स्वतंत्रता दिवस पर एक स्वतंत्रता सेनानी की सदिच्छा !
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जनता-प्रतिनिधि-सरकार सहकार के पक्षधर थे जेपी
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‘ मुझे लगता है कि जनतंत्र को मजबूत बनाने और उसका सफलतापूर्वक संचालन करने के लिए यह जरूरी है कि केवल चुने हुए प्रतिनिधियों
और प्रशासनिक तंत्र पर ही आधार न रखकर उत्तरोत्तर अधिक से अधिक लोगों को इस सारी प्रक्रिया में शरीक किया जाए।
जनतंत्र को इस प्रकार लोक सम्मति और लोक सहकार का व्यापक आधार देना जरूरी है।इसीलिए गांधी जी ने आजादी के बाद सबसे ज्यादा जोर व्यापक लोक शिक्षण के द्वारा सामान्य नागरिक की चेतना को जागृत करने और लोक शक्ति को संगठित
करने पर दिया था।
इसके बिना लोकतंत्र की जड़ें मजबूत नहीं हो सकतीं।’
उपर्युक्त बातें सन् 1978 में जय प्रकाश नारायण ने तत्कालीन जनता पार्टी अध्यक्ष चंद्र शेखर को लिखे पत्र में कही थीं।
जनता पार्टी के एक साल के शासन के बाद ही जेपी ने लिखा था कि सन 1977 में लोक सभा चुनावों के समय जनता में जो अभूतपूर्व उत्साह और आशा का संचार हुआ था,वह कुल मिलाकर ठंडा पड़ गया है।जनता मेें निराशा की भावना बढ़ रही है।
इसके कारणों में हमें जाना चहिए।जेपी के पत्र से अलग एक बात याद रखने की है। मोरारजी देसाई के शासन काल में चीजों के दाम स्थिर थे।कोई बड़ा सरकारी घोटाला भी नहीं हुआ था।उन दिनों के अधिकतर नेतागण आज के अधिकतर नेताओं के अपेक्षा अधिक ईमानदार और कर्मठ थे।इसके बावजूद वह सरकार जेपी की कसौटी पर खड़ी उतर नहीं रही थी।
जेपी ने अपने लंबे पत्र में मोरारजी की सरकार के कुछ कामों की सराहना की ,पर कुछ अन्य मामलों में उन्होंने लिखा कि जनता की कुछ अपेक्षाएं पूरी नहीं हो पा रही हैं।जेपी सरकार चलाने में जनता का सहकार चाहते थे।
जेपी ने तब चंद्र शेखर को यह भी लिखा था कि जनता,शासन और जन प्रतिनिधि के बीच सहकार बढ़ाने के रास्ते में यदि पुराना प्रशासनिक दष्टिकोण,नियम या कार्य पद्धति आड़े आ रहे हों तो उन्हें हमें बदल देना चाहिए।जनता पर भरोसा करना चाहिए।
भ्रष्टाचार की चर्चा करते हुए जेपी ने लिखा था कि विकास और निर्माण की योजनाएं तो पिछले वर्षों में बहुत बनीं, पर ंभ्रष्टाचार उनकी सफलता में सबसे बड़ी बाधा बन गया है।हमारी मौजूदा प्रशासनिक पद्धति और तंत्र भी भ्रष्टाचार के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है।भ्रष्टाचार कम करने के लिए यह आवश्यक है कि अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही मौजूदा शासन पद्धति और नियमों में ,विकास और निर्माण के लक्ष्य की पूत्र्ति को सामने रख कर आवश्यक परिर्वतन किया जाए।
राजनीतिक रीति नीति और चुनाव की मौजूदा प्रणाली के कारण भी भ्रष्टाचार बढ़ गया है।
भ्रष्टाचार के इन विभिन्न रूपों पर ध्यान देकर उनका निराकरण करना जरूरी है।
बिहार आंदोलन की याद दिलाते हुए जेपी ने लिखा था कि आपको यह ध्यान दिलाने की आवश्यकता नहीं है कि 1974-75 में जो जन आंदोलन खड़ा हुआ था,उसका लक्ष्य केवल कुछ बातोें में सुधार करने का नहीं था।
बल्कि उसका लक्ष्य भारत के सार्वजनिक जीवन को,संकुचित अर्थ में राजनीति नहीं,बल्कि पौलिटी के व्यापक अर्थ में देश की अपनी संस्कति ,परंपरा और प्रतिभा के अनुकूल मोड़ देने का था।
1977 में जनता में जो अभूतपूर्व उत्साह प्रकट हुआ था,वह भी केवल सत्ता परिवत्र्तन के लिए नहीं था।बल्कि एक नये समाज के निर्माण की आकांक्षा का दयोतक था।दुर्भाग्य से अभी तक हम उस अवसर को पकड़ नहीं पाये।अब भी इस बारे में गहराई से चिंतन शुरू होना चाहिए और भारत के पुनर्निर्माण के लिए जनता की जो आकांंक्षा जागृत हुई थी,उसका समुचित उपयोग होना चाहिए।
राजनीतिक इच्छाशक्ति की चर्चा करते हुए जेपी ने लिखा कि ऊपर मैंने जो बातें गिनाई हैं,वे केवल उदाहरण के रूप में नहीं ,बल्कि मेरी दृष्टि से वे
राष्ट्र की प्रगति और विकास के लिए आवश्यक है।
इसलिए प्राथमिकताओं के रूप में मैंने उनका जिक्र किया है।
पर इन कामों को सफल बनाने के लिए जो चीज आवश्यक है,वह है राष्ट्र की सम्मिलित संकल्प शक्ति या पोलिटिकल विल।
आज केंद्र के अलावा कई राज्यों में जनता पार्टी की सरकारें हैं।पर कई अन्य प्रदेशों में अलग- अलग दलों की सरकारें भी हैं।देश के निर्माण के लिए इन सबकी आम सहमति या कानसेंसस विकसित होना आवश्यक है।
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