केक-पाव रोटी अब गांव से भी !
.....................................................................
कुछ साल पहले जब हमलोग गांव जाते थे तो वहां रह -रहे परिजन के लिए कुछ -कुछ लेते जाते थे।
अब भी ले जाते हैं।
पर, अब गंगा उल्टी दिशा में भी बहने लगी है।
पत्नी इस बार गांव से जलेबी के साथ- साथ पाव रोटी, केक और लाई भी ले आईं।
वैसे बता दूं कि खुद मैं केक -पाव रोटी वगैरह नहीं खाता।
पर उसकी खबर तो दे ही सकता हूं !!
बेहतर सड़क और बिजली की उपलब्धता के कारण मेरे गांव का बाजार विकसित हो रहा है।
यानी केक स्तर तक तो अभी ही पहुंच गया।
यदि प्रस्तावित पटना रिंग रोड बन जाए तो पटना और मेरे गांव में कम ही अंतर रह जाएगा।
सत्तू का तो बेहतर विकल्प अब पटना में उपलब्ध हो गया है ,भले वह महंगा है।
पर शुद्ध है।
वह है कि ‘नाइन टू नाइन’ माॅल में उपलब्ध ‘आद्या सत्तू।’
अन्यथा, सत्तू भी पहले यदाकदा गांव के बाजार से ही आता था।
वह सत्तू भी पटना शहर के सत्तू से बेहतर होता है।हालांकि पूर्ण शुद्ध नहीं।
--सुरेंद्र किशोर--27 दिसंबर 2019
.....................................................................
कुछ साल पहले जब हमलोग गांव जाते थे तो वहां रह -रहे परिजन के लिए कुछ -कुछ लेते जाते थे।
अब भी ले जाते हैं।
पर, अब गंगा उल्टी दिशा में भी बहने लगी है।
पत्नी इस बार गांव से जलेबी के साथ- साथ पाव रोटी, केक और लाई भी ले आईं।
वैसे बता दूं कि खुद मैं केक -पाव रोटी वगैरह नहीं खाता।
पर उसकी खबर तो दे ही सकता हूं !!
बेहतर सड़क और बिजली की उपलब्धता के कारण मेरे गांव का बाजार विकसित हो रहा है।
यानी केक स्तर तक तो अभी ही पहुंच गया।
यदि प्रस्तावित पटना रिंग रोड बन जाए तो पटना और मेरे गांव में कम ही अंतर रह जाएगा।
सत्तू का तो बेहतर विकल्प अब पटना में उपलब्ध हो गया है ,भले वह महंगा है।
पर शुद्ध है।
वह है कि ‘नाइन टू नाइन’ माॅल में उपलब्ध ‘आद्या सत्तू।’
अन्यथा, सत्तू भी पहले यदाकदा गांव के बाजार से ही आता था।
वह सत्तू भी पटना शहर के सत्तू से बेहतर होता है।हालांकि पूर्ण शुद्ध नहीं।
--सुरेंद्र किशोर--27 दिसंबर 2019
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें