विषयुक्त रासायनिक खेती से
विषमुक्त जैविक खेती की ओर
..............................................................
1.-बाजरा
2.-जौ
3.-चना
4.-मूंग
5.-सोयाबीन
6.-मक्का
7.-रागी
8.-मंडुआ
और 9.-सफेद तिल।
यानी नवान्न।
सामान्यतः ये अन्न ऐसे हैं जिनके फूल रासायनिक खाद बर्दाश्त नहीं कर पाते।
अतः ये सारे अन्न प्रायः पूर्णतः जैविक यानी
विषमुक्त ही होते हैं।
सभी को बराबर मात्रा में मिलाकर पिसवा कर आटा और दरवा कर दलिया बना सकते हैं।
आटे की रोटी, पराठा, हलवा, लड्डू आदि बना सकते हैं।
दर्रा का दलिया, खिचड़ी, भात, खीर आदि बना सकते हैं।
ज्यादा करारा चाहिए तो बाजरे की मात्रा दुगुनी कर दें।
यदि साॅफ्ट चाहिए तो जौ की मात्रा बढ़ा दें।
पाव रोटी या बिस्कुट बनाने के लिए खमीर उठाने के लिए दही में आटा गंूध कर रात भर छोड़ देने से अच्छा रहेगा।
ऊपर लिखी पूरी सूचना मुझे भाजपा के राज्य सभा सदस्य आर.के.सिन्हा से मिली है।
जैविक खेती के क्षेत्र में वह अनुकरणीय काम कर रहे हैं।
वे खुद नवान्न ही खाते हैं।लोगों को भी प्रेरित करते हैं।
सत्तर के दशक में मैंने तेज -तर्रार पत्रकार रवींद्र किशोर की पत्रकारिता से प्रभावित होकर ही अपने नाम के आगे ‘किशोर’ लगाया था।तब तक मेरा उनसे कोई परिचय भी नहीं था।
मुझे अकेला को हटाकर कोई एक शब्द जोड़ना था।
अब उनके नवान्न को अपनाने का निश्चय मैंने किया है।
उन दिनों के रवींद्र किशोर ही आज के आर.के.सिन्हा हैं जो राज्यसभा में भाजपा सदस्य भी हैं।
मेरा मानना है कि जैविक खेती के क्षेत्र में जो काम वह कर रहे हैं, वह किसी सांसदी से अधिक बड़ा काम है।
यह काम लोगों को विष ग्रहण करने से रोकने का है।
बिहार के भोजपुर जिले के कोइलवर से साढ़े चार किलोमीटर दक्षिण स्थित उनके पुश्तैनी गांव बहियारा में आर.के.सिन्हा का करीब 50 बीघे का फार्म हाउस है।
जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि वहां वे पूरी तरह जैविक खेती करवाते हैं।
अनाज से लेकर आम और अनार तक और सहजन से लेकर ओल तक उपजाया जाता है।
सिन्हा ने बहुत पहले मुझे चेताया था कि ‘‘बाजार में मिलने वाले चावल -गेहूं में आर्सेनिक है।उसे मत खाइए।’’
आज के ‘संडे टाइम्स’ की रपट भी सिन्हा की बात की पुष्टि करती है।
जांच के बाद तैयार रपट के अनुसार पटना सहित बिहार के गंगा से सटे छह जिलों में आटे की रोटियों में आर्सेनिक पाया गया है।
उनमें से तीन जिलों में तो बहुत अधिक आर्सेनिक है।
वे जिले हैं-बक्सर,भोजपुर और भागल पुर।
अर्सेनिक से कैंसर सहित कई बीमारियां होती हैं।
आर.के.सिन्हा कहते हैं कि ‘‘खेत तो सबके पास नहीं है,पर लोग गमलों में तो जैविक विधि से सब्जी उपजा ही सकते हैं।यदि कोई चाहे तो हम उन्हेें प्रशिक्षण देने को तैयार हैं।’’
