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nqcyk gksrk izfri{k&&& सुरेंद्र किशोर
विधि विरुद्ध क्रिया कलाप निवारण संशोधन विधेयक,2019
पर एक कांग्रेसी सांसद ने सवाल उठाया है कि‘इतने कड़े
प्रावधान जोड़ने के पीछे आखिर सरकार की मंशा क्या है ?’
ऐसे सवालों का भला क्या जवाब हो सकता है ?
अमेरिका सहित जिन -जिन देशों को आतंकवादियों की हिंसा झेलनी पड़ती है,वे अपने यहां संबंधित कानूनों को कड़ा करते जाते हैं।
पर, अपना ही एक देश है जहां ऐसे खतरों के बावजूद मनमोहन सरकार ने 2004 में पोटा कानून यानी प्रिवेंसन आॅफ टेररिज्म एक्ट 2002 को ही समाप्त कर दिया था।
उससे पहले राजग सरकार ने 2002 मंे ‘पोटा’ बनाया था।
पर जब 2008 में मुम्बई पर भीषण आतंकी हमला हुआ तो मनमोहन सरकार को एक नया आतंक विरोधी कानून बनाना पड़ा।
मौजूदा मोदी सरकार को यदि यह लग रहा है कि बढ़ते आतंकी खतरों के मुकाबले के लिए कानून को कड़ा करने की सख्त जरूरत है तो वह वैसा कर रही है।
नरेंद्र मोदी सरकार को ऐसा ही करने के लिए जनादेश भी मिला है।
देश को बाहरी और भीतरी खतरों से बचाने के काम में जो सरकार विफल होती या कमजोर दिखाई पड़ती है,उसे मतदाता उलट देते हैं।
नरेंद्र मोदी सरकार उस स्थिति से भरसक बचना चाहती है।
इसीलिए यह पहली घटना है कि देश ने लगातार दूसरी बार किसी नेता को प्रधान मंत्री पद के लिए चुना है।
मोदी सरकार के 2014 से 2019 तक के कामकाज को अधिकतर मतदाताओं ने पसंद किया तभी तो फिर चुन लिया।
मोदी सरकार पिछले पांच वाली शैली
को ही और बेहतर बनाते हुए आगे बढ़ रही है।
प्रतिपक्ष को यह नहीं भूलना चाहिए कि इस देश के मतदाता
कभी गलत निर्णय नहीं करते।उस समय भी नहीं जब 1971 में इंदिरा गांधी की जीत हुई।उस समय भी जनता सही ही थी जब 1977 में कांग्रेस जमीन पर आ गई।
1984 और 1989 के लोक सभा चुनावों में भी मतदाताओं ने सही निर्णय ही किए।
यदि आज का प्रतिपक्ष अपनी पिछली गलतियों को सुधारने की कोशिश करे तो वह अगले चुनावों में बेहतर कर सकती है।हालांकि सत्ता तब भी उससे दूर ही रहेगी,ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है।
पर मिल रहे संकेतों से यह लगता है कि उसे अपनी गलतियों के साथ ही जीना या मरना मंजूर है।ताजा आतंक विरोधी विधेयक पर शंका उठाना भी वैसा ही संकेत दे रहा है।
2014 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस की अभूतपूर्व पराजय के बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने हार केे कारणों की पड़ताल करने का भार पूर्व रक्षा मंत्री ए.के. एंटोनी को सौंपा था।
एंटोनी ने अपनी रपट में अन्य बातों के अलावा यह भी कहा कि भ्रष्टाचार और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के कारण हम हारे।
क्या 2014 और 2019 के बीच कांग्रेस ने उस गलती को सुधारने की कोई कोशिश भी की ?
कत्तई नहीं।
नतीजतन 2019 के चुनाव में एक बार फिर राजग सत्ता में आ गया।
राजग यह बात बेहतर जानता है कि कौन से कानून कड़ा करने से देश व जनता का भला होगा और आतंकियों का हौसला पस्त होगा ।
उसे इस मामले में किसी निहितस्वार्थी की सलाह पर चलने की न तो उसे कोई जरूरत है और न ही उसकी मजबूरी है।
संकेत हैं कि अभी तो मोदी सरकार को और भी चैंकानेवाले काम करने हैं।
जनता ने यूं ही नहीं नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार दुबारा अपना विश्वास व्यक्त किया है।
इससे पहले जवाहर लाल नेहरू,इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी दुबारा प्रधान मंत्री बने थे।
पर उनकी जीत अलग कारणों से हुई।वह सिर्फ उनके ही कारण नहीं थी।
सत्तर के दशक तक इस देश में बड़ी संख्या में ऐसे -ऐसे अनेक दिग्गज स्वतंत्रता सेनानी भी जीवित थे जिनकी और जिनके समर्थकों की चुनावी जीत में उनके खुद के त्याग- -तपस्या का भी योगदान था।
जवाहरलाल नेहरू बड़े लोकप्रिय नेता थे।पर सभी कांग्रेसी उम्मीदवारों की जीत सिर्फ उनके ही कारण नहीं होती थी।
इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की 1967 की जीत के पीछे देश भर में फैले अनेक मशहूर स्वतंत्रता सेनानियों का भी योगदान था।
हां,1971 की जीत सिर्फ इंदिरा जी की अपनी जीत जरूर थी।पर वह जीत दुहरा नहीं सकीं।
अटल नीत राजग 1999 में दुबारा जीत गया था।वह सिर्फ भाजपा या अटल बिहारी वाजपेयी की जीत नहीं थी बल्कि गठबंधन की जीत थी।
इस पृष्ठभूमि में 2014 और 2019 के चुनावों में नरेंद्र मोदी की जीत सिर्फ उनकी जीत मानी जाती है।
नरेंद्र मोदी सरकार का देश की सुरक्षा और प्रशासनिक सदाचार के मामले में हाल की अन्य सरकारों की अपेक्षा बेहतर रिकाॅर्ड है।
आम लोग उससे खुश हैं।अपवादों की बात और है।
मोदी सरकार में भी भ्रष्टाचार है।पर आम धारणा है कि सरकार उसे रोकने की कोशिश भी कर रही है।
आतंकी घटनाएं भी हो रही हैं,पर लोगों की धारणा है कि मोदी सरकार उसे कुचलने की कारगर कोशिश करती रहती है।
भाजपा में भी परिवारवाद है।पर कांग्रेस सहित प्रतिपक्ष के कुछ दलों की तरह ‘परिवार में ही दल’ समाहित नहीं है।
इन सब कारणों से मोदी व उनकी सरकार का ‘अपर हैंड’ है और प्रतिपक्ष दुबला होता जा रहा है।
यदि एंटानी कमेटी की रपट में कांग्रेस की जिन कमजोरियों का जिक्र किया गया है,यदि उन्हें दूर करने की कोशिश कांग्रेस करे तो कांग्रेस से कोई कुछ उम्मीद पाल सकता है।पर वैसा होता नहीं दिख रहा है।
इस स्थिति में संकेत तो यही है कि वंश -तंत्र व दूसरी कमजोरियों से ग्रस्त अनेक दल धीरे -धीरे और भी कमजोर होते चले जाएंगे।
यह स्थिति स्वस्थ लोकतंत्र के लिए कत्तई सही नहीं है,पर इसके लिए नरेंद्र मोदी जिम्मेवार नहीं हैं।
मोदी सरकार इसी गति से खुद को बेहतर कानूनों से लैस करती जाएगी।यदि किसी को लगता है कि कानून सही नहीं है तो फिर उसे सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी चाहिए।संविधान की भावना और मूल ढांचा के विपरीत किसी भी कानून को निरस्त कर देने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास मौजूद है।
विधि विरुद्ध क्रिया कलाप निवारण संशोधन विधेयक,2019
पर एक कांग्रेसी सांसद ने सवाल उठाया है कि‘इतने कड़े
प्रावधान जोड़ने के पीछे आखिर सरकार की मंशा क्या है ?’
ऐसे सवालों का भला क्या जवाब हो सकता है ?
अमेरिका सहित जिन -जिन देशों को आतंकवादियों की हिंसा झेलनी पड़ती है,वे अपने यहां संबंधित कानूनों को कड़ा करते जाते हैं।
पर, अपना ही एक देश है जहां ऐसे खतरों के बावजूद मनमोहन सरकार ने 2004 में पोटा कानून यानी प्रिवेंसन आॅफ टेररिज्म एक्ट 2002 को ही समाप्त कर दिया था।
उससे पहले राजग सरकार ने 2002 मंे ‘पोटा’ बनाया था।
पर जब 2008 में मुम्बई पर भीषण आतंकी हमला हुआ तो मनमोहन सरकार को एक नया आतंक विरोधी कानून बनाना पड़ा।
मौजूदा मोदी सरकार को यदि यह लग रहा है कि बढ़ते आतंकी खतरों के मुकाबले के लिए कानून को कड़ा करने की सख्त जरूरत है तो वह वैसा कर रही है।
नरेंद्र मोदी सरकार को ऐसा ही करने के लिए जनादेश भी मिला है।
देश को बाहरी और भीतरी खतरों से बचाने के काम में जो सरकार विफल होती या कमजोर दिखाई पड़ती है,उसे मतदाता उलट देते हैं।
नरेंद्र मोदी सरकार उस स्थिति से भरसक बचना चाहती है।
इसीलिए यह पहली घटना है कि देश ने लगातार दूसरी बार किसी नेता को प्रधान मंत्री पद के लिए चुना है।
मोदी सरकार के 2014 से 2019 तक के कामकाज को अधिकतर मतदाताओं ने पसंद किया तभी तो फिर चुन लिया।
मोदी सरकार पिछले पांच वाली शैली
को ही और बेहतर बनाते हुए आगे बढ़ रही है।
प्रतिपक्ष को यह नहीं भूलना चाहिए कि इस देश के मतदाता
कभी गलत निर्णय नहीं करते।उस समय भी नहीं जब 1971 में इंदिरा गांधी की जीत हुई।उस समय भी जनता सही ही थी जब 1977 में कांग्रेस जमीन पर आ गई।
1984 और 1989 के लोक सभा चुनावों में भी मतदाताओं ने सही निर्णय ही किए।
यदि आज का प्रतिपक्ष अपनी पिछली गलतियों को सुधारने की कोशिश करे तो वह अगले चुनावों में बेहतर कर सकती है।हालांकि सत्ता तब भी उससे दूर ही रहेगी,ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है।
पर मिल रहे संकेतों से यह लगता है कि उसे अपनी गलतियों के साथ ही जीना या मरना मंजूर है।ताजा आतंक विरोधी विधेयक पर शंका उठाना भी वैसा ही संकेत दे रहा है।
2014 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस की अभूतपूर्व पराजय के बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने हार केे कारणों की पड़ताल करने का भार पूर्व रक्षा मंत्री ए.के. एंटोनी को सौंपा था।
एंटोनी ने अपनी रपट में अन्य बातों के अलावा यह भी कहा कि भ्रष्टाचार और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के कारण हम हारे।
क्या 2014 और 2019 के बीच कांग्रेस ने उस गलती को सुधारने की कोई कोशिश भी की ?
