पटना में एक और विधायक काॅलोनी का प्रस्ताव
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प्रस्ताव है कि पटना के आशियाना-दीघा रोड पर
विधायक काॅलोनी बसाई जाए।
जिस जमीन पर बसाई जाएगी,वह बिहार राज्य आवास बोर्ड की है।
पटना में कहीं न कहीं एक और विधायक काॅलोनी तो बसाई ही जानी चाहिए।
पर, दीघा स्थित आवास बोर्ड की उस जमीन पर बसाने से पहले भावी आवेदक विधायकों को अपनी आत्मा से एक सवाल जरुर पूछना चाहिए,
‘क्या उस जमीन के असली हकदारों को धकिया कर
हम बसेंगे ?’
आवास बोर्ड की उस जमीन के असली हकदार वे हैं जिनके लिए 1972 में वह जमीन बिहार सरकार ने अधिगृहीत की थी।
राज्य सरकार की योजना थी कि सीमित आय वाले लोगों को पटना में सस्ती जमीन दी जाए।
अस्सी के दशक में उन लोगों से दो -दो हजार रुपए आवास बोर्ड ने अग्र धन के रूप में वसूले।
बाद में उनमें से कुछ आवेदकों के नाम कागज पर वहां के कुछ भूखंड आवंटित भी कर दिए गए। उनसे और भी भारी रकम वसूल ली गई।
पर कुछ ही साल पहले आवास बोर्ड ने कह दिया कि हम आपको जमीन नहीं दे सकते।
आप अपने पैसे वापस ले लीजिए।
कुछ लोगों ने वापस ले भी लिए।
पर कुछ अन्य लोगों ने वापस नहीं लिए।
इसलिए नहीं लिए ताकि वे अपनी अगली पीढ़ी के लिए यह सबूत छोड़ जाएं कि राज्य सरकार की वादाखिलाफी के कारण ही उनका परिवार पटना में नहीं बस सका।गांव लौटना पड़ा।
अब उसी जमीन पर कुछ सर्व शक्तिमान विधायकों की नजरें हैं।
हालांकि दैनिक जागरण में छपी खबर के अनुसार अभी सब कुछ प्रारंभिक स्थिति में है।राज्य सरकार ने तय नहीं किया है।
पर,बात जब विधायकों की है तो देर- सवेर कुछ न कुछ होगा ही।
क्या विधायकगण दूसरों का हक मार कर वहां अपने बंगले बनवाएंगे ?
उन बंगलों में कम से कम उन्हें तो अच्छी नींद नहीं आएगी जिनका जमीर अब भी जिंदा होगा।
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प्रस्ताव है कि पटना के आशियाना-दीघा रोड पर
विधायक काॅलोनी बसाई जाए।
जिस जमीन पर बसाई जाएगी,वह बिहार राज्य आवास बोर्ड की है।
पटना में कहीं न कहीं एक और विधायक काॅलोनी तो बसाई ही जानी चाहिए।
पर, दीघा स्थित आवास बोर्ड की उस जमीन पर बसाने से पहले भावी आवेदक विधायकों को अपनी आत्मा से एक सवाल जरुर पूछना चाहिए,
‘क्या उस जमीन के असली हकदारों को धकिया कर
हम बसेंगे ?’
आवास बोर्ड की उस जमीन के असली हकदार वे हैं जिनके लिए 1972 में वह जमीन बिहार सरकार ने अधिगृहीत की थी।
राज्य सरकार की योजना थी कि सीमित आय वाले लोगों को पटना में सस्ती जमीन दी जाए।
अस्सी के दशक में उन लोगों से दो -दो हजार रुपए आवास बोर्ड ने अग्र धन के रूप में वसूले।
बाद में उनमें से कुछ आवेदकों के नाम कागज पर वहां के कुछ भूखंड आवंटित भी कर दिए गए। उनसे और भी भारी रकम वसूल ली गई।
पर कुछ ही साल पहले आवास बोर्ड ने कह दिया कि हम आपको जमीन नहीं दे सकते।
आप अपने पैसे वापस ले लीजिए।
कुछ लोगों ने वापस ले भी लिए।
पर कुछ अन्य लोगों ने वापस नहीं लिए।
इसलिए नहीं लिए ताकि वे अपनी अगली पीढ़ी के लिए यह सबूत छोड़ जाएं कि राज्य सरकार की वादाखिलाफी के कारण ही उनका परिवार पटना में नहीं बस सका।गांव लौटना पड़ा।
अब उसी जमीन पर कुछ सर्व शक्तिमान विधायकों की नजरें हैं।
हालांकि दैनिक जागरण में छपी खबर के अनुसार अभी सब कुछ प्रारंभिक स्थिति में है।राज्य सरकार ने तय नहीं किया है।
पर,बात जब विधायकों की है तो देर- सवेर कुछ न कुछ होगा ही।
क्या विधायकगण दूसरों का हक मार कर वहां अपने बंगले बनवाएंगे ?
उन बंगलों में कम से कम उन्हें तो अच्छी नींद नहीं आएगी जिनका जमीर अब भी जिंदा होगा।
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