मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

 वी.वी.आई.पी.के लड़खड़ाने की कहानी
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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी कानपुर के अटल घाट की सीढि़यों पर लड़खड़ा गए थे।
वह तस्वीर कल के अखबार में छपी।
कई साल पहले तत्कालीन बुजुर्ग राष्ट्रपति डा.शंकर दयाल शर्मा भी लड़खड़ाए थे,वह भी बुरी तरह।
तब ‘जनसत्ता’ ने पहले पेज पर फोल्ड के ऊपर लड़खड़ाते राष्ट्रपति की तस्वीर छाप दी थी।
  पता नहीं, मौजूदा प्रधान मंत्री  को वैसा फोटो छपना बुरा लगा या नहीं !
पर, तब के राष्ट्रपति को तो बुरा लग गया था।
डा.शर्मा ने जनसत्ता के प्रधान संपादक प्रभाष जोशी को फोन किया था।
कहा था कि क्या भई,बाह्मण होते हुए भी आपने मुझे नहीं बख्शा ?’
यह बात मुझे बाद में जोशी जी ने ही बताई थी।
मैं अंदाज लगा सकता हूं कि जोशी जी ने उन्हें क्या जवाब दिया होगा।
क्योंकि एक बात मैं पक्के तौर पर उनके बारे में जानता था।
जोशी जी खबरों के मामले में न तो अपनी जाति का ध्यान रखते थे और न अपने किसी मित्र का।
यदि खबर है तो वह छपेगी ही।
  जनसत्ता में यदि अखबार के किसी अन्य सहकर्मी के खिलाफ भी कोई शिकायत आती थी तो उसे वे खुद पर ले लेते थे।
 जैसे सती प्रथा पर छपी संपादकीय।
उसे उनके प्रमुख सहकर्मी ने लिखा था।
16 दिसंबर 2019
       

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