देश की अर्थ व्यवस्था को काला
धन चलाए या सफेद धन ?
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‘‘काले धन का आकार देश के सकल घरेलू उत्पाद का 60 प्रतिशत हो चुका है।
60 के दशक में 3 फीसदी था।
आज सालाना 33 लाख करोड़ रुपए की काली कमाई हो
रही है।..........
‘‘......जिन पर व्यवस्था चलाने का दारोमदार है, वे भ्रष्ट लोगों के साथ खड़े हो गए हैं।
यदि सरकार जल्दी नहीं चेती तो विकास की गति शिथिल पड़ जाएगी।’’
---- अरुण कुमार, अर्थशास्त्री, जेएनयू,
प्रभात खबर, 4 जून 2011
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2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने काले धन के खिलाफ कार्रवाई शुरू की तो अब देखिए एक नोबेल विजेता क्या कहते हैं--
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‘‘चाहे यह भ्रष्टाचार का विरोध हो या भ्रष्ट के रूप में देखे जाने का भय,शायद --भारत की--भ्रष्टाचार अर्थ व्यवस्था के पहियों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण था।
पर इसे काट दिया गया है।
मेरे कई व्यापारिक मित्र मुझे बताते हैं निर्णय लेेने की गति धीमी हो गई है।.............’’
-- नोबल विजेता अभिजीत बनर्जी,
दैनिक हिन्दुस्तान, 23 अक्तूबर 2019
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प्रतिपक्षी दल आरोप लगा रहा है कि मोदी सरकार की गलत नीतियों के कारण देश में आर्थिक सुस्ती आ गई है।
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अब आप ही बताइए,कोई .अरुण कुमार की सुने या अभिजीत बनर्जी की ?
देश की अर्थ व्यवस्था काले धन पर आधारित होनी चाहिए या सफेद धन पर ?
मैं खुद तो आर्थिक मामले समझने में दिमाग से पैदल हूं।
इसलिए सबकी सुनता हूं और कूढ़ता रहता हूं।
आखिर अपना देश आज कहां जा रहा है ?
दिशा सही है या गलत ?
मोदी राज में अर्थ व्यवस्था का अंततः क्या होगा ?
आप ही कुछ बताइए।
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सुरेंद्र किशोर--29 दिसंबर 2019
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