मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

शैली अरूण शौरी की
..................................
कुछ लोग व्यक्ति में पूर्णता ढंूढ़ते हैं।
खासकर उस व्यक्ति में जो न तो उनकी 
विचारधारा का है या न उनके समाज का।
आजादी के बाद हमारे अधिकतर हुक्मरानों ने ‘प्रतिभा’ की तलाश आम तौर पर अपनी ही जाति में की और अयोग्य लोग उन्हें सिर्फ अन्यत्र मिले।
अपवादों की बात और है।
  मेरा मानना है कि मनुष्य में कमजोरियांे की मौजूदगी स्वाभाविक है।
किसी में कम कमजोरियां  होती हैं तो किसी में अधिक।
जिसमें कमजोरी कम और अच्छाई अधिक हो ,उसके बारे में हम जानना चाहते हैं।
अच्छा लगने पर उन अच्छाइयों का अनुकरण करना चाहते हैं।
पत्रकार-संपादक-विचारक-राजनेता अरूण शौरी को मैं उन लोगों में गिनता हूं जिनमें अच्छाइयां अधिक हैं।
मैं कभी मिला नहीं।
सिर्फ उन्हें पढ़ा-जाना-सुना।
अपने निजी संदर्भालय को अपडेट करने के सिलसिले में मुझे उनसे संबंधित एक कटिंग आज मिली।
2003 की ‘आउटलुक’ पत्रिका में उनके बारे में जो कुछ लिखा गया है,वैसा किसी मंत्री के बारे में कम ही सुना जाता है।
प्रसंग तब का है जब वे केंद्र में संचार मंत्री थे।
  उन्होंने अपने विभाग के अफसरों से कह दिया था कि 
‘‘आज के बाद मेरे पास किसी खरीद की फाइल नहीं आनी चाहिए।
मेरे निजी स्टाफ के लोग अगर उस बारे में कोई सिफारिश करें तो मुझे तुरंत बताया जाए।
खरीद के लिए जो नीति बनी है, उसके मुताबिक खरीद कीजिए।
हां, कोई शिकायत आई तो मैं सीधे सी.बी.आई.जांच कराऊंगा।’’ 
2 दिसंबर 2019
   

कोई टिप्पणी नहीं: