
समकालीन इतिहास लेखन !
सच्चा इतिहास लेखन !
सभी पक्षों की बातें।
व्यक्ति,दल,विचारधारा व सरकार के प्रति संतुलित
रवैये के साथ इतिहास लेखन।
पैसा,जाति और विचारधारा के प्रभाव में आए बिना इतिहास लेखन !
इस क्षेत्र में पूरा मैदान खाली है।
इस कसौटी पर खरा उतरने वाले इतिहासकार की प्रतीक्षा आज का इतिहास कर रहा है।
मध्यकालीन इतिहास के साथ हमने छेड़छाड़ की ही,समकालीन इतिहास तो ठीक -ठीक लिखा जाए।
याद रहे कि कल की घटना आज तो इतिहास बन ही चुकी है।
अब यह बात छिपी नहीं रही । मध्यकाल के इतिहास लेखन के बारे में नेहरू युग के कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने नये इतिहास लेखकों को यह निदेश दिया था कि शिवाजी और महाराणा प्रताप के त्याग, वीरता आदि की चर्चा करते हुए इतिहास मत लिखो अन्यथा हिन्दू सांप्रदायिकता बढ़ेगी।
वैसा निदेश माना भी गया।ऐसे न जाने और कितने और निदेश दिए गए होंगे !
हाल में यह बात पटना हाईकोर्ट के चर्चित वकील बसंत कुमार चैधरी ने फेसबुक पर लिखी है।
चैधरी के अलावा भी अनेक लोग बताते हैं कि समकालीन इतिहास लेखन के क्रम में बहुत सारी बातें छुपाई गर्इं और किसी की झूठी तारीफ भी की गई।
यानी सच्चा इतिहास लेखन के लिए मैदान अब भी खाली है।
झूठ और पर्दादारी के कुछ उदाहरण देखिए।
1.-कम्युनिस्ट द्वय लेखक ने लिखा कि इस देश की राजनीति में वंशवाद-परिवारवाद की शुरूआत ग्वालियर के सिंधिया परिवार ने की।
वे मोतीलाल -जवाहर लाल को इस आरोप से साफ बचा लेना चाहते थे।
2.-जिन दिनों कश्मीर घाटी से पंडितों को भगाया जा रहा था,उन दिनों विजय राणा लंदन में बीबीसी के लिए काम कर रहे थे।
उन्होंने हाल में लिखा है कि कश्मीर से उनका संवाददाता पलायन की कोई खबर नहीं भेज रहा था।
भारतीय मीडिया में भी पंडितों के पलायन और उन पर व उनके परिवार पर जारी अमानवीय अत्याचारों की कोई खबर नहीं आ रही थी।
3.-कई साल पहले की बात है।राम चंद्र गुहा ने कहीं लिखा कि जवाहर लाल नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा को राजनीति में आगे नहीं बढ़ाया।
मैंने इमेल के जरिए उसका प्रतिवाद किया।पहले तो गुहा ने इधर -उधर की बातें कीं।जब मैंने सबूत दिया तो फिर उन्होंने लिखा कि हां,नेहरू को ऐसा नहीं करना चाहिए था।
4.-1959 में जवाहरलाल नेहरू ने किस तरह इंदिरा गांधी को
कांग्रेस अध्यक्ष बनवाया,उसका सबूत महावीर त्यागी-नेहरू पत्र व्यवहार में दर्ज है। किसी इतिहासकार ने उसे छापा ? उन पत्रों की फोटाकाॅपी मेरे पास है।
बात सिर्फ नेहरू की ही नहीं है।
ऐसे अनेक झूठ या अर्ध सत्य से इतिहास भरा पड़ा है।
नेहरू में बहुत अच्छाइयां भी थीं।
पर कमियां भी थीं।दोनों बातें लिखें।
उनसे देश को कितना लाभ हुआ और कितना नुकसान हुआ,यह सब साथ लिखो।
उसे इतिहास कहते हैं।
बाकी तो चमचागिरी या फिर बेईमानी है।
ऐसे बेईमानी भरे इतिहास से अगली पीढि़यों को कोई शिक्षा नहीं मिलती।
जो इतिहास से नहीं सीखता,वह उसे दुहराने को अभिशप्त होता है।
अपने यहां यही तो हो रहा है।
क्योंकि हमें सच्चा-संतुलित इतिहास तो पढ़ाया ही नहीं गया।
यानी सच्चा,संतुलित और निष्पक्ष इतिहास लिखने के लिए पूरा मैदान खाली है।
नई पीढ़ी के ईमानदार सोच वाले बुद्धिजीवियों को यह चुनौती स्वीकार करनी चाहिए।
लिखने के लिए पूरा मैदान खाली है
.......................................................................................................
