रविवार, 8 दिसंबर 2019

डा.राजेंद्र प्रसाद के जन्म दिन पर
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 बिहार की पहली फिल्म ‘कल हमारा है’ के निर्माता गिरीश रंजन ने कई दशक पहले  मुझे एक संस्मरण सुनाया था।
   राजेंद्र बाबू के निधन के बाद कलकत्ता के एक मशहूर निर्माता - निदेशक एक अन्य व्यक्ति के साथ पटना आए।
फ्रेजर रोड स्थित एक होटल संभवतः ‘पिंटू में टिके ।
उन्होंने बिहार के तब के एक बहुत बड़े सत्ताधारी नेता से मुलाकात की।
  उनसे कहा कि हम राजेंद्र बाबू पर डाक्यूमेंटरी बनाना चाहते हैं।आपसे सहयोग की उम्मीद में आए हैं।
  नेता जी ने कहा कि
‘‘जब मर ही गए तो अब उन पर क्या कीजिएगा ?’’
उस निदेशक को सदमा लगा।
वह होटल लौटकर गम में  शराब पीने लगे।
खूब पी ली।
 किसी तरह उन्हें रिक्शे पर लाद कर कलकत्ता वाली गाड़ी में चढ़ाने के लिए पटना जंक्शन पहुंचाया गया था।
 गिरीश जी ने, जिनका 2014 में निधन हुआ, उपेक्षा का कारण तो नहीं बताया ।पर, मेरा अनुमान था कि बिहार के नेता को लगा होगा कि राजेंद्र बाबू के लिए कुछ करने से दिल्ली के एक बहुत बड़े नेता को अच्छा नहीं लगेगा।
--सुरेंद्र किशोर
3 दिसंबर 2019




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