रविवार, 15 दिसंबर 2019

सर्दी हो या गर्मी अखबार का हाॅकर जरूर आता है !
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‘‘आपने मेरे बारे में ऐसा सोचा,यह देखकर मुझे अच्छा लगा।पर, मेरा काम इस गमछे से ही चल जाएगा।’’
इस अत्यंत खराब मौसम में भी जब सुबह-संबह  अखबार लेकर हाॅकर आज आया तो मैंने उससे कहा कि ‘‘मैं तुमको एक ऊनी मंकी कैप देना चाहता हूं।खराब मौसम में ही तुम्हारे महत्व का पता चलता है।’’
  पर हाॅकर स्वाभिमानी निकला और
अपने सूती गमछे को अपने कान में लपेटते हुए उपर्युक्त बातें कह दी।
खैर, उसकी बातों से अखबारी दुनिया का पूरा दृश्य मेरी आंखों के सामने घूम गया जहां मैंने दशकों बिताए हैं।
  हाॅकर तो अखबार का आखिरी पात्र होता है।
  उससे पहले किसी अखबार की कहानी कहां से शुरू होकर कहां अंत होती है,इसकी लंबी व संघर्षपूर्ण गाथा है।
अखबार का कोई मालिक होता है।उसमें वह अपनी पूंजी लगाता है।
खतरा उठाता है।
रामनाथ गोयनका जैसे इक्के दुक्के अभियानी मालिकों की बात छोड़ दें तो कोई भी पूंजीपति यही चाहता है कि उसकी पूंजी बनी रहे, साथ- साथ मुनाफा भी हो।
वह क्रांति करने के लिए अखबार नहीं निकाल रहा होता है।
   उसके समझदार स्टाफ को मालिक के इस लक्ष्य को ध्यान में रखना होता है।
  खैर,पत्रकारों के बारे में कम से कम एक बात जान लेनी चाहिए।
अधिकतर अखबार स्टाफ की कमी की समस्या झेलते रहते हैं।
संवाददाता मेहनत करके और कई बार खतरों से खेल कर  भी ऐसी खबरें लाता है जो पठनीय हों।
  डेस्क के लोग उसे पन्नों पर सजाते हैं।
अन्य पात्रों की बात अभी छोड़ भी दीजिए तो नाइट ड्यूटी वालों को अलग से श्रेय देना पड़ेगा।
   आपको सुबह-सुबह अखबार पहुंचाने  के लिए नाइट ड्यटी वाले स्टाफ करीब- करीब रात भर जग कर काम करते हैं।
परिवार से दूर और अपनी नींद की सामान्य अवधि बदल कर।
उनका बाॅडी क्लाॅक ही बदल जाता है।
  जरा कठिन काम है।इसीलिए सेवाकाल में खुद मैं हमेशा नाइट ड्यूटी से भागता रहा।
ऐसा कोई पद स्वीकार कभी नहीं किया जिसमें कम से कम 10 बजे रात तक भी काम करने की मजबूरी हो।मैं नौ बजे सो जाता हूं।
हाॅकर से लेकर नाइट ड्यूटी वाले तक  न जाने कितना काम करके आपको सुबह -सुबह अखबार पहुंचाते हैं।
उधर अखबार की प्रसार शाखा के लोग तो भोर में ही बिक्री केंद्रों पर पहुंच जाते हैं। 
 अंत में,एक जरूरी सूचना।
अखबार ही दुनियां का एकमात्र प्रोडक्ट है जो अपनी लागत खर्च से कम दाम पर  बिकता है।
  विज्ञापनों से उसका घाटा पूरा होता है।विज्ञापन अखबारों की रक्त धमनियां होती हैं। 
    

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