शनिवार, 31 अगस्त 2019

अब हम झांकें पूर्वजों की ओर
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बाजरा,जौ,चना,मंूग,सोयाबीन,मक्का,रागी,मड़ुआ,और सफेद तिल।
राज्य सभा सांसद आर.के.सिन्हा के अनुसार ये अन्न ऐसे हैं सामान्यतः जिनके फूल रासायनिक खाद या कीटनाशक बर्दाश्त नहीं कर सकते।
यानी, ये कैंसरजनित नहीं हैं।
इन्हें समान मात्रा में मिलाकर पिसवाइए और इसकी रोटी खाइए।
यदि ‘दारा’ दरवाना हो तो वह भी कर सकते हैं।
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इसके विपरीत बाजार में जो चावल,गेहूं या आटा उपलब्ध है,उनमें रासायनिक खाद कीटनाशक के अंश हैं,जो कैंसर पैदा कर सकते हैं।
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आर.के.सिन्हा सहित इस देश-प्रदेश में कई प्रमुख व अग्र सोची लोग जैविक खाद के सहारे अपने खेतों में अन्न उपजा रहे हैं।
खुद को और अपनी अगली पीढि़यों को भी बचाना है 
तो यह काम बड़े पैमाने पर करना होगा।
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इस बीच प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि ‘आज हम देखते हैं कि जिस भोजन को हमने छोड़ दिया,उसको दुनिया ने अपनाना शुरू कर दिया।
 जौ,ज्वार,रागी,कोदो,सामा, बाजरा, सावां ऐसे अनाज कभी हमारे खानपान का हिस्सा हुआ करते थे।
लेकिन ये हमारी थालियों से गायब हो गए।
अब इस पोषक आहार की पूरी दुनिया में डिमांड है।’
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गांधी और उनके युग के अनेक नेतागण लोगों को खानपान के प्रति भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से सावधान -शिक्षित करते रहते थे।
हमने बचपन में यह काम करते पूर्व मंत्री जगलाल चैधरी को देखा था।
जबकि वे खुद फोर्थ इयर तक  मेडिकल की पढ़ाई पढ़ चुके थे।
उनका निजी जीवन भी सकारात्मक संदेश देता था।
इसके विपरीत अपवादों को छोड़कर आज के अनेक नेता-कार्यकत्र्ता खुद शराब पीते हैं,लोगों को पिलाते हैं तथा गलत खानपान करते थे।
नशे की हालत में भी सामाजिक समारोहों में भी जाते नेताओं को देखा जा सकता है।
परिणामस्वरूप असमय मृत्यु का प्राप्त होते जा रहे हैं।
कोई प्रतिपक्षी नेता किसी पर मारक मंत्र नहीं चला रहा  है।
ऐसा इसलिए भी है क्योंकि राजनीति में बहुत काला धन है।
सेवा के बदले धनोपार्जन व ऐय्याशी के तत्व राजनीति पर हावी हैं।
 ऐसे लोगों से भला कोई क्या सीखेगा ? 
नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं को चाहिए कि वे पोषक आहार का सरकारी स्ता पर प्रचार करें।
उसे उपजवाने के व्यापक उपाय करें।
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डा.राम मनोहर लोहिया पहले सिगरेट बहुत पीते थे।
उनकी देखादेखी उनके दल के अनेक कार्यकत्र्ता सिगरेट पीने लगे।
उनका स्वास्थ्य खराब होेने लगा।
इस पर मामा बालेश्वर दयाल ने लोहिया को पत्र लिखा।
आप सिगरेट छोड़ दीजिए।
लोहिया ने छोड़ दिया।
उसका सकारात्मक असर समाजवादी कार्यकत्र्ताओं पर भी पड़ा। 
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एक व्यक्तिगत अनुभव
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मेरे बाबू जी घर में अक्सर तीसी का ‘परेह’ यानी दाल बनवाते थे और भात या रोटी के साथ खाते थे।
उन्हें प्रोस्टेट की बीमारी नहीं हुई।
हमने शहर आकर यह सब छोड़ दिया।
मुझे प्रोस्टेट का आपरेशन कराना पड़ा।
अब तीसी तथा अन्य पांच पदार्थों से बना चूर्ण रोज खाता हूं।
उससे प्रोस्टेट को राहत है।   
  















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