भ्रष्टाचार--पहला कदम तो उठाए
सरकार !---- सुरेंद्र किशोर
2014 में लाल किले से अपने पहले संबोधन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मैं ‘न तो खुद खाऊंगा और न किसी को खाने दूंगा।’
पर, इस 15 अगस्त को उन्हंे यह कहना पड़ा कि भ्रष्टाचार से सरकार के साथ- साथ हर व्यक्ति को हर स्तर पर लड़ना होगा।क्योंकि यह दीमक की तरह लग गया है और मर्ज गहरा और व्यापक है।
ताजा टिप्पणी उनके पांच साल के अनुभवों का परिणाम है।
उन्होंने बिलकुल ठीक कहा है कि इस दीमक से हर व्यक्ति को हर स्तर पर लड़ना चाहिए।
पर खुद सरकार इस संबंध में जो कुछ कर सकती है, पहले वह काम तो करे।
साधारण उपचारों से काम नहीं चल रहा है तो वह भ्रष्टाचार पर भी ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करना ही पड़ेगा।
इस देश के भ्रष्टाचार पर समय- समय पर अनेक बड़े नेता कुछ न कुछ कड़ी बातें बोलते रहे हैं,पर जब कुछ करने का अवसर आता है तो वे उसी व्यवस्था के अंग बन जाते हैं।
या फिर व्यवस्था उन्हें अपने में समेट लेती है।
खुशी की बात है कि भ्रष्टाचार की व्यवस्था ने नरेंद्र मोदी को अब तक अपने -आप में समाहित नहीं किया है।
1998 में मन मोहन सिंह ने कहा था कि ‘इस देश की पूरी व्यवस्था सड़ चुकी है।’
प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आजादी के तत्काल बाद कहा था कि कालाबाजारियों को नजदीक के लैम्प पोस्ट से लटका देना चाहिए।
प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने 100 पैसे से 85 पैसे के बिचैलियों के पास चले जाने की हकीकत का रहस्योद््घाटन किया।
हां,इंदिरा गांधी ने जरूर किसी तरह की कार्रवाई की घोषणा का दिखावा नहीं किया।
उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार तो विश्वव्यापी समस्या है,यह सिर्फ इसी देश में थोड़े ही है।
हां,नरेंद्र मोदी की बातों और उनके कर्मों से यह लगता है कि वे भ्रष्टाचार से उसी तरह लड़ना चाहते हैं जिस तरह आतंकवाद से।
वैसे भी यह आतंकवाद से कम खतरनाक है भी नहीं भ्रष्टाचार ।
भ्रष्टाचार से निर्णायक लड़ाई की शुरूआत मोदी सरकार दो -तीन प्रारंभिक कदमों के साथ कर सकती है,यदि वह इस सांड को उसकी सींग से पकड़ना चाहती है तो।
पहले कदम के रूप में सांसद क्षेत्र विकास फंड को तत्काल बंद कर देना चाहिए।
यह फंड , ‘भ्रष्टाचार के रावण’ की नाभि का अमृत कुंड बन चुका है।
जानकार लोग बताते हैं कि इस फंड में से 40 से 50 प्रतिशत राशि कमीशन खोरी में चली जाती है।
सभी सांसद या अफसर तो रिश्वत नहीं लेते।पर अधिकतर लेते हैं।इस मद में रिश्वतखोरी के आरोप में एक सांसद की सदस्यता भी जा चुकी है।स्टिंग आपरेशन में फंसे थे।
अनेक आई.ए.एस.अफसरों को अपने सेवा काल के प्रारंभिक वर्षों में ही सासंद फंड ‘चखने’ का अवसर मिल जाता है। वैसी लत सेवाकाल के आखिरी वर्षों तक बनी रहती है।
आगे जाकर वे क्या -क्या गुल खिलाते रहते हैं,उसका सीधा अनुभव प्रधान मंत्री को मिल रहा है।
नब्बे के दशक में प्रधान मंत्री पी.वी.नरसिंह राव को हर्षद मेहता से एक करोड़ रुपए घूस लेने का आरोप लगा था।
उसी राव साहब ने 1993 में इस फंड को शुरू करके पूरी राजनीति को ही गंदा बना देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।उनकी नाक कटी तो उन्होंने अधिकतर की नाक कटवा देने की भूमिका तैयार कर दी।
सांसद फंड को सांसदों के दबाव के कारण तब से किसी भी प्रधान मंत्री को बंद करने की हिम्मत नहीं हुई।पर यदि है तो यह हिम्मत सिर्फ नरेंद्र मोदी में है,ऐसा अनेक लोग महसूस कर रहे हैं।
मोदी जी इस नाभि पर वार किए बिना रावण को कत्तई नहीं मार सकेंगे !
