गुरुवार, 19 दिसंबर 2019

पुण्य तिथि पर कामरेड विनोद मिश्र की याद में
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कामरेड विनोद मिश्र उन थोड़े से कम्युनिस्ट नेताओं में थे जिनसे एक बार मिलने के बाद बार -बार मिलने का जी करे।
  दरअसल कम्युनिस्ट होते हुए भी उनमें बौद्धिक अहंकार नहीं था।व्यवहार में भी सौम्यता थी।
कम ही लोग जानते हैं कि साठ के दशक में सर्वोदय आंदोलन से भी उनका थोड़ा संपर्क रहा।
सौम्यता शायद वहीं से आई हो।
  उनकी राजनीति से आप असहमत हो सकते हैं,पर लक्ष्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता संदेह से परे थी।
   देश के कई स्थानों से उनका संबंध रहा।सन 1947 में जबल पुर में उनका जन्म हुआ।
1998 में लखनऊ में निधन हुआ।
इस बीच पिता के कार्य स्थल कानुपर में रहे।
दुर्गा पुर में  इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।
  बिहार के भोजपुर को अपना सघन कार्य क्षेत्र बनाया।
विनोद मिश्र अपने जीवन काल में ही किंवदंती बन चुके थे।
1975 से 1998 तक सी.पी.आई.एम-एल-लिबरेशन के महासचिव रहे कामरेड मिश्र उर्फ राजू से जब भी मैंने बात की ,लगा कि वह सही बोल रहे हैं।
 यदि बिहार में उनके काॅडर का एक हिस्सा 1990 के मंडल आंदोलन के प्रभाव में आकर उन्हें छोड़ दिया ,तो उन्होंने इसे भी सार्वजनिक रूप से स्वीकारा।
   माले आंदोलन में 22 साल तक भूमिगत रहने के बाद वे 21 दिसंबर 1992 को कलकत्ता में खुले में आए थे।
  उससे पहले बिहार के एक बड़े पुलिस अफसर ने मुझसे कहा था कि पुलिस के पास भी विनोद मिश्र का फोटो तक नहीं है।
जब भूमिगत थे,तभी उन्होंने इंडियन पीपुल्स फं्रट बनाया। 
फ्रंट चर्चित हुआ।
उन दिनों मैं दैनिक ‘आज’ में काम करता था।
 मैंने ही यह न्यूज ब्रेक किया कि आई.पी.एफ.के पीछे माले है।
इस पर माले के तीन-चार  दबंग कार्यकत्र्ताओं ने  मेरे आॅफिस में आकर मुझे धमकाया।
कहा कि यह लिखना बंद करिए अन्यथा ठीक नहीं होगा।
वे तब तक इस बात को छिपाना चाहते थे।
 खैर, धमकाने वालों में से एक युवक बाद में लालू प्रसाद के दल से विधायक बन गया था।  
  विनोद मिश्र के निधन पर मुझे भी दुख हुआ।
क्योंकि एक पत्रकार के रूप में उनसे बात करके मुझे स्थिति का साफ -साफ पता चल जाता था।
  हां,उनके और मेरे बीच एक ही चीज बाधक थी--वह उनकी चेन-स्मोकिंग।
बात करते समय धुएं से बचने के लिए जब मैं नाक पर रूमाल रख लेता था तो वे लिहाजवश तुरंत सिगरेट बुझा  देते थे।
पर जैसे ही कुछ समय बीतता था तो वे सुलगा लेते थे।
  मैं सोचता था कि जिस नेता को लाखों लोग प्यार करते हैं,उनके कहने पर मरने -मिटने पर उतारू हो जाते हैं,बड़ी उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं,उसे कम से कम लोगों के लिए तो अपना स्वास्थ्य ठीक रखना चाहिए।
मेरी यह बात अन्य नेताओं पर भी लागू होती है। 
....सुरेंद्र किशोर--18 दिसंबर 2019

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