शुक्रवार, 2 अगस्त 2019

किन पर लगे जाम से मरनेवाले मरीजों-घायलों की हत्या का आरोप ! --सुरेंद्र किशोर


पटना हाईकोर्ट ने इसी बुधवार को एक पूर्व सांसद से कहा कि यदि आप सड़क जाम न करने का शपथ पत्र दें तभी हम आपकी अग्रिम जमानत की अर्जी पर विचार करेंगे।
  जाम के खिलाफ इतना बढि़या अदालती निर्णय इससे पहले कभी नहीं आया था।
इससे इस बात का पता चलता है कि अदालत भी जाम से होने वाले और हो रहे नुकसानों को अच्छी तरह समझती है।
  जाम अब किसी एक प्रदेश की समस्या नहीं रही।व्यापक है।
 आए दिन यह खबर आती रहती है कि भीषण सड़क जाम के कारण अस्पताल के रास्ते में ही गंभीर रूप से घायल और बीमार लोगों की जानें चली जाती हैं।
  यह तो एक तरह से हत्या ही है।
ऐसी हत्या के लिए विशेष सजा के प्रावधान के बारे में हमारे जन प्रतिनिधियों ने कभी नहीं सोचा है।
  राजनीतिक नेता व दल तो कभी- कभी ही राजनीतिक कारणों से जाम लगाते हैं।पर, उस जाम का क्या कहें जो रिश्वत के लिए रोज -रोज नगरों में लगते हैं।
  पटना तथा राज्य के अन्य शहरों में आए दिन लग रहे जाम के असली कारणों का पता सबको हैं,सिर्फ उनको छोड़कर जिनके जिम्मे कानून -व्यवस्था, सड़क व्यवस्था और नगर व्यवस्था सही रखने का काम  है।
  --पद लोलुपों के दल-बदल का मौसम-- 
 देश भर में बड़े पैमाने पर दल बदल हो रहे हैं।‘मौसम विज्ञानी’ नेता गण एक खास दिशा में जा रहे हैं।
जहां गुड़ होगा,चीटियां वहीं तो जाएंगी !
पर, आज की ये चिंटियां नए दल में जाकर कब दीमक का रूप ले लेंगी,कुछ कहा नहीं जा सकता।
  कांग्रेस की हवा खराब है तो भाजपा में चले जाओ।भाजपा की हवा खराब होने लगे तो फिर कांग्रेस में चले जाओ।
 इसी तरह की राजनीति दशकों से चल रही है।
 इसीलिए नए राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं को राजनीति में समुचित जगह कम ही  मिल रही है। 
यह स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी नहीं है।
--अगले साल होगा बिहार के दलों का भविष्य तय--
2020 में बिहार विधान सभा का चुनाव होने वाला है।
इस साल लोक सभा का चुनाव हुआ।इस चुनाव में बिहार के राजनीतिक दलों की ताकत की एक झलक मिली।
 कुछ लोग लोक सभा चुनाव नतीजे को दलों की असली ताकत का प्रतिनिधि नतीजा नहीं मानते।वे कहते है कि लोक सभा चुनाव मोदी लहर के कारण राजग जीत गया।पर विधान सभा चुनाव में वह लहर नहीं चलेगी।
 क्या यह तर्क सही है ?
इस सवाल का जवाब 2020 के बिहार विधान सभा चुनाव नतीजे बता देंगे।उन नतीजों के साथ ही कुछ दलों व नेताओं का भविष्य भी तय हो जाएगा। 
 -- एम.एस.धोनी की सकारात्मक पहल--
 मानद लेफ्टिनेंट कर्नल व मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी एम.एस.धोनी कश्मीर में आतंकवाद विरोधी यूनिट में तैनात होंगे।
 इस पृष्ठभूमि में यह महत्वपूर्ण खबर है कि भारतीय सेना में 7000 अफसरों की इन दिनों कमी है।
  कई कारणों से नई पीढ़ी का सेना के प्रति आकर्षण इधर कम हुआ है।
संभवतः इसीलिए आर.एस.एस.ने सैनिक प्रशिक्षण सरस्वती मंदिर स्थापित करने का निर्णय किया है।
  धोनी के सेना में काम करने से भी संभवतः आज के युवाओं का सेना के प्रति आकर्षण शायद थोड़ा बढ़े।
 ब्रिटिश राज परिवार के सदस्यों में भी सेना में काम करने की परंपरा रही है। 
  2007 में यह खबर आई थी कि प्रिंस
हैरी सेना में दस साल तक काम कर चुके हैं और इराक वार में ब्रिटिश फौज की ओर से शामिल होने की जिद कर रहे हैं।
 उनके चचा प्रिंस एंड्रयूज 1982 के फाॅकलैंड वार में शामिल हो चुके थे।द्वीप पर कब्जा करने के लिए  अर्जेन्टिना और ब्रिटेन के बीच हुआ था।
हैरी के दादा किंग जार्ज -6 प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हुए थे।
  धोनी अंधेरे में उम्मीद की किरण बन कर उभरे हैं।
चीन और इजराइल सहित 7 देशों में एक खास आयु वर्ग के युवजनों के लिए सेना में कुछ समय के लिए काम करना आवश्यक है।
 गत साल भारतीय संसद की एक समिति ने सिफारिश की है कि केंद्र व राज्य सरकारों की नौकरियों के लिए पहले कुछ समय के लिए सेना में काम करना जरूरी होना चाहिए।
--बंगलादेशी घुसपैठियों की संख्या घटी--
बंगला देशी घुसपैठियों की संख्या अब घट  रही है।
गत माह केंद्र सरकार ने संसद को यह बात बताई।
जानकार लोग बताते हैं कि दरअसल असम में नेशनल रजिस्टर आॅफ सिटिजन्स तैयार होने के कारण ऐसा
हो रहा है।
 वोट के लिए कई  राजनीतिक नेता गण घुसपैठ में मदद करते थे।उनके लिए राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र बनवाते थे।वे अब यह समझ रहे हैं कि रजिस्टर तैयार होने के बाद मतदाता पहचान पत्र नहीं बनवा पाएंगे।
 फिर घुसपैठ कराने से क्या फायदा ?
 यदि देश के अन्य राज्यों में भी नेशनल रजिस्टर आॅफ सिटिजन्स तैयार होने लगे तो देश में घुसपैठ की समस्या लगभग शून्य हो जाएगी।  
यह अच्छी बात है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गत माह राज्य सभा में कहा है कि अवैध घुसपैठियों की पहचान का काम सिर्फ असम तक ही सीमित नहीं रहेगा।
--और अंत में-
कैसा रहेगा यदि सरकार वैसे सरकारी सेवकों के लिए 
मन पसंद पदस्थापन की सुविधा का प्रावधान कर दे  
जिनके सिर्फ दो ही बच्चे हैं ?
क्या इससे परिवार नियोजन का काम थोड़ा आगे नहीं बढ़ जाएगा ?
--कानोंकान-प्रभात खबर-बिहार-2 अगस्त 2019--

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