नब्बे के दशक में एन.सी.सक्सेना केंंद्र सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के सचिव थे।
उन्होंने कहा था कि इस देश के भ्रष्टाचार में जोखिम कम और लाभ ज्यादा है।इसीलिए वह नहीं रुक रहा है।
वर्मा अपने सेवाकाल में डायरेक्ट बेनिफिट स्कीम यानी बैंक खाताओं में सीधे पैसे भेजने पर सबसे अधिक जोर देते थे।
अब सवाल है कि भ्रष्टाचार को अधिक जोखिम और कम लाभ का धंधा कैसे बनाया जाए।
यह काम तो सरकार ही कर सकती है।
भ्रष्टाचार के लिए फंासी की सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए।
क्योंकि भ्रष्टाचार के कारण लोगों की जानें भी जाती रहती हैं।
अमीर देशों में भ्रष्टाचार लोगों की सुख सुविधा में थोड़ी कमी कर देता है,पर हमारे यहां तो जान ही ले लेता है।
इस देश में शायद ही कोई खाद्य या भोज्य पदार्थ हो जिसमें मिलावट नहीं है।
दवाओं की मिलावट सीधे -सीधे जान ले लेती है।
हां,सिर्फ जहर में मिलावट जान बचा लेती है।
रिश्वत लेकर संबंधित पदाधिकारी मिलावट की छूट दे देते हैं।
निचले स्तर के घूसखोर कर्मियों को ऊपर के अफसर बचा लेते हैं।
यानी जब घूसखोरी से जान जाती हो तो इसके कसूरवार को फांसी की सजा क्यों नहीं ?
भ्रष्टाचार बढ़ने या फिर बने रहने का एक बड़ा कारण यह है कि बड़े अफसरों के खिलाफ अभियोजन की शुरूआत करने की जल्दी अनुमति नहीं मिलती।
इस स्थिति को बदलने का काम तो प्रधान मंत्री ही कर सकते हैं।
कुछ साल पहले लोक सभा के 10 और राज्य सभा के एक सदस्य की सदस्यता चली गई थी।सदस्यता संसद ने ही ली।उन पर घूसखोरी के आरोप थे।आरोप साबित हो गया।
टी.वी.चैनल के स्टिंग आपरेशन में वे पकड़े गए थे।
पर सवाल है कि सिर्फ सांसदों तक ही ऐसी कार्रवाई क्यों सीमित रहे ?
स्टिंग आपरेशन को कानूनी मान्यता भी मिले।
यदि फोरेंसिक जांच से वीडियो कसैट सही साबित हो जाए तो उसे अदालत में भी सबूत माना जाए,ऐसी कानूनी व्यवस्था हो।इससे कानून व्यवस्था भी बेहतर होगी।
इससे माॅब लिंचिंग को कम करने में भी सुविधा होगी।
भ्रष्ट सरकारी अफसरों के खिलाफ ऐसे सफल स्टिंग आपरेशन करने वालों को सरकार भारी इनाम दे।
ऐसे व इस तरह के दूसरे उपायों को पहले खुद सरकार अपनाए।फिर तो भ्रष्ट लोगों के खिलाफ अभियान चलाने के लिए आम लोग भी उत्साहित होंगे।
अभी तो अनेक लोगों को यह लगता है कि भ्रष्टाचार कम होेने वाला है नहीं।
इस धारणा को सरकार पहले खत्म करने का ठोस उपाय करे।एम.पी.फंड की समाप्ति के साथ सरकार का पहला कदम उठे।
- 18 अगस्त 2019 के हस्तक्षेप-राष्ट्रीय सहारा मंें प्रकाशित।
सरकार !---- सुरेंद्र किशोर
2014 में लाल किले से अपने पहले संबोधन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मैं ‘न तो खुद खाऊंगा और न किसी को खाने दूंगा।’
पर, इस 15 अगस्त को उन्हंे यह कहना पड़ा कि भ्रष्टाचार से सरकार के साथ- साथ हर व्यक्ति को हर स्तर पर लड़ना होगा।क्योंकि यह दीमक की तरह लग गया है और मर्ज गहरा और व्यापक है।
ताजा टिप्पणी उनके पांच साल के अनुभवों का परिणाम है।
उन्होंने बिलकुल ठीक कहा है कि इस दीमक से हर व्यक्ति को हर स्तर पर लड़ना चाहिए।
पर खुद सरकार इस संबंध में जो कुछ कर सकती है, पहले वह काम तो करे।
साधारण उपचारों से काम नहीं चल रहा है तो वह भ्रष्टाचार पर भी ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करना ही पड़ेगा।
इस देश के भ्रष्टाचार पर समय- समय पर अनेक बड़े नेता कुछ न कुछ कड़ी बातें बोलते रहे हैं,पर जब कुछ करने का अवसर आता है तो वे उसी व्यवस्था के अंग बन जाते हैं।
या फिर व्यवस्था उन्हें अपने में समेट लेती है।
खुशी की बात है कि भ्रष्टाचार की व्यवस्था ने नरेंद्र मोदी को अब तक अपने -आप में समाहित नहीं किया है।
1998 में मन मोहन सिंह ने कहा था कि ‘इस देश की पूरी व्यवस्था सड़ चुकी है।’
प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आजादी के तत्काल बाद कहा था कि कालाबाजारियों को नजदीक के लैम्प पोस्ट से लटका देना चाहिए।
प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने 100 पैसे से 85 पैसे के बिचैलियों के पास चले जाने की हकीकत का रहस्योद््घाटन किया।
हां,इंदिरा गांधी ने जरूर किसी तरह की कार्रवाई की घोषणा का दिखावा नहीं किया।
उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार तो विश्वव्यापी समस्या है,यह सिर्फ इसी देश में थोड़े ही है।
हां,नरेंद्र मोदी की बातों और उनके कर्मों से यह लगता है कि वे भ्रष्टाचार से उसी तरह लड़ना चाहते हैं जिस तरह आतंकवाद से।
वैसे भी यह आतंकवाद से कम खतरनाक है भी नहीं भ्रष्टाचार ।
भ्रष्टाचार से निर्णायक लड़ाई की शुरूआत मोदी सरकार दो -तीन प्रारंभिक कदमों के साथ कर सकती है,यदि वह इस सांड को उसकी सींग से पकड़ना चाहती है तो।
पहले कदम के रूप में सांसद क्षेत्र विकास फंड को तत्काल बंद कर देना चाहिए।
यह फंड , ‘भ्रष्टाचार के रावण’ की नाभि का अमृत कुंड बन चुका है।
जानकार लोग बताते हैं कि इस फंड में से 40 से 50 प्रतिशत राशि कमीशन खोरी में चली जाती है।
सभी सांसद या अफसर तो रिश्वत नहीं लेते।पर अधिकतर लेते हैं।इस मद में रिश्वतखोरी के आरोप में एक सांसद की सदस्यता भी जा चुकी है।स्टिंग आपरेशन में फंसे थे।
अनेक आई.ए.एस.अफसरों को अपने सेवा काल के प्रारंभिक वर्षों में ही सासंद फंड ‘चखने’ का अवसर मिल जाता है। वैसी लत सेवाकाल के आखिरी वर्षों तक बनी रहती है।
आगे जाकर वे क्या -क्या गुल खिलाते रहते हैं,उसका सीधा अनुभव प्रधान मंत्री को मिल रहा है।
नब्बे के दशक में प्रधान मंत्री पी.वी.नरसिंह राव को हर्षद मेहता से एक करोड़ रुपए घूस लेने का आरोप लगा था।
उसी राव साहब ने 1993 में इस फंड को शुरू करके पूरी राजनीति को ही गंदा बना देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।उनकी नाक कटी तो उन्होंने अधिकतर की नाक कटवा देने की भूमिका तैयार कर दी।
सांसद फंड को सांसदों के दबाव के कारण तब से किसी भी प्रधान मंत्री को बंद करने की हिम्मत नहीं हुई।पर यदि है तो यह हिम्मत सिर्फ नरेंद्र मोदी में है,ऐसा अनेक लोग महसूस कर रहे हैं।
मोदी जी इस नाभि पर वार किए बिना रावण को कत्तई नहीं मार सकेंगे !
