सोमवार, 12 अगस्त 2019

   दिग्विजय-अय्यर कांग्रेस के दोस्त या दुश्मन ?
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क्या दिग्विजय सिंह और मणि शंकर अय्यर की कांग्रेस से कोई खानदानी दुश्मनी है ?
या फिर वे राजनीतिक कौशल व समझदारी के मामले में दिमाग से पैदल हैं ?
ऐसी बातें राहुल या सोनिया करते हैं तो बात समझ में आती है। क्योंकि उन्हें इस देश और राजनीति की कोई खास समझ  नहीं है।
एक व्यक्ति ने यही सवाल मुझसे हाल में पूछा।
साथ ही, यह भी कहा कि ये नेता तो समय- समय पर ऐसी-ऐसी  ही बातेंें बोलते रहते हैं जिससे कांग्रेस के वोट घटे।जानबूझकर या अनजाने में ?
  अब इस बात से एक अन्य बयान को जोड़ कर देखता हूं।
 धारा-370 पर संसद का निर्णय आने के बाद  
पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा था कि अगले लोस चुनाव में भाजपा को उससे भी अधिक सीटें मिलेंगी जितनी सीटें 1984 में कांग्रेस को मिली थीं।उन्हें टी.वी.चैनल पर यह कहते हुए मैंने खुद सुना था।
  पर, सिन्हा ने यह भी जोड़ा था कि मुझे भाजपा का तौर- तरीका पसंद नहीं है। 
  जनता का रुख सिन्हा देख पा रहे हैं।हालांकि वे भी पहले अफसर ही थे।
पर दिग्विजय-अय्यर नहीं देख पा रहे हैं ?
 या कोई दूसरी बात है ?
   इंडिया टूडे के अनुसार 1990 के मंडल आरक्षण का पूर्ण विरोध करने की लिखित सलाह अय्यर ने ही राजीव गांधी को दी थी।
राजीव ने उनसे मंडल आरक्षण पर नोट तैयार करने के लिए कहा था।
आरक्षण पर राजीव के गोलमोल और अस्पष्ट बयान के कारण  
कांग्रेस को बड़ा राजनीतिक नुकसान हुआ।क्योंकि राजीव के भाषण से पिछड़ों को लगा कि वे घुमा फिराकर आरक्षण के खिलाफ हैं।
  उसके बाद से तो कांग्रेस से पिछड़ा समुदाय कटता चला गया।
 कभी उसे लोक सभा में पूर्ण बहुमत नहीं आया।
 दिग्विजय के अतिवादी मुस्लिमों के पक्ष में बयान तो अनेक हैं। और जग जाहिर है।
सामान्य मुसलमानों की वे चिंता करते तो बात समझ में आती।
  मणि शंकर ने तो पाकिस्तान जाकर वहां के लोगों से कहा था कि आप लोग मोदी को सत्ता से हटाइए।




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