विषमुक्त जैविक खेती की ओर
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1.-बाजरा
2.-जौ
3.-चना
4.-मूंग
5.-सोयाबीन
6.-मक्का
7.-रागी
8.-मंडुआ
और 9.-सफेद तिल।
यानी नवान्न।
सामान्यतः ये अन्न ऐसे हैं जिनके फूल रासायनिक खाद बर्दाश्त नहीं कर पाते।
अतः ये सारे अन्न प्रायः पूर्णतः जैविक यानी
विषमुक्त ही होते हैं।
सभी को बराबर मात्रा में मिलाकर पिसवा कर आटा और दरवा कर दलिया बना सकते हैं।
आटे की रोटी, पराठा, हलवा, लड्डू आदि बना सकते हैं।
दर्रा का दलिया, खिचड़ी, भात, खीर आदि बना सकते हैं।
ज्यादा करारा चाहिए तो बाजरे की मात्रा दुगुनी कर दें।
यदि साॅफ्ट चाहिए तो जौ की मात्रा बढ़ा दें।
पाव रोटी या बिस्कुट बनाने के लिए खमीर उठाने के लिए दही में आटा गंूध कर रात भर छोड़ देने से अच्छा रहेगा।
ऊपर लिखी पूरी सूचना मुझे भाजपा के राज्य सभा सदस्य आर.के.सिन्हा से मिली है।
जैविक खेती के क्षेत्र में वह अनुकरणीय काम कर रहे हैं।
वे खुद नवान्न ही खाते हैं।लोगों को भी प्रेरित करते हैं।
सत्तर के दशक में मैंने तेज -तर्रार पत्रकार रवींद्र किशोर की पत्रकारिता से प्रभावित होकर ही अपने नाम के आगे ‘किशोर’ लगाया था।तब तक मेरा उनसे कोई परिचय भी नहीं था।
मुझे अकेला को हटाकर कोई एक शब्द जोड़ना था।
अब उनके नवान्न को अपनाने का निश्चय मैंने किया है।
उन दिनों के रवींद्र किशोर ही आज के आर.के.सिन्हा हैं जो राज्यसभा में भाजपा सदस्य भी हैं।
मेरा मानना है कि जैविक खेती के क्षेत्र में जो काम वह कर रहे हैं, वह किसी सांसदी से अधिक बड़ा काम है।
यह काम लोगों को विष ग्रहण करने से रोकने का है।
बिहार के भोजपुर जिले के कोइलवर से साढ़े चार किलोमीटर दक्षिण स्थित उनके पुश्तैनी गांव बहियारा में आर.के.सिन्हा का करीब 50 बीघे का फार्म हाउस है।
जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि वहां वे पूरी तरह जैविक खेती करवाते हैं।
अनाज से लेकर आम और अनार तक और सहजन से लेकर ओल तक उपजाया जाता है।
सिन्हा ने बहुत पहले मुझे चेताया था कि ‘‘बाजार में मिलने वाले चावल -गेहूं में आर्सेनिक है।उसे मत खाइए।’’
आज के ‘संडे टाइम्स’ की रपट भी सिन्हा की बात की पुष्टि करती है।
जांच के बाद तैयार रपट के अनुसार पटना सहित बिहार के गंगा से सटे छह जिलों में आटे की रोटियों में आर्सेनिक पाया गया है।
उनमें से तीन जिलों में तो बहुत अधिक आर्सेनिक है।
वे जिले हैं-बक्सर,भोजपुर और भागल पुर।
अर्सेनिक से कैंसर सहित कई बीमारियां होती हैं।
आर.के.सिन्हा कहते हैं कि ‘‘खेत तो सबके पास नहीं है,पर लोग गमलों में तो जैविक विधि से सब्जी उपजा ही सकते हैं।यदि कोई चाहे तो हम उन्हेें प्रशिक्षण देने को तैयार हैं।’’
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