तब के पैसे आज भी काम आ रहे हैं ?!
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देश के एक नामी-गिरामी पत्रकार ने एक पूर्व मुख्य मंत्री से कभी 5 करोड़ रुपए ‘ठग’ लिए थे।
देश के एक बड़े संपादक ने करीब 15 साल पहले मुझे
यह सनसनीखेज बात बताई थी।
संपादक को वह बात उस पूर्व मुख्य मंत्री ने शिकायत के लहजे में बताई थी।
‘ठगना’ शब्द उस ‘पीडि़त’ नेता का ही था।
पर, उसे पीडि़त भी कैसे मानें ?
खुद को ठगवा लेने के लिए उसके पास 5 करोड़ रुपए तो थे !
अन्य जायज -नाजायज काम के लिए पता नहीं और कितने होंगे !
वैसे जिस स्तर की वह बात थी,उसे सनसनीखेज नहीं माना
जाता है।
पर, मुझे तो वह बात सनसनीखेज लगी।
वैसे मेरी हैसियत ही क्या है कि पांच करोड़ को पांच
हजार रुपए की तरह मान लूं ?
मैं तो लेख लिख -लिखकर उसके छपने व हजार-दो हजार पारिश्रमिक पाने की प्रतीक्षा में जीवन बिता रहा हूं।
कुछ दशक पहले लखनऊ से पत्रकारों की एक लिस्ट आई थी।
लिस्ट सनसनीखेज थी।
हालांकि रकम में कोई सनसनीखेज बात नहीं थी।
दर्जनों पत्रकारों को तब के मुख्य मंत्री ने हजारों-लाखों रुपए दिए थे।
इसे आप जो भी कहिए--शुकराना, नजराना या पटाना !!!
फिर भी उनमें से किसी को एक करोड़ नहीं मिल सके थे।
खैर, 5 करोड ़को लेकर असली बात अब आगे।
वह ‘‘पांच करोड़ी पत्रकार’’ इन दिनों यानी देश पर आए इस संकट के दौर में अपनी खास भूमिका निभा रहा है।
क्या यह सिर्फ संयोग है कि उस पत्रकार की भी वही भूमिका है जो भूमिका उस नेता की है।
क्या मतलब हुआ ! ?
थोड़ा कहना, बहुत समझना !!!
वैसे ताजा खबर यह है कि वह पत्रकार अब पांच करोड़ की हैसियत से बहुुत ऊपर जा चुका है।
मुझे किसी पत्रकार की किसी तरह की भूमिका से कोई शिकायत नहीं।
यह लोकतंत्र है।
सबको अपनी पृष्ठभूमि, समझदारी व निष्ठा के अनुसार अपनी भूमिका तय करने की स्वतंत्रता होनी ही चाहिए।
पर, पैसे इस बीच न आए और लेखन-बोलन में तथ्य रहे तो पत्रकार और पत्रकारिता की साख बनी रहेगी !!
--सुरेंद्र किशोर --25 दिसंबर 2019
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देश के एक नामी-गिरामी पत्रकार ने एक पूर्व मुख्य मंत्री से कभी 5 करोड़ रुपए ‘ठग’ लिए थे।
देश के एक बड़े संपादक ने करीब 15 साल पहले मुझे
यह सनसनीखेज बात बताई थी।
संपादक को वह बात उस पूर्व मुख्य मंत्री ने शिकायत के लहजे में बताई थी।
‘ठगना’ शब्द उस ‘पीडि़त’ नेता का ही था।
पर, उसे पीडि़त भी कैसे मानें ?
खुद को ठगवा लेने के लिए उसके पास 5 करोड़ रुपए तो थे !
अन्य जायज -नाजायज काम के लिए पता नहीं और कितने होंगे !
वैसे जिस स्तर की वह बात थी,उसे सनसनीखेज नहीं माना
जाता है।
पर, मुझे तो वह बात सनसनीखेज लगी।
वैसे मेरी हैसियत ही क्या है कि पांच करोड़ को पांच
हजार रुपए की तरह मान लूं ?
मैं तो लेख लिख -लिखकर उसके छपने व हजार-दो हजार पारिश्रमिक पाने की प्रतीक्षा में जीवन बिता रहा हूं।
कुछ दशक पहले लखनऊ से पत्रकारों की एक लिस्ट आई थी।
लिस्ट सनसनीखेज थी।
हालांकि रकम में कोई सनसनीखेज बात नहीं थी।
दर्जनों पत्रकारों को तब के मुख्य मंत्री ने हजारों-लाखों रुपए दिए थे।
इसे आप जो भी कहिए--शुकराना, नजराना या पटाना !!!
फिर भी उनमें से किसी को एक करोड़ नहीं मिल सके थे।
खैर, 5 करोड ़को लेकर असली बात अब आगे।
वह ‘‘पांच करोड़ी पत्रकार’’ इन दिनों यानी देश पर आए इस संकट के दौर में अपनी खास भूमिका निभा रहा है।
क्या यह सिर्फ संयोग है कि उस पत्रकार की भी वही भूमिका है जो भूमिका उस नेता की है।
क्या मतलब हुआ ! ?
थोड़ा कहना, बहुत समझना !!!
वैसे ताजा खबर यह है कि वह पत्रकार अब पांच करोड़ की हैसियत से बहुुत ऊपर जा चुका है।
मुझे किसी पत्रकार की किसी तरह की भूमिका से कोई शिकायत नहीं।
यह लोकतंत्र है।
सबको अपनी पृष्ठभूमि, समझदारी व निष्ठा के अनुसार अपनी भूमिका तय करने की स्वतंत्रता होनी ही चाहिए।
पर, पैसे इस बीच न आए और लेखन-बोलन में तथ्य रहे तो पत्रकार और पत्रकारिता की साख बनी रहेगी !!
--सुरेंद्र किशोर --25 दिसंबर 2019
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