शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

इतिहास के पन्नों से --3
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जब जेपी को मिला रेमान मैगसेसाय पुरस्कार
  सुरेंद्र किशोर
‘‘जय प्रकाश नारायण आधुनिक भारत में जन चेतना की रचनात्मक अभिव्यक्ति हैं।
उनमें यह देख और कह सकने का साहस रहा है कि 
स्वाधीनता ,राष्ट्रीयता और समाजवाद जैसी संस्थाएं इंसान की बिलकुल बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में अपने आप में पर्याप्त नहीं है।
  जब दफ्तरशाही ,सत्ता के केंद्रीकरण और गलत व्याख्या के कारण ,ये अत्याचार की सहचरियां बन जाती हैं तब इनमें कोई सार नहीं रहता।
इसीलिए जयप्रकाश नारायण व्यक्ति को उसकी मुक्तिकांक्षा और समानता -साधना को सर्वोपरि मानते हैं।’’
जय प्रकाश नारायण को जन सेवा के लिए मैगसेसाय पुरस्कार प्रदान करते हुए उनकी प्रशस्ति में उपर्युक्त बातेें कही गई थीं।
   1965 में उन्हें  मिला   पुरस्कार लगभग 50 हजार रुपए का था।
 कहीं मैंने पढ़ा था कि इसके सूद के पैसे  जेपी के निजी
खर्च में लगते थे।
  मैगसेसाय मिलने पर ‘दिनमान’ ने लिखा था  कि 
‘ जवाहरलाल नेहरू के बाद भारतीय राजनीति में सर्वाधिक प्रभावशाली जय प्रकाश नारायण का जन्म 1902 में बिहार के सारण जिले के सिताब दियारा में हुआ था।
@याद रहे कि सिताब दियारा का वह टोला बाद में उत्तर प्रदेश में चला गया।हालांकि जेपी पटना में रहते थे।गांव की उनकी खेती की देखभाल उनके विश्वस्त जगदीश सिंह करते थे@
मैट्रिक के बाद महात्मा गांधी के प्रभाव में आकर जेपी ने पढ़ाई छोड़ दी।
1922 में अपनी पढ़ाई आगे चलाने के लिए वे अमेरिका गये।
उन्होंने वहां सात वर्ष तक कैलीफोर्निया,विसकांसिन और कोलम्बिया विश्व विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की।
समाजशास्त्र की ड्रिग्री लेकर स्वदेश लौटे।
1934 में उन्होंने कांग्रेस के भीतर ही  कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनाई।
 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का संचालन किया।अपने विद्रोही साहसी व्यक्तित्व के कारण वे राजनीति में जन नायक के रूप में आये।
 आजादी के बाद अपनी सिद्धांतप्रियता के कारण वह राजनीति के क्षेत्र में अकेले होते गये और उनके साथ खोये अवसरों का इतिहास जुड़ता गया।
देश के सामने आई हर प्रमुख समस्या का उन्होंने अपने ढंग से निदान दिया।लेकिन उन्हें अल्पमत ही प्राप्त हुआ।
और आज वह सक्रिय राजनीति से दूर एक सर्वोदयी नेता ही माने जाते हैं।






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