दृश्य -एक
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छोटा बेटा पार्क से घर लौट कर अपनी मां से कहा,
‘मां, मैंने आज 100 बचा लिए।’
मां - ‘कैसे बेटा ?’
बेटा- ‘पार्क में लिखा था कि फूल तोड़ना मना है।
तोड़ने पर सौ रुपए का दंड लगेगा। मैंने एक भी फूल नहीं तोड़ा । इस तरह मैंने सौ रुपए बचा लिए न !’
इसी बीच बड़ा बेटा घर आया।
उसने कहा कि ‘मां, इसने तो सिर्फ सौ रुपए बचाए। मैंने सात हजार रुपए बचा लिए।’
मां-सो कैसे ?
बड़ा बेटा- वाहनों की जांच हो रही थी। जिसके पास डी.एल.नहीं था, उस पर 5 हजार रुपए दंड लगे। एक दूसरा गाड़ी तेज चलाते पकड़ा गया। उस पर 2 हजार फाइन लगा। मेरी गाड़ी तेज नहीं चल रही थी।
मेरे पास डाइविंग लाइसेंस भी था। इस तरह मैंने सात हजार बचाए कि नहीं ?
मां ने बेटों को शाबासी दी।
दृश्य-दो
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आज सड़कों पर वाहन चेकिंग के दौरान जहां -तहां हंगामें क्यों हो रहे हैं ? जिनके पास पूरे कागजात हैं और जो गाड़ी सामान्य गति सही लेन में चलाते हैं,उन्हें तो कोई चिंता है नहीं। चिंता उन्हें है जिन्हें न तो मां-बाप से शाबासी की दरकार रहती है और न ही समाज में अपने मान-सम्मान की परवाह । वे तो दूसरी ही दुनिया में रहते हैं। उनकी धारणा यह है कि जो नियम -कानून का पालन करता है, जो किसी गेट के पास खड़े संतरी को अपना पास दिखा देता है,वह महा दब्बू आदमी है।
वैसा जीवन हमें नहीं जीना है।
पर, हम तो शान से जीने वाले लोग हैं !! शान से जिएंगे और शान से मरेंगे। लेकिन हम अपने सिर के बाल खराब करने के लिए हेलमेट कत्तई नहीं पहनेंगेे ! यानी, ‘जुल्फ’ जरुरी है, जान नहीं।
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छोटा बेटा पार्क से घर लौट कर अपनी मां से कहा,
‘मां, मैंने आज 100 बचा लिए।’
मां - ‘कैसे बेटा ?’
बेटा- ‘पार्क में लिखा था कि फूल तोड़ना मना है।
तोड़ने पर सौ रुपए का दंड लगेगा। मैंने एक भी फूल नहीं तोड़ा । इस तरह मैंने सौ रुपए बचा लिए न !’
इसी बीच बड़ा बेटा घर आया।
उसने कहा कि ‘मां, इसने तो सिर्फ सौ रुपए बचाए। मैंने सात हजार रुपए बचा लिए।’
मां-सो कैसे ?
बड़ा बेटा- वाहनों की जांच हो रही थी। जिसके पास डी.एल.नहीं था, उस पर 5 हजार रुपए दंड लगे। एक दूसरा गाड़ी तेज चलाते पकड़ा गया। उस पर 2 हजार फाइन लगा। मेरी गाड़ी तेज नहीं चल रही थी।
मेरे पास डाइविंग लाइसेंस भी था। इस तरह मैंने सात हजार बचाए कि नहीं ?
मां ने बेटों को शाबासी दी।
दृश्य-दो
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आज सड़कों पर वाहन चेकिंग के दौरान जहां -तहां हंगामें क्यों हो रहे हैं ? जिनके पास पूरे कागजात हैं और जो गाड़ी सामान्य गति सही लेन में चलाते हैं,उन्हें तो कोई चिंता है नहीं। चिंता उन्हें है जिन्हें न तो मां-बाप से शाबासी की दरकार रहती है और न ही समाज में अपने मान-सम्मान की परवाह । वे तो दूसरी ही दुनिया में रहते हैं। उनकी धारणा यह है कि जो नियम -कानून का पालन करता है, जो किसी गेट के पास खड़े संतरी को अपना पास दिखा देता है,वह महा दब्बू आदमी है।
वैसा जीवन हमें नहीं जीना है।
पर, हम तो शान से जीने वाले लोग हैं !! शान से जिएंगे और शान से मरेंगे। लेकिन हम अपने सिर के बाल खराब करने के लिए हेलमेट कत्तई नहीं पहनेंगेे ! यानी, ‘जुल्फ’ जरुरी है, जान नहीं।
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