समकालीन इतिहास लेखन !
सच्चा इतिहास लेखन !
सभी पक्षों की बातें।
व्यक्ति,दल,विचारधारा व सरकार के प्रति संतुलित
रवैये के साथ इतिहास लेखन।
पैसा,जाति और विचारधारा के प्रभाव में आए बिना इतिहास लेखन !
इस क्षेत्र में पूरा मैदान खाली है।
इस कसौटी पर खरा उतरने वाले इतिहासकार की प्रतीक्षा आज का इतिहास कर रहा है।
मध्यकालीन इतिहास के साथ हमने छेड़छाड़ की ही,समकालीन इतिहास तो ठीक -ठीक लिखा जाए।
याद रहे कि कल की घटना आज तो इतिहास बन ही चुकी है।
अब यह बात छिपी नहीं रही । मध्यकाल के इतिहास लेखन के बारे में नेहरू युग के कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने नये इतिहास लेखकों को यह निदेश दिया था कि शिवाजी और महाराणा प्रताप के त्याग, वीरता आदि की चर्चा करते हुए इतिहास मत लिखो अन्यथा हिन्दू सांप्रदायिकता बढ़ेगी।
वैसा निदेश माना भी गया।ऐसे न जाने और कितने और निदेश दिए गए होंगे !
हाल में यह बात पटना हाईकोर्ट के चर्चित वकील बसंत कुमार चैधरी ने फेसबुक पर लिखी है।
चैधरी के अलावा भी अनेक लोग बताते हैं कि समकालीन इतिहास लेखन के क्रम में बहुत सारी बातें छुपाई गर्इं और किसी की झूठी तारीफ भी की गई।
यानी सच्चा इतिहास लेखन के लिए मैदान अब भी खाली है।
झूठ और पर्दादारी के कुछ उदाहरण देखिए।
1.-कम्युनिस्ट द्वय लेखक ने लिखा कि इस देश की राजनीति में वंशवाद-परिवारवाद की शुरूआत ग्वालियर के सिंधिया परिवार ने की।
वे मोतीलाल -जवाहर लाल को इस आरोप से साफ बचा लेना चाहते थे।
2.-जिन दिनों कश्मीर घाटी से पंडितों को भगाया जा रहा था,उन दिनों विजय राणा लंदन में बीबीसी के लिए काम कर रहे थे।
उन्होंने हाल में लिखा है कि कश्मीर से उनका संवाददाता पलायन की कोई खबर नहीं भेज रहा था।
भारतीय मीडिया में भी पंडितों के पलायन और उन पर व उनके परिवार पर जारी अमानवीय अत्याचारों की कोई खबर नहीं आ रही थी।
3.-कई साल पहले की बात है।राम चंद्र गुहा ने कहीं लिखा कि जवाहर लाल नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा को राजनीति में आगे नहीं बढ़ाया।
मैंने इमेल के जरिए उसका प्रतिवाद किया।पहले तो गुहा ने इधर -उधर की बातें कीं।जब मैंने सबूत दिया तो फिर उन्होंने लिखा कि हां,नेहरू को ऐसा नहीं करना चाहिए था।
4.-1959 में जवाहरलाल नेहरू ने किस तरह इंदिरा गांधी को
कांग्रेस अध्यक्ष बनवाया,उसका सबूत महावीर त्यागी-नेहरू पत्र व्यवहार में दर्ज है। किसी इतिहासकार ने उसे छापा ? उन पत्रों की फोटाकाॅपी मेरे पास है।
बात सिर्फ नेहरू की ही नहीं है।
ऐसे अनेक झूठ या अर्ध सत्य से इतिहास भरा पड़ा है।
नेहरू में बहुत अच्छाइयां भी थीं।
पर कमियां भी थीं।दोनों बातें लिखें।
उनसे देश को कितना लाभ हुआ और कितना नुकसान हुआ,यह सब साथ लिखो।
उसे इतिहास कहते हैं।
बाकी तो चमचागिरी या फिर बेईमानी है।
ऐसे बेईमानी भरे इतिहास से अगली पीढि़यों को कोई शिक्षा नहीं मिलती।
जो इतिहास से नहीं सीखता,वह उसे दुहराने को अभिशप्त होता है।
अपने यहां यही तो हो रहा है।
क्योंकि हमें सच्चा-संतुलित इतिहास तो पढ़ाया ही नहीं गया।
यानी सच्चा,संतुलित और निष्पक्ष इतिहास लिखने के लिए पूरा मैदान खाली है।
नई पीढ़ी के ईमानदार सोच वाले बुद्धिजीवियों को यह चुनौती स्वीकार करनी चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें