रविवार, 8 सितंबर 2019

     देर आए,पर दुरुस्त आए 
      --- सुरेंद्र किशोर --- 
अनुच्छेद-370 और 35 ए को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार
ने जो कुछ गत माह किया,कोई भी देशप्रेमी सरकार वही काम करती।
 यह काम तो बहुत पहले हो जाना चाहिए था।
पर, ‘वोट बैंक प्रेमी’ सरकारों ने नहीं किया।
  जब चीन सरकार अपने समस्याग्रस्त प्रदेश उइगर में 
जनसांख्यिकी बदलाव की प्रक्रिया शुरु कर सकती है।
खुद पाकिस्तान सरकार पाक अधिकृत कश्मीर में जनसांख्यिकी बदलाव कर सकती है तो फिर इसी काम की शुरुआत भारत सरकार क्यों नहीं कर सकती ?
यह काम तभी हो जाना चाहिए था जब जेहादियों ने लाखों कश्मीरी पंडितों को घाटी से निकाल बाहर कर दिया था।
 इसीलिए मोदी सरकार ने यह काम आखिरकार  कर ही दिया।
एक तरफ तो 1994 में भारतीय संसद ने यह सर्वसम्मत प्रस्ताव पास कर दिया था कि पूरा कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।
दूसरी ओर, अलगाववादी नेता सैयद अली शाह जिलानी ने 2016 में ही  यह घोषणा कर दी थी कि ‘आज हम आजादी के जितने करीब हैं,उतने इससे पहले कभी नहीं थे।’
  2016 के बाद कश्मीर में स्थिति और भी बिगड़ी है।
वहां की स्वायत्तता के लिए संघर्ष पहले आजादी की लड़ाई में बदला।अब उसने  जेहाद का स्वरुप ग्रहण कर  लिया है।
 दुनिया के अन्य हिस्सों में सक्रिय जेहादी जमातों ने भी कश्मीर में अपनी जड़ें जमानी शुरू कर दी है।
पाकिस्तान उन्हें पूरी मदद कर रहा है।  
   पिछले दिनों यह खबर आई कि  दो अतिवादी इस्लामिक गिरोहों के बीच  कश्मीर में हथियारी मुंठभेड़ हुई है।
  ये  गिरोह कश्मीर में अपने -अपने ढंग के खलीफा राज
स्थापित करने के लिए जेहाद कर रहे हैं।
वे संगठन हैं एक तरफ बगदादी के नेतृत्व वाले आई.एस. और दूसरी ओर हिजबुल मुजाहिद्दीन-लश्कर ए तोयबा।
   यदि सरकार ऐसे तत्वों को कश्मीर में अधिक दिनों तक अपना खेल खेलने देगी तो उसका असर भारत के अन्य हिस्सों पर भी पडेगा ।
 इसीलिए केंद्र सरकार ने कश्मीर में ही उनका मुकाबला कर लेने का निर्णय किया है।अब तो जो होना होगा,वही होगा।
या तो आप टुकड़ों में नुकसान झेलो या एकमुश्त फैसला कर लो।
भारत सरकार के पास कोई तीसरा विकल्प नहीं है।
 इसमें भी खतरे हैं।पर खतरे तो दशकों से रहे हैं।
अस्सी-नब्बे के दशकों में जिस समय  कश्मीरी पंडितों को घाटी से भगाया गया,उसी समय इस देश के आम लोगों को भी समझ में आ गया कि आगे क्या होने वाला है।पिछली सरकारें  भले हीला हवाला करती रहीं।
पर 2014 में बनी मोदी सरकार को कभी दुविधा नहीं रही।बस राज्य सभा में संख्या की दृष्टि से मोदी सरकार के पक्ष में स्थिति तैयार होने भर की देर थी।
 दरअसल बंगला देश के निर्माण के बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फीकार अली भुट्टो ने कहा था कि भारत ने हमें एक घाव दिया है,हम उसे हजार घाव देंगे।
पाकिस्तान उसी लक्ष्य पर  काम करता रहा है।
 यदि वह कश्मीर में सफल हो गया तो उसका रुख केरल और पश्चिम बंगाल की ओर हो सकता है।
कश्मीर के 10 जिले मुस्लिम बहुल हैं।
इसके अलावा इस देश में अन्य नौ जिले भी हैं जो मुस्लिम बहुल हैं।
पर,उन नौ जिलों में विशेष प्रतिबंध लगाने की जरुरत अभी नहीं है ।क्योंकि वहां अनुच्छेद-370 और 35 ए जैसे  विशेष अधिकार नहीं मिले हुए हैं।
  उन विशेषाधिकारों की सुविधा का लाभ उठाकर ही नब्बे में जेहादियों ने कश्मीर में  बड़ी संख्या में पंडितों की  हत्या कर दी।उनकी  महिलाओं के साथ बलात्कार किया।लाखों पंडितों को कश्मीर से भगा दिया।
 इन मामलों में क्या किसी को सजा हुई ?
   थोड़ी देर के लिए कल्पना करिए कि कश्मीर आजाद हो जाए ! तो उसका भी हाल क्या इराक -सिरिया तथा उन मुस्लिम देशों से अलग होगा जिसे बगदादी की सेना आई.एस.ने बर्बाद कर रखा है ?
इस तथ्य के बावजूद इस देश के कुछ तथाकथित सेक्युलर तत्व व राजनीतिक दल उन जेहादियों के प्रति सहानुभूति के भाव से भरे हुए हैं। 
इनमें से कुछ राजनीतिक कारणों से ऐसा करते हैं।कुछ को कहीं से पैसे मिलते हैं । कुछ अन्य दिग्भ्रमित हैं। ऐसे दिग्भ्रमित दलों को उसका खामियाजा अगले चुनावों में भुगतना पड़ सकता है।
  एक बात साफ -साफ समझ लेनी चाहिए।भारत की कोई भी सरकार कश्मीर को आजादी नहीं दे सकती।
यदि दे देगी तो वह सरकार दूसरे ही दिन  गिर  जाएगी।कश्मीर को आजादी दे देने से  असम,केरल और पश्चिम बंगाल के खास इलाकों में  सक्रिय जेहादी तत्वों की गतिविधियां बेकाबू हो जा सकती हैं।
हालांकि वहां आज भी हालात चिंताजनक हैं।पर काबू में है।
  उधर कश्मीर के जेहादी तत्व भी आजादी से कम पर नहीं मानने वाले हैं।
पाकिस्तानी आज भी कहते हंै कि हम कश्मीर के लिए किसी भी हद तक जाएंगे।
इसलिए जो होना है,वह कश्मीर में ही हो जाए।यही भारत के हित में है भले भारत में ही रहने वाले राष्ट्र विरोधियों व टुकड़े -टुकड़े ‘गिरोहो’ं के हित में वह न हो।
हालांकि कश्मीर सहित इस देश में बड़ी संख्या में ऐसे मुस्लिम भी हैं जो शांति से रहना चाहते हैं।
पर,उनके साथ दिक्कत यह है कि वे अपने बीच के अतिवादियों का कड़ा विरोध नहीं कर पाते जिस तरह हिन्दुओं के बीच के प्रगतिशील तत्व अतिवादी हिन्दुओं का खुलेआम कड़ा विरोध करते रहते हैं।
 उन ‘गिरोहो’ं में कुछ हिन्दू भी हैं और अधिक मुस्लिम हैं। 
 अगली पीढि़यों को सतर्क करने के लिए कुछ बातें साफ- साफ कही और लिखी जानी चाहिए चाहे भले आपको कोई तथाकथित ‘सेक्युलर’ मानने से कल से इनकार कर दे।
 केंद्र सरकार का यह कत्र्तव्य है कि वह  यह सुनिश्चित करे  कि कश्मीरियों को जितने अधिकार भारत के अन्य प्रांतों में हासिल हैं,उतनेे अधिकार जम्मू -कश्मीर में भारतीयों को दिलाए।यदि ऐसा करेगी तो वह डा.आम्बेडकर की इच्छा पूरी करेगी। 
याद रहे कि डा.आम्बेडकर ने लिखा है कि जब सन 1949 में संविधान की धाराओं का ड्राफ्ट तैयार हो रहा था ,तब शेख अब्दुला मेरे पास आए।
बोले कि नेहरू ने मुझे आपके पास यह कह कर भेजा है कि आप आम्बेडकर से कश्मीर के बारे में अपनी इच्छा के अनुसार ड्राफ्ट बनवा लीजिए जिसे संविधान में जोड़ा जा सके।
 डा.आम्बेडकर ने साफ शब्दों में लिखा है कि ‘मैंने शेख अब्दुल्ला की बातें ध्यान से सुनीं।उनसे कहा कि एक तरफ तो आप चाहते हो कि भारत कश्मीर की रक्षा करे।
कश्मीरियों को खिलाए-पिलाए।
उनके विकास के लिए प्रयास करे।
कश्मीरियों को भारत के सभी प्रांतों में सुविधाएं और अधिकार दिए जाएं।
किंतु भारत के अन्य प्रांतों के लोगों को कश्मीर में वैसी ही सुविधाओं और अधिकारों से वंचित रखा जाए।
आपकी बातों से ऐसा प्रतीत होता है कि आप भारत के अन्य प्रांत के लोगों को कश्मीर में समान अधिकार देने के खिलाफ हैं।’
यह कह कर आम्बेडकर ने शेख से कहा कि ‘मैं कानून मंत्री हूं।
मैं अपने देश के साथ गद्दारी नहीं कर सकता।
   जब आम्बेडकर ने शेख अब्दुल्ला से संविधान में उनके अनुसार ड्राफ्ट जोड़ने से यह कह कर साफ मना कर दिया कि मैं देश के साथ विश्वासघात नहीं कर सकता,तब नेहरू ने गोपालस्वामी अयंगार को बुलवाया।
वे संविधान सभा के सदस्य थे और कश्मीर के राजा हरि सिंह के दीवान रह चुके थे।
प्रधान मंत्री के तौर पर नेहरू ने अयंगार को आदेश दिया कि शेख साहब जो भी चाहते हैं,संविधान की धारा 370 में वैसा ही ड्राफ्ट बना दिया जाए।
  खैर ताजा खबर के अनुसार मोदी सरकार जम्मू कश्मीर और लद्दाख में  व्यापक तौर पर विकास, कल्याण और रोजगार की योजनाएं शुरू करने जा रही है।
 कश्मीर की  आबादी का एक बड़ा हिस्सा इससे खुश भी नजर आ रहा है।
फिर भी जहां -तहां नाराजगी बरकरार है।
देखना है कि आने वाले दिनों में कश्मीर में वैसे तत्वों की विजय कब होती है जो इस धरती को ही एक और स्वर्ग के रूप में परिणत करने के पक्ष में हैं।  
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-8 सितंबर, 2019 के हस्तक्षेप-राष्ट्रीय सहारा-में इस लेख का संपादित अंश प्रकाशित। 
   

  

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