कत्तई नहीं।
नतीजतन 2019 के चुनाव में एक बार फिर राजग सत्ता में आ गया।
राजग यह बात बेहतर जानता है कि कौन से कानून कड़ा करने से देश व जनता का भला होगा और आतंकियों का हौसला पस्त होगा ।
उसे इस मामले में किसी निहितस्वार्थी की सलाह पर चलने की न तो उसे कोई जरूरत है और न ही उसकी मजबूरी है।
संकेत हैं कि अभी तो मोदी सरकार को और भी चैंकानेवाले काम करने हैं।
जनता ने यूं ही नहीं नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार दुबारा अपना विश्वास व्यक्त किया है।
इससे पहले जवाहर लाल नेहरू,इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी दुबारा प्रधान मंत्री बने थे।
पर उनकी जीत अलग कारणों से हुई।वह सिर्फ उनके ही कारण नहीं थी।
सत्तर के दशक तक इस देश में बड़ी संख्या में ऐसे -ऐसे अनेक दिग्गज स्वतंत्रता सेनानी भी जीवित थे जिनकी और जिनके समर्थकों की चुनावी जीत में उनके खुद के त्याग- -तपस्या का भी योगदान था।
जवाहरलाल नेहरू बड़े लोकप्रिय नेता थे।पर सभी कांग्रेसी उम्मीदवारों की जीत सिर्फ उनके ही कारण नहीं होती थी।
इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की 1967 की जीत के पीछे देश भर में फैले अनेक मशहूर स्वतंत्रता सेनानियों का भी योगदान था।
हां,1971 की जीत सिर्फ इंदिरा जी की अपनी जीत जरूर थी।पर वह जीत दुहरा नहीं सकीं।
अटल नीत राजग 1999 में दुबारा जीत गया था।वह सिर्फ भाजपा या अटल बिहारी वाजपेयी की जीत नहीं थी बल्कि गठबंधन की जीत थी।
इस पृष्ठभूमि में 2014 और 2019 के चुनावों में नरेंद्र मोदी की जीत सिर्फ उनकी जीत मानी जाती है।
नरेंद्र मोदी सरकार का देश की सुरक्षा और प्रशासनिक सदाचार के मामले में हाल की अन्य सरकारों की अपेक्षा बेहतर रिकाॅर्ड है।
आम लोग उससे खुश हैं।अपवादों की बात और है।
मोदी सरकार में भी भ्रष्टाचार है।पर आम धारणा है कि सरकार उसे रोकने की कोशिश भी कर रही है।
आतंकी घटनाएं भी हो रही हैं,पर लोगों की धारणा है कि मोदी सरकार उसे कुचलने की कारगर कोशिश करती रहती है।
भाजपा में भी परिवारवाद है।पर कांग्रेस सहित प्रतिपक्ष के कुछ दलों की तरह ‘परिवार में ही दल’ समाहित नहीं है।
इन सब कारणों से मोदी व उनकी सरकार का ‘अपर हैंड’ है और प्रतिपक्ष दुबला होता जा रहा है।
यदि एंटानी कमेटी की रपट में कांग्रेस की जिन कमजोरियों का जिक्र किया गया है,यदि उन्हें दूर करने की कोशिश कांग्रेस करे तो कांग्रेस से कोई कुछ उम्मीद पाल सकता है।पर वैसा होता नहीं दिख रहा है।
इस स्थिति में संकेत तो यही है कि वंश -तंत्र व दूसरी कमजोरियों से ग्रस्त अनेक दल धीरे -धीरे और भी कमजोर होते चले जाएंगे।
यह स्थिति स्वस्थ लोकतंत्र के लिए कत्तई सही नहीं है,पर इसके लिए नरेंद्र मोदी जिम्मेवार नहीं हैं।
मोदी सरकार इसी गति से खुद को बेहतर कानूनों से लैस करती जाएगी।यदि किसी को लगता है कि कानून सही नहीं है तो फिर उसे सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी चाहिए।संविधान की भावना और मूल ढांचा के विपरीत किसी भी कानून को निरस्त कर देने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास मौजूद है।
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