सोमवार, 9 दिसंबर 2019

इमरजेंसी पर बलबीर दत्त की 472 पेज की किताब
का नाम है-
इमरजेंसी का कहर और सेंसर का जहर
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‘गजब हो गया,बहुत बुरी खबर है।फौरन राष्ट्रपति भवन आ जाइए।’
जगजीवन बाबू के जाते ही राष्ट्रपति ने हाॅटलाइन से इंदिरा जी से यह बात कही थी।
उससे पहले जब जगजीवन राम ने मंत्री पद से अपना इस्तीफा राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद को थमाया तो उन्होंने ऐसा करने से मना किया।
उस पर जगजीवन बाबू ने कहा कि 
‘मैंने अपना बिस्तर बांध लिया हैं।’
 प्रभात प्रकाशन की इस ताजा किताब में इस और इस तरह की अन्य कई बातें हैं जो नई पीढ़ी के खुले दिमाग वाले लोगों को अचंभित कर सकती हैं।
बंद दिमाग वालों से कोई
भला क्या उम्मीद कर सकता है ! 
जो लोग आज बात -बात में यह कह देते हैं कि देश में आपातकाल जैसी स्थिति है,वे इस किताब में असली आपातकाल की झलक पाएंगे।
 पुस्तक देश के सर्वाधिक बजुर्ग और प्रतिष्ठित पत्रकारों मंे से एक बलबीर दत्त ने लिखी है।
  मोरारजी देसाई से साप्ताहिक ‘संडे’ के लिए धीरेन भगत ने एक सनसनीखेज इंटरव्यू किया था।
  वह संडे के 23 अप्रैल, 1995
के अंक में छपा भी था।
उसका  कुछ अंश बलबीर दत्त की पुस्तक में समाहित किया गया है।
पुस्तक में केंद्र सरकार के आदेशों -निदेशों के नमूने दिए गए हैं जो इमरजेंसी में अखबारों को दिए गए थे।
 कुछ लोग यह आरोप भी लगा देते हैं कि मीडिया पर आज सरकारी सेंसर है। असली सेंसर के नमूने तो बलबीर जी की किताब में दर्ज हैं।
क्या आज केंद्र  सरकार ने अखबारों को यह निदेश दिया है कि जेएनयू के आंदोलन की खबरें मत छापो ?
पर, इमरजेंसंी में 25 सितंबर, 1975 को अखबारों को निदेश दिया गया था कि जवाहरलाल नेहरू विश्व विद्यालय छात्र संघ के आंदोलन से संबंधित कोई समाचार न छापें।
अखबारों ने इस निदेश का पालन भी किया।
16 जुलाई 1976 को केंद्र सरकार ने अखबारों को यह निदेश दिया कि ‘जय प्रकाश नारायण के कहीं आने -जाने का समाचार न छापा जाए।’
अखबारों ने उस निदेश का भी पालन किया।यूं कहिए अखबार वैसा करने को मजबूर थे।
  बलबीर दत्त जी की किताब में यह भी लिखा गया है कि इंडियन एक्सप्रेस के मालिक को किस मजबूरी में इंदिरा गांधी ने गिरफ्तार नहीं करवाया।
   लगे हाथ यह भी बता दूं कि इस पुस्तक में मेरा भी एक लेख है।
उसका शीर्षक है--आपातकाल का फरारी जीवन जेल यात्रा से अधिक कठिन।
उसमें मैंने अपने कष्टमय फरारी जीवन का हाल लिखा है।
2019
   

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