रविवार, 29 दिसंबर 2019


   बेहतर शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने की सख्त जरूरत-सुरेंद्र किशोर 
  देश-प्रदेश में शिक्षा स्तर गिरने के अनेक कारण हैं।
पर,सबसे बड़ा कारण यह है कि योग्य शिक्षकों की दिनानुदिन कमी होती जा रही है।
बेहतर शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित कराना आज ऐतिहासिक आवश्यकता बन गई है।
उसके कई उपाय हो सकते हैं।
उनमें से एक उपाय की यहां चर्चा मौजूं होगी।
महंगी होती शिक्षा के बीच शिक्षा ऋण का महत्व इधर बढ़ा है।
पर रोजगार की कमी के कारण शिक्षा ऋण चुकाना सबके लिए संभव नहीं हो पा रहा है।
इस पृष्ठभूमि में शिक्षा ऋण के नियमों में बदलाव की जरूरत महसूस हो रही है।1963 का एक नमूना हमारे सामने है।
तब  केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ऋण स्काॅलरशिप शुरू की थी।
प्रथम श्रेणी में पास जिन छात्रों को मेरिट स्काॅलरशिप नहीं मिल पाती थी,उनके लिए ऋण स्काॅलरशिप का प्रावधान किया गया था।
शत्र्त थी कि जो पढ़-लिखकर शिक्षक बनेंगे,उन्हें वह कर्ज नहीं लौटाना पड़ेगा।
आज इस देश में लगभग हर स्तर पर अच्छे शिक्षकों की भारी कमी है।
  यदि भावी शिक्षकों के लिए यह नियम बने कि उन्हें बड़ा से बड़ा शिक्षा ऋण नहीं लौटाना पड़ेगा तो शायद बेहतर शिक्षक उपलब्ध हों।
 --नीम के पौधों की हो मजबूत घेराबंदी--
बिहार सरकार ने यह निर्णय किया है कि वह शहरों में सड़कों के किनारे पीपल,नीम, कदम्ब और जामुन के पौधे लगाएगी।
यह बहुत अच्छी बात है।
प्र्यावरण संतुलन के लिए  पीपल और नीम का तो खास महत्व है।
पर नीम को लेकर कुछ अधिक ही सावधानी बरतने की जरूरत पड़ेगी।
उसके पौधों की मजबूत और ऊंची घेरेबंदी होनी चाहिए।
एक बार पटना के एक मुहलले में नीम के पौधे लगाए गए।
पर वे जैसे ही थोड़ा बड़े हुए,उन पर अत्याचार शुरू हो गए।
कोई दतवन के लिए डाल तोड़ने लगा तो कोई खाने के लिए कोमल पत्तियां को नोंचने लगा।
इस तरह  नीम के पेड़-पौधों को लोगों ने ठूंठ बना डाला।
उससे सबक लेते हुए सरकार नीम के पौधों को दस फीट ऊंचाई तक घेरेबंदी करे।
  सौ की जगह दस ही पौधे लगंे,पर जो लगें,उन्हें बचाने का पक्का इंतजाम तो हो ! 
--सेके्रट सर्विस फंड की दयनीय कहानी--
 केरल पुलिस के सेक्रेट सर्विस फंड के दुरुयोग की खबर आई है।
कुछ साल पहले झारखंड पुलिस पर भी
ऐसा ही आरोप लगा था।
हाल में पटना के कारगिल चैक पर राज्य भर से जुट कर 
हिंसक लोगों ने भारी उत्पात मचाया और उसकी पूर्व सूचना बिहार पुलिस को नहीं थी।
उस घटना से लग गया कि बिहार में भी सेके्रट सर्विस फंड का या तो सदुपयोग नहीं हो रहा है या फिर जरूरत के अनुपात में कम मात्रा में फंड का आबंटन हो रहा है।
  सेके्रेट फंड के सदुपयोग के साथ -साथ एक बात  और जरूरी है।
आतंक और सामान्य हिंसा के बढ़ते खतरे के बीच देश-प्रदेश  की सुरक्षा के लिए इस बात की भी सख्त जरूरत है कि सी.सी.टी.वी.कैमरों का  विस्तार हो।
साथ ही,उन कैमरों की गुणवत्ता भी ठीकठाक हो।
कैमरे को लोहे की छड़ों से घेरना भी जरूरी होगा।  
  खुफिया सूत्रों के लिए आबंटित सरकारी धन के दुरूप्योग की जानकारियां दशकों से मिलती रही है।
इन पैसों का गोलमाल आसान है क्योंकि इसका कोई अंकेक्षण नहीं होता।
 --झारखंड के बाद बिहार का सपना!--
झारखंड में चुनावी जीत के बाद कुछ लोग बिहार फतह करने का भी सपना देखने लगे हैं।
पर बेहतर होगा कि वे लोग सपना देखने से पहले  बिहार विधान सभा के पिछले चुनावी आंकड़े देख लें।
लोक सभा चुनाव तो कई बार राष्ट्रीय मुद्दे पर होते हैं।इसीलिए कई बार अलग -अलग रिजल्ट आते हैं।
1967 में बिहार की अधिकांश लोकसभा सीटें कांग्रेस जीत गई थी।
पर उसी के साथ हुए चुनाव में बिहार विधान सभा की अधिकांश सीटों पर  गैर कांग्रेसी दल जीत गए। 
इन दिनों बिहार में मुख्यतः तीन प्रमुख राजनीतिक दल हैं-
भाजपा,जदयू और राजद।
हाल का चुनावी इतिहास बताता है कि इन तीन में से जो दो दल एक साथ हुए ,वे ही जीत गए।
 2015 का  बिहार विधान सभा चुनाव रिजल्ट एक नमूना है। तब राजद और जदयू मिल कर लड़े थे।
कांग्रेस भी उनके साथ थी।
फिलहाल जदयू के भाजपा से अलग होने के कोई संकेत नहीं है।
ऐसे में 2020 के विधान सभा चुनाव में राजग सरकार पर कोई खतरा नजर नहीं आता। 
    --किया गया था आगाह-- 
जब अल्पवयस्क के साथ बलात्कार करने वालों के 
लिए फांसी की सजा का प्रावधान किया जा रहा था तो कुछ कानून विशेषज्ञों ने यह आशंका जताई थी कि तब तो आरोपी अपराधी पीडि़ता की हत्या ही कर देगा।
 वह आशंका सच साबित हो रही है।
न सिर्फ बलात्कार के बाद हत्या, बल्कि बलात्कार की कोशिश में विफल होने पर भी हत्या की खबरें आती रहती हंै।
ऐसे जघन्य अपराध से निजात पाने के कौन से उपाय हो सकते हैं,इस पर गहन सोच-विचार जरूरी है। 
   --और अंत में--
नीलगाय से फसल बचाने की समस्या का अंत होता नजर नहीं आ रहा है।
इस कड़ाके की ठंड में भी  बिहार के कई हिस्सों के किसान रात में अपने खेतों की मचान पर सोने को विवश हैंं।
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--27 दिसंबर 2019 को प्रभात खबर--पटना-- में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से


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