मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

ऐसे प्रतिबंधित आतंकी संगठन ‘सिमी’ को बढ़ावा दिया ‘सेक्युलर’ नेताओं ने

‘‘इंटरनेशल बिजनेस टाइम्स ने खुफिया सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि नागरिक संशोधन कानून को लेकर हो रही हिंसा के पीछे प्रतिबंधित उग्रवादी कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों -सिमी और पाॅपुलर फ्रंट आफ इंडिया --का हाथ है।’’

अब सिमी के बारे में कुछ बातें।

2001 में जब सिमी पर केंद्र सरकार ने पाबंदी लगाई तो प्रतिबंध के खिलाफ सलमान खुर्शीद सिमी के वकील थे। तब वे उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे। 1977 में स्थापना के समय सिमी, जमात ए इस्लामी हिंद से जुड़ा तथाकथित छात्र संगठन था। पर जब 1986 में सिमी ने ‘इस्लाम के जरिए भारत की मुक्ति’ का नारा दिया तो जमात ए इस्लामी हिंद ने उससे अपना संबंध तोड़ लिया।

30 सितंबर 2001 के टाइम्स आफ इंडिया के अनुसार सिमी के अहमदाबाद के जोनल सेक्रेटरी साजिद मंसूरी ने कहा था कि ‘‘जब भी हम सत्ता में आएंगे तो हम इस देश के सभी मंदिरों को तोड़ देंगे और वहां मस्जिद बनवाएंगे।’’  

याद रहे कि 2001 में जब केंद्र सरकार ने सिमी पर प्रतिबंध लगाया तो सिमी के नेताओं ने 2002 में इंडियन मुजाहिददीन बना लिया। केरल पुलिस सूत्रों के अनुसार सिमी के लोगों ने ही 2006 में पाॅपुलर फ्रंट आफ इंडिया बनाया।

2018 में केरल सरकार ने केंद्र सरकार से सिफारिश की कि वह पी.एफ.आई. पर प्रतिबंध लगा दे। कांग्रेस के एक महासचिव डा. शकील अहमद ने कहा था कि आई.एम. का गठन गुजरात दंगे की प्रतिक्रिया स्वरूप हुआ। यह सिमी के बचाव का उनका एक तरीका था। 

अहमदाबाद धमाकों के बाद पकड़े गए सिमी सदस्य अबुल बशर ने बताया था कि ‘सिमी की इस नीति से प्रभावित हूं कि लोकतांत्रिक तरीके से इस्लामिक शासन संभव नहीं है। उसके लिए एकमात्र रास्ता जेहाद है।’

याद रहे कि 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में एक साथ 21 बम विस्फोट हुए थे जिनमें 56 लोगों की जानें गयीं थीं। इंडियन मुजाहिदीन ने विस्फोट की जिम्मेदारी ली थी। याद रहे कि सिमी के सदस्य ही आई.एम. में सक्रिय हो गये थे। सितंबर, 2017 में पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी केरल के कोझीकोड में आयोजित महिलाओं के एक सम्मेलन में शामिल हुए। उस महिला संगठन का पाॅपुलर फ्रंट आफ इंडिया से संबध है। उस पर तब काफी विवाद हुआ था।

कर्नाटक के चुनाव में पी.एफ.आई. से जुड़े राजनीतिक संगठन ने अपने उम्मीदवार हटाकर कांग्रेस की एक खास इलाके में मदद की। इससे भाजपा को वहां राजनीतिक लाभ हुआ। याद रहे कि बिहार-उत्तर प्रदेश के अनेक सेक्युलर दलों के बड़े नेताओं और दिल्ली के बुद्धिजीवियों ने समय -समय पर सिमी को निर्दोष संगठन बताया। सारे बयान अखबारों में छपे।

इस तरह समय-समय पर सिमी को बढ़ावा मिला।

आज जब भीषण हिंसक गतिविधियों में उसकी संलिप्तता की खबरें आ रही हैं तो उन बढ़ावा देने वालों में से कोई नेता या बुद्धिजीवी उस हिंसा की निंदा तक नहीं कर रहा है। अरे भई, पुलिस की जहां ज्यादती है तो उसकी भी निंदा करो। पर जो लगातार भीषण व अभूतपूर्व हिंसा कर रहे हैं, उन घटनाओं पर तुम्हारी चुप्पी देश को कहां ले जाएगी ?

साठगांठ का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है? एक बात याद रखने की है कि मनमोहन सिंह के शासनकाल में भी सिमी पर से प्रतिबंध से  नहीं हटा था।

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सुरेंद्र किशोर ..दिसंबर 2019

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