रविवार, 15 दिसंबर 2019

कई दशक पहले की बात है।
देश के एक बड़े  
पत्रकार के दिल्ली स्थित आवास पर उनसे मिलने 
मैं गया था।
बात- बात में उन्होंने मुझसे पूछा कि ‘‘मेरा लेखन आपको कैसा लगता है ?’’
मैंने कहा कि ‘‘बहुत अच्छा लगता है।क्योंकि आप सूक्ष्म दृष्टि से चीजों को देखते हैं।राजनीति को लेकर आपका आॅबजरवेटरी रडार बहुत शक्तिशाली है।
पर आप एकतरफा लिखते हैं।आप भाजपा की ओर झुके लगते हैं।’’  
  उन्होंने कहा कि ‘‘आप सही कह कर रहे हैं।मैं झुका हुआ हूं।
दरअसल जो किसी राजनीतिक विचारधारा से जुड़ा नहीं है,वह आम तौर पर पैसों से जुड़ा होता है।वैसे इसके अपवाद भी हैं।’’ 
 पंचायतों के अधिकतर मुखिया के बारे में यही बात कही जा सकती है।
  अधिकतर पैसों से जुड़े होते हैं।दलीय आधार पर चुनाव हो तो शायद थोड़ी स्थिति बदले !
ऐसा नहीं कि राजनीति में पैसों का खेल नहीं होता।पर निचले स्तर के नेता-कार्यकत्र्ता ऊपरी डर से कुछ सहमते भी हैं।
पर जहां डर नहीं, अंकुश नहीं, वहां की कल्पना कर लीजिए।
बहुत बातें तो आपकी जानकारी में भी होंगी।

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