मंगलवार, 20 अगस्त 2019

पद्मा सचदेव की अधूरी आस
-----------------
सन 1982 में शेख अब्दुल्ला के निधन के बाद पद्मा सचदेव ने धर्मयुग में उन पर लंबा लेख लिखा था।
उसकी कुछ पंक्तियां यहां प्रस्तुत हैं।
‘ मेरे मन में एक अरमान था।
महाराजा के जमाने का बना यह कानून कि रियासत के बाहर ब्याही लड़कियों को अपने मैके में दो गज जमीन खरीदने का भी हक न होगा,किसी रोज शेख साहब खत्म कर देंगे।
और मैं शिवालिक की अपनी पहाडि़यों पर एक घर बना सकूंगी।
मैंने सुना है,बेग साहब ने इस पर कुछ आवाज भी उठाई थी।
पर कुछ न हुआ।
मुझे याद आ रहा है कश्मीरी के शायर गुलाम रसूल आजाद का कलाम,
काबुक निशान थोमुत,
बुतखान त्सेई बनोभुत,
गीताई क्या खता कोर,
बनतम कुरान वाले ।
 इसका अर्थ है--‘काबा का निशां रक्खा,बुतखाना भी तुमने बनाया।गीता ने क्या खता की है,कुरान वाले ये तो बताओ।’
यह सवाल कभी मैं जिससे करना चाहती थी ,आज वह चला गया है।’
--धर्मयुग-19 सितंबर 1982
---याद रहे कि जम्मू में जन्मी पद्मा की शादी बाहर  हुई--




कोई टिप्पणी नहीं: