मंगलवार, 13 अगस्त 2019

आजादी के काफी करीब पहुंच चुके थे गिलानी !
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अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने 9 सितंबर, 2016 को ही यह कह दिया था कि
‘आज हम आजादी के जितने करीब पहुंच चुके हैं,उतने इससे पहले कभी नहीं थे।’
         -- हिन्दुस्तान टाइम्स-10 सितंबर 2016
जरा गिलानी के हौसले और तैयारी तो देखिए !
ऐसे में गिलानी की तैयारी को विफल करने के लिए भारत सरकार की कैसी तैयारी होनी चाहिए ?
  2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी। 
गिलानी की ‘तैयारी’ की खबर मोदी सरकार को भी मिल ही रही होगी।
केंद्र सरकार कुछ करना चाहती होगी,पर तब वह मन मसोस कर रह जाती होगी।
  क्योंकि राज्य सभा में राजग का बहुमत नहीं था।
 तब उच्च सदन में वैसे नेता लोग हावी थे जिनकी सहानुभूति गिलानी जैसों के साथ रही है।
आज भी देखी जा रही है।
 जैसे ही राज्य सभा में आंकड़ों की दृष्टि से राजग सरकार की स्थिति बेहतर हुई,धारा - 370 और 35 ए का क्रिया कर्म  हो गया।
अब गिलानी साहब बताएं कि अब वे आजादी के कितना 
करीब हैं ?
क्या धारा-370 पर संसद के निर्णय के विरोधी नेता और बुद्धिजीवी यह चाहते रहे हैं कि भले गिलानी व पाकिस्तान मिलकर कश्मीर को हथियार व आतंक के बल पर आजाद करा दे,फिर भी  मोदी सरकार उसे रोकने का कोई उपाय न करे।
जन भावना के खिलाफ कैसे  जाएगी कोई भी कायदे की सरकार ?
वह तो वही काम करेगी जो देशहित में होगा।
  पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा है कि कश्मीर के बारे में राजग सरकार का निर्णय राजनीतिक है।
पर यदि जल्द लोस चुनाव हो जाए तो इस कारण राजग को उससे भी अधिक सीटें मिलेंगी जितनी सीटें 1984 के लोस चुनाव में कांग्रेस को मिली थी।तब कांग्रेस को 404 सीटें मिली थीं।
  परोक्ष रूप से सिन्हा ने यह भी बता ही दिया कि तब कांग्रेस को कितनी सीटें मिलेंगी जो राजग के इस कदम का विरोध कर रही है।
यदि राजनीतिक कदम भी मान लिया जाए तो अब कोई यह तो बताए कि किसी राजनीतिक दल को अपनी संसद की सीटें बढ़ाने वाला निर्णय करना चाहिए या घटाने वाला ?  


  

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