शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019


निहितस्वार्थियों के हाथों 
बंधक बनता यह देश !
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सन 1992 में केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के गोपनीय नोट 
के आधार पर 31 अगस्त, 1993 के ‘प्रभात खबर’ में अरूण शौरी ने लिखा था कि 
‘‘पश्चिम बंगाल सरकार के पास 1987 में उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक इस राज्य में बांग्ला देशी घुसपैठियों की संख्या 44 लाख थी।’’
तब पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा की सरकार थी।
केंद्र में कांग्रेस की।
याद रहे कि घुसपैठ की समस्या सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही नहीं है।
  सवाल है कि इस देश में 2019 में घुसपैठियों की संख्या बढ़कर कितनी हो चुकी होगी ?
अरूण शौरी जैसे पत्रकार सक्रिय होतेेे तो बता देते।
पर कोई अन्य भी उसका असानी से अनुमान लगा ही सकता है।
  पर, उन घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई करने की चर्चा मात्र से ही पश्चिम बंगाल के अनेक राजनीतिक दल व नेता गुस्से में अपना सुधबुध खो देते हैं।
अन्य राज्यों के भी।
 तय हुआ है कि सी ए ए और प्रस्तावित एन. आर. सी. के खिलाफ वाम दल 1 से 7 जनवरी तक विरोध प्रदर्शन करेंगे और 8 को आम हड़ताल करेंगे।
आशंका है कि उस दौरान बेशुमार हिंसा करने के लिए कुछ भी दूसरे तत्व मौजूद रह सकते हैं।
   ममता बनर्जी ऐसे विरोध के काम मंें पहले से ही मजबूती से लगी हुई हैं।
--उन सबका अघोषित नारा है--‘
‘प्राण जाए, पर घुसपैठियों के वोट न जाए !’’
कुल मिलाकर देश की स्थिति यह है कि कुछ दलों को सिर्फ वोट और सत्ता चााहिए,भले देश अंततः भांड़ में चला जाए !
मुदहूं आंखि,कतहूं कछु नाहीं !!
यानी, हमारे जीवन काल में हमारी सत्ता घुसपैठियों के बल पर बनी रहे।
भले ही मेरे बाद यह देश ,देश नहीं बल्कि सिर्फ एक धर्मशाला बच जाए।
इस्लामिक देश पाकिस्तान और बांग्ला देश में नागरिक रजिस्टर बन सकता है ,पर भारत नामक अर्ध धर्मशाला में ऐसा कुछ भी संभव नहीं है।
  यह सब कब तक चलेगा ?
पता नहीं, इस देश की कुंडली में और क्या -क्या लिखा हुआ है !
   --सुरेंद्र किशोर--26 दिसंबर 2019

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