गोल्ड मेडलिस्ट के.बी. सहाय आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे
सन 1963-67 में बिहार के मुख्यमंत्री रहे के.बी.सहाय के बारे में अनेक खट्टी-मिठी यादें हैं। कृष्ण बल्लभ सहाय अत्यंत मेधावी छात्र थे। उन्हें एक बार स्वर्ण पदक भी मिला था। उन्हें अच्छी से अच्छी नौकरी मिल सकती थी। पर उन्होंने संघर्ष का जीवन चुना। आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।
1937 में संसदीय सचिव व 1946 में राजस्व मंत्री बने। जमीन्दारी उन्मूलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। बाद के वर्षों में वे विवादों में भी रहे। 1957 में चुनाव हार गए। एक अन्य बड़े कांग्रेसी नेता महेश प्रसाद सिंहा भी तब हारे थे।
इस पर जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. श्रीकृष्ण सिन्हा को पत्र लिखा कि आपने महेश प्रसाद सिन्हा को तो खादी बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया, पर के.बी. सहाय को कुछ नहीं बनाया। इसपर दोनों नेताओं के बीच तीखा व लंबा पत्र-व्यवहार हुआ था।
जेपी ने श्रीबाबू पर जातिवाद का आरोप लगाया तो श्रीबाबू ने जेपी पर वैसा ही आरोप लगाया। उन पत्रों पर आधारित एक पुस्तक डा. एन.एम. पी श्रीवास्तव ने लिखी है। खैर, के.बी. सहाय को बहुत ही सफल प्रशासक माना जाता था। ब्यूरोक्रेसी पर उनकी पूरी पकड़ रहती थी। पर, उनके ही कार्यकाल में पहली बार कांग्रेस 1967 में बिहार विधानसभा का चुनाव हारकर सत्ता से बाहर हो गई।
कुल मिलाकर सहाय जी को इस रूप में याद किया जा सकता है कि उन्होंने अपने निजी जीवन में सुखमय कैरियर का लोभ छोड़कर आजादी की लड़ाई लड़ी थी। आज तो आम तौर पर किसी को जब कोई नौकरी नहीं मिलती तो वह राजनीति में कूद पड़ता है। अपवादों की बात और है।
वंशवाद-परिवारवाद के आधार पर राजनीति में आए अधिकतर लोगों की योग्यता-क्षमता आज अक्सर सवालों के घेरे में रहती है। इसलिए भी राजनीति व प्रशासन का हाल आज देश भर में असंतोषजनक है।
के.बी. सहाय का जन्म 31 दिसंबर 1898 और निधन 3 जून 1974 को हुआ। एक सड़क दुर्घटना में उनकी जान चली गई।
सन 1963-67 में बिहार के मुख्यमंत्री रहे के.बी.सहाय के बारे में अनेक खट्टी-मिठी यादें हैं। कृष्ण बल्लभ सहाय अत्यंत मेधावी छात्र थे। उन्हें एक बार स्वर्ण पदक भी मिला था। उन्हें अच्छी से अच्छी नौकरी मिल सकती थी। पर उन्होंने संघर्ष का जीवन चुना। आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।
1937 में संसदीय सचिव व 1946 में राजस्व मंत्री बने। जमीन्दारी उन्मूलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। बाद के वर्षों में वे विवादों में भी रहे। 1957 में चुनाव हार गए। एक अन्य बड़े कांग्रेसी नेता महेश प्रसाद सिंहा भी तब हारे थे।
इस पर जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. श्रीकृष्ण सिन्हा को पत्र लिखा कि आपने महेश प्रसाद सिन्हा को तो खादी बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया, पर के.बी. सहाय को कुछ नहीं बनाया। इसपर दोनों नेताओं के बीच तीखा व लंबा पत्र-व्यवहार हुआ था।
जेपी ने श्रीबाबू पर जातिवाद का आरोप लगाया तो श्रीबाबू ने जेपी पर वैसा ही आरोप लगाया। उन पत्रों पर आधारित एक पुस्तक डा. एन.एम. पी श्रीवास्तव ने लिखी है। खैर, के.बी. सहाय को बहुत ही सफल प्रशासक माना जाता था। ब्यूरोक्रेसी पर उनकी पूरी पकड़ रहती थी। पर, उनके ही कार्यकाल में पहली बार कांग्रेस 1967 में बिहार विधानसभा का चुनाव हारकर सत्ता से बाहर हो गई।
कुल मिलाकर सहाय जी को इस रूप में याद किया जा सकता है कि उन्होंने अपने निजी जीवन में सुखमय कैरियर का लोभ छोड़कर आजादी की लड़ाई लड़ी थी। आज तो आम तौर पर किसी को जब कोई नौकरी नहीं मिलती तो वह राजनीति में कूद पड़ता है। अपवादों की बात और है।
वंशवाद-परिवारवाद के आधार पर राजनीति में आए अधिकतर लोगों की योग्यता-क्षमता आज अक्सर सवालों के घेरे में रहती है। इसलिए भी राजनीति व प्रशासन का हाल आज देश भर में असंतोषजनक है।
के.बी. सहाय का जन्म 31 दिसंबर 1898 और निधन 3 जून 1974 को हुआ। एक सड़क दुर्घटना में उनकी जान चली गई।