नब्बे के दशक में एन.सी.सक्सेना केंंद्र सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के सचिव थे।
उन्होंने कहा था कि इस देश के भ्रष्टाचार में जोखिम कम और लाभ ज्यादा है।इसीलिए वह नहीं रुक रहा है।
वर्मा अपने सेवाकाल में डायरेक्ट बेनिफिट स्कीम यानी बैंक खाताओं में सीधे पैसे भेजने पर सबसे अधिक जोर देते थे।
अब सवाल है कि भ्रष्टाचार को अधिक जोखिम और कम लाभ का धंधा कैसे बनाया जाए।
यह काम तो सरकार ही कर सकती है।
भ्रष्टाचार के लिए फंासी की सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए।
क्योंकि भ्रष्टाचार के कारण लोगों की जानें भी जाती रहती हैं।
अमीर देशों में भ्रष्टाचार लोगों की सुख सुविधा में थोड़ी कमी कर देता है,पर हमारे यहां तो जान ही ले लेता है।
इस देश में शायद ही कोई खाद्य या भोज्य पदार्थ हो जिसमें मिलावट नहीं है।
दवाओं की मिलावट सीधे -सीधे जान ले लेती है।
हां,सिर्फ जहर में मिलावट जान बचा लेती है।
रिश्वत लेकर संबंधित पदाधिकारी मिलावट की छूट दे देते हैं।
निचले स्तर के घूसखोर कर्मियों को ऊपर के अफसर बचा लेते हैं।
यानी जब घूसखोरी से जान जाती हो तो इसके कसूरवार को फांसी की सजा क्यों नहीं ?
भ्रष्टाचार बढ़ने या फिर बने रहने का एक बड़ा कारण यह है कि बड़े अफसरों के खिलाफ अभियोजन की शुरूआत करने की जल्दी अनुमति नहीं मिलती।
इस स्थिति को बदलने का काम तो प्रधान मंत्री ही कर सकते हैं।
कुछ साल पहले लोक सभा के 10 और राज्य सभा के एक सदस्य की सदस्यता चली गई थी।सदस्यता संसद ने ही ली।उन पर घूसखोरी के आरोप थे।आरोप साबित हो गया।
टी.वी.चैनल के स्टिंग आपरेशन में वे पकड़े गए थे।
पर सवाल है कि सिर्फ सांसदों तक ही ऐसी कार्रवाई क्यों सीमित रहे ?
स्टिंग आपरेशन को कानूनी मान्यता भी मिले।
यदि फोरेंसिक जांच से वीडियो कसैट सही साबित हो जाए तो उसे अदालत में भी सबूत माना जाए,ऐसी कानूनी व्यवस्था हो।इससे कानून व्यवस्था भी बेहतर होगी।
इससे माॅब लिंचिंग को कम करने में भी सुविधा होगी।
भ्रष्ट सरकारी अफसरों के खिलाफ ऐसे सफल स्टिंग आपरेशन करने वालों को सरकार भारी इनाम दे।
ऐसे व इस तरह के दूसरे उपायों को पहले खुद सरकार अपनाए।फिर तो भ्रष्ट लोगों के खिलाफ अभियान चलाने के लिए आम लोग भी उत्साहित होंगे।
अभी तो अनेक लोगों को यह लगता है कि भ्रष्टाचार कम होेने वाला है नहीं।
इस धारणा को सरकार पहले खत्म करने का ठोस उपाय करे।एम.पी.फंड की समाप्ति के साथ सरकार का पहला कदम उठे।
- 18 अगस्त 2019 के हस्तक्षेप-राष्ट्रीय सहारा मंें प्रकाशित।
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