सोनिया गांधी का यह दावा गलत है कि ‘राजीव सरकार
ने किसी को डराने की कोशिश नहीं की थी’
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सोनिया गांधी ने हाल में कहा है कि राजीव गांधी को 1984 में पूर्ण बहुमत मिला था।
लेकिन उन्होंेने उसका इस्तेमाल डर का माहौल बनाने और धमकाने के लिए नहीं किया था।
पी.चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई के बाद 22 अगस्त को सोनिया गांधी ने यह बयान दिया ।
उनका आशय यह था कि मोदी सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को डरा रही है।
मेरा मानना है कि इस देश में न्यायालय स्वतंत्र है।
इसलिए किसी निर्दोष व्यक्ति को डरने की कोई जरूरत ही नहीं।
इस देश का ऐसा कोई मामला मैं नहीं जानता जिसमें किसी बड़े नेता को
फंसा कर अदालत से सजा दिलवा दी गई हो।
औरों की बात कौन कहे ,राजीव सरकार ने तो तब एक बड़े मीडिया हाउस को ही डराने की कोशिश कर दी थी।
केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय के 400 अफसरों व कर्मचारियों ने तब देश भर में फैले इंडियन एक्सप्र्रेस के सभी 11 दफ्तरों पर एक साथ छापा मारा था।
इस पर राजीव गांधी ने कहा था कि यदि प्रेस को स्वतंत्रता हासिल है जांच एजेंसियों को भी स्वतंत्रता है।
यह कहा गया था कि एक्सप्रेस पर जिस तरह की आर्थिक गड़बडि़यों का आरोप लगाया गया था, वैसे मामूली आरोप तो अधिकतर व्यापारियों पर लगते रहे हैं।
अधिकतर अखबारों के मालिक व्यापारी ही होते हैं।
पर तब कार्रवाई सिर्फ एक्सप्रेस पर ही हुई थी।क्योंकि उसने राजीव सरकार के भ्रष्टाचारों का भंड़ाफोड़ करना शुरू कर दिया था।
छापेमारी की उस घटना पर पूर्व प्रधान मंत्री मोराजी देसाई ने कहा था कि भले सरकार इस छापेमारी का औचित्य सिद्ध करने की कोशिश करे,पर लोग उस पर विश्वास नहीं करेंगे।यह प्रेस की स्वतंत्रता पर ही हमला है।
याद रहे कि मोरारजी आम तौर पर ऐसे बयान नहीं दिया करते थे।
उस छापेमारी की व्यापक निंदा हुई थी।यहां तक प्रतिद्वंद्वी अखबारों के संपादकों ने भी छापेमारी की आलोचना की थी।
एक्सप्रेस के अरूण शौरी ने कहा था कि अखबार की संपादकीय नीतियों को प्रभावित करने के लिए देश व्यापी छापेमारियां की गर्इं।
याद रहे कि एक्सप्रेस समूह के अखबार राजीव गांधी सरकार के खिलाफ घोटालों के आरोपों की खबरें विस्तार से छाप रहा था।उस पर सरकार सख्त नाराज थी।मैं भी उन दिनों एक्सप्रेस समूह के दैनिक अखबार जनसत्ता से जुड़ा था।
इतना ही नहीं,राजीव सरकार से विद्रोह करके अलग हुए वी.पी.सिंह के पुत्र अजेय सिंह को बदनाम करने के लिए सेंट किट्स में उनके नाम से जाली बैंक खाता खोलवा दिया गया और उसमें पैसे जमा करवा दिए।
जाली बैंक खाता खोलवाने में केंद्र सरकार के मंत्री और अफसर के हाथ थे।इसके अलावा भी लोक सभा में 404 सीटें पाई राजीव सरकार ने इस तरह के और भी कई कारनामे किए।
कई कारणों से राजीव सरकार बदनाम हुई । नतीजतन 1989 के लोस चुनाव में कांग्रेस को बहुमत तक नहीं मिला।
दरअसल ऐसे बयान देने से पहले नेता लोग यह सोचते हैं कि जनता की स्मरण शक्ति कमजोर होती है।
दूसरी बात ।यह अस्सी के दशक की बात है।
तब से कई दशक बीत चुके हैं।
नई पीढि़यां आ चुकी हैं।
वे शायद सोनिया जी की बातों पर विश्वास कर लेंगी।
इसीलिए मैंने इसे लिख दिया।
हालांकि ऐसा बयान देने का आरोप सिर्फ एक ही पार्टी
पर नहीं लग सकता।अन्य कई दल भी दूध के धुले नहीं हैं।वे भी यदाकदा लोगों की क्षीण स्मरण शक्ति का लाभ उठाने की कोशिश करते रहते हैं।
ने किसी को डराने की कोशिश नहीं की थी’
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सोनिया गांधी ने हाल में कहा है कि राजीव गांधी को 1984 में पूर्ण बहुमत मिला था।
लेकिन उन्होंेने उसका इस्तेमाल डर का माहौल बनाने और धमकाने के लिए नहीं किया था।
पी.चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई के बाद 22 अगस्त को सोनिया गांधी ने यह बयान दिया ।
उनका आशय यह था कि मोदी सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को डरा रही है।
मेरा मानना है कि इस देश में न्यायालय स्वतंत्र है।
इसलिए किसी निर्दोष व्यक्ति को डरने की कोई जरूरत ही नहीं।
इस देश का ऐसा कोई मामला मैं नहीं जानता जिसमें किसी बड़े नेता को
फंसा कर अदालत से सजा दिलवा दी गई हो।
औरों की बात कौन कहे ,राजीव सरकार ने तो तब एक बड़े मीडिया हाउस को ही डराने की कोशिश कर दी थी।
केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय के 400 अफसरों व कर्मचारियों ने तब देश भर में फैले इंडियन एक्सप्र्रेस के सभी 11 दफ्तरों पर एक साथ छापा मारा था।
इस पर राजीव गांधी ने कहा था कि यदि प्रेस को स्वतंत्रता हासिल है जांच एजेंसियों को भी स्वतंत्रता है।
यह कहा गया था कि एक्सप्रेस पर जिस तरह की आर्थिक गड़बडि़यों का आरोप लगाया गया था, वैसे मामूली आरोप तो अधिकतर व्यापारियों पर लगते रहे हैं।
अधिकतर अखबारों के मालिक व्यापारी ही होते हैं।
पर तब कार्रवाई सिर्फ एक्सप्रेस पर ही हुई थी।क्योंकि उसने राजीव सरकार के भ्रष्टाचारों का भंड़ाफोड़ करना शुरू कर दिया था।
छापेमारी की उस घटना पर पूर्व प्रधान मंत्री मोराजी देसाई ने कहा था कि भले सरकार इस छापेमारी का औचित्य सिद्ध करने की कोशिश करे,पर लोग उस पर विश्वास नहीं करेंगे।यह प्रेस की स्वतंत्रता पर ही हमला है।
याद रहे कि मोरारजी आम तौर पर ऐसे बयान नहीं दिया करते थे।
उस छापेमारी की व्यापक निंदा हुई थी।यहां तक प्रतिद्वंद्वी अखबारों के संपादकों ने भी छापेमारी की आलोचना की थी।
एक्सप्रेस के अरूण शौरी ने कहा था कि अखबार की संपादकीय नीतियों को प्रभावित करने के लिए देश व्यापी छापेमारियां की गर्इं।
याद रहे कि एक्सप्रेस समूह के अखबार राजीव गांधी सरकार के खिलाफ घोटालों के आरोपों की खबरें विस्तार से छाप रहा था।उस पर सरकार सख्त नाराज थी।मैं भी उन दिनों एक्सप्रेस समूह के दैनिक अखबार जनसत्ता से जुड़ा था।
इतना ही नहीं,राजीव सरकार से विद्रोह करके अलग हुए वी.पी.सिंह के पुत्र अजेय सिंह को बदनाम करने के लिए सेंट किट्स में उनके नाम से जाली बैंक खाता खोलवा दिया गया और उसमें पैसे जमा करवा दिए।
जाली बैंक खाता खोलवाने में केंद्र सरकार के मंत्री और अफसर के हाथ थे।इसके अलावा भी लोक सभा में 404 सीटें पाई राजीव सरकार ने इस तरह के और भी कई कारनामे किए।
कई कारणों से राजीव सरकार बदनाम हुई । नतीजतन 1989 के लोस चुनाव में कांग्रेस को बहुमत तक नहीं मिला।
दरअसल ऐसे बयान देने से पहले नेता लोग यह सोचते हैं कि जनता की स्मरण शक्ति कमजोर होती है।
दूसरी बात ।यह अस्सी के दशक की बात है।
तब से कई दशक बीत चुके हैं।
नई पीढि़यां आ चुकी हैं।
वे शायद सोनिया जी की बातों पर विश्वास कर लेंगी।
इसीलिए मैंने इसे लिख दिया।
हालांकि ऐसा बयान देने का आरोप सिर्फ एक ही पार्टी
पर नहीं लग सकता।अन्य कई दल भी दूध के धुले नहीं हैं।वे भी यदाकदा लोगों की क्षीण स्मरण शक्ति का लाभ उठाने की कोशिश करते रहते हैं।
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