कृषि आय के बहाने अरबों की लूट ः हकीकत या अफसाना ?
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इस देश के 6 लाख 57 हजार आयकर दाताओं ने जो आयकर रिटर्न फाइल किए,उनके अनुसार
खेती से उन लोगों की कुल मिलाकर एक साल में आय 2000 लाख करोड़ रुपए हुई ।
यह आंकड़ा सन 2011 का है।
आयकर महकमे के रिटायर अफसर विजय शर्मा ने आर.टी.आई.के जरिए उपर्युक्त आंकड़ा हासिल किया था।
याद रहे कि कृषि आय पर आयकर नहीं लगता।
काफी संभव है कि 2000 लाख करोड़ रुपए में से अधिकांश राशि काला धन थी जिसे कृषि आय दिखा कर सफेद कर लिया गया।
खैर,व्यावहारिक धरातल पर स्थिति यह है कि खेती आज आम तौर पर मुनाफे का नहीं बल्कि घाटे का सौदा है।ं
विजय शर्मा ही नहीं, इस देश के हर ईमानदार आयकर दाता को यह जानने का हक है कि इन दो हजार लाख करोड़ रुपए में से कितना काला धन था और कितना सफेद धन ?
अन्य वित्तीय वर्षों का क्या आंकड़ा है ?
ताजा स्थिति क्या है ?
मान लीजिए कि इसमें से एक लाख करोड़ रुपए सफेद धन है।
यानी 1999 लाख करोड़ रुपए काला धन है।
इस पर सरकार को कोई टक्स नहीं मिला।
इनमें से कम से कम एक तिहाई राशि टैक्स में जानी चाहिए थी।
यानी, 666 लाख करोड़ रुपए केंद्र सरकार को मिलने चाहिए थे।
पर नहीं मिले।
एक अपुष्ट खबर के अनुसार उसी अवधि में इस देश के कुछ अत्यंत प्रभावशाली -सत्ताधारी लोगों ने अपनी छत पर रखे गमलों में कोबी तथा कुछ अन्य चीज उगा कर और उसे बेच कर करोड़ों रुपए आय प्राप्त की और उसे अपने आयकर रिटर्न में शामिल किया।
खैर, 666 लाख करोड़ रुपए सरकार के यहां पहुंचे होते तो
देश का कितना विकास व लोगों को कितना कल्याण होता ?
क्या ऐसी बोगस छूट लेने की परंपरा अब भी जारी है ?
अब मोदी है तब भी यह सब मुमकिन हो रहा है ?
इस संबंध में ताजा व वास्तविक जानकारी लोगों को मिलनी ही चाहिए।
केंद्र सरकार इसकी जांच के काम में देश के सर्वाधिक ईमानदार अफसरों को लगाए।
यह भी जांच कराए कि 2011 का उपर्युक्त आंकड़ा कितना सही और कितना गलत है ?कहीं टाइपिंग मिस्टेक तो नहीं !!
यह जानने की भी उत्सुकता है कि इस संबंध में अदालत में दाखिल विजय शर्मा की जनहित याचिका किस स्टेज में है ?
याद रहे कि विजय शर्मा ने आर.टी.आई.के जरिए सरकार से यह भी पूछा था कि 6 लाख 57 हजार ऐसे आयकर दाताओं में से ऊपर के सौ लोगों के नाम बताए जाएं जिन्होंने सर्वाधिक राशि का रिटर्न फाइल किया।
पर केंद्र सरकार ने यह सूचना देने से इनकार कर दिया।
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इस देश के 6 लाख 57 हजार आयकर दाताओं ने जो आयकर रिटर्न फाइल किए,उनके अनुसार
खेती से उन लोगों की कुल मिलाकर एक साल में आय 2000 लाख करोड़ रुपए हुई ।
यह आंकड़ा सन 2011 का है।
आयकर महकमे के रिटायर अफसर विजय शर्मा ने आर.टी.आई.के जरिए उपर्युक्त आंकड़ा हासिल किया था।
याद रहे कि कृषि आय पर आयकर नहीं लगता।
काफी संभव है कि 2000 लाख करोड़ रुपए में से अधिकांश राशि काला धन थी जिसे कृषि आय दिखा कर सफेद कर लिया गया।
खैर,व्यावहारिक धरातल पर स्थिति यह है कि खेती आज आम तौर पर मुनाफे का नहीं बल्कि घाटे का सौदा है।ं
विजय शर्मा ही नहीं, इस देश के हर ईमानदार आयकर दाता को यह जानने का हक है कि इन दो हजार लाख करोड़ रुपए में से कितना काला धन था और कितना सफेद धन ?
अन्य वित्तीय वर्षों का क्या आंकड़ा है ?
ताजा स्थिