सोमवार, 19 अगस्त 2019

दिवंगत डा.जगन्नाथ मिश्र की याद में 
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डा.जगन्नाथ मिश्र ने बिहार में राजनीति व प्रशासन को लंबे 
समय तक सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ढंग से प्रभावित किया।
उनकी वे सब कहानियों देर -सवेर कही ही जाएंगी।
  पर मैं संक्षेप में उनसे जुड़ी हुई एक छोटी सी कहानी आज कहूूूूूूूूूूूूूूूूूूूंगा।
  मैंने पाया कि डा.मिश्र आम तौर पर पत्रकारों से व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं पालते थे।
यदि कोई अपवाद है तो मैं नहीं जानता।
हां, इंडियन नेशन समूह से उनकी जरूर ठन गई थी।
उनका प्रेस बिल एक काला अध्याय था।
पर वह समूह की बात अधिक थी,व्यक्ति की कम ।
 मुख्य मंत्री के रूप में उनके अच्छे -बुरे कामों -निर्णयों के बारे में मैं बराबर लिखा करता था।
  विरोध वाली रपटों पर वे व उनके कुछ खास समर्थक बहुत नाराज रहते थे।
खुद डा.मिश्र ने कोशिश की थी कि दैनिक आज
का प्रबंधन मेरा पटना से कहीं बाहर तबादला कर दे।
पर ‘आज’ने मुख्य मंत्री की बात नहीं मानी।
इसको लेकर आज प्रबंधन का शुक्रगुजार रहा हूं।
सरकारी विज्ञापनों पर निर्भर कोई अखबार जल्दी मुख्य मंत्री की बात नहीं टालता।
एक अन्य सत्ताधारी नेता ने तो बाद के वर्षों में अखबारों से एकाधिक पत्रकारों को नौकरी से ही निकलवा दिया था।
  इस पृष्ठभूमि में जगन्नाथ जी उदार लगे  थे।वे सिर्फ तबादला चाहते थे।खैर इस बीच जनसत्ता में मेरी नौकरी हो गई और ‘आज’ प्रबंधन का मानसिक बोझ समाप्त हो गया।
  पर जब डा.मिश्र ने अपना दैनिक ‘पाटलिपुत्र टाइम्स’ निकाला तो उन्होंने सी.पी.आई.के एम.एल.सी. सह पत्रकार सह डा.मिश्र के  मौसरे भाई चंद्र मोहन मिश्र से कहा कि आप जनसत्ता वाले से पूछिए कि क्या वह पाटलिपुत्र में काम करेगा ?
  चंद्र मोहन जी के यहां मैं अक्सर जाया करता था।मिलने पर उन्होंने मुझसे कहा कि मैंने जगन्नाथ जी को तो जवाब दे दिया है कि जनसत्ता छोड़कर वह आपके यंहा क्यों आएगा,फिर भी मैं आपसे पूछ रहा हूं कि आप पाटलिपुत्र ज्वाइन करिएगा ?
मैंने कहा कि आपने जगन्नाथ जी को ठीक ही कहा था।दरअसल मेरा अनुभव रहा है कि अखबार के ‘नेता मालिक’ की अपेक्षा ‘व्यापारी मालिक’ बेहतर होते हैं।
  वैसे मुझे जगन्नाथ जी की इस उदारता पर सुखद आश्चर्य हुआ कि जिस पत्रकार ने उनकी इतनी नींद हराम की थी,उसके प्रति कोई कटुता नहीं !!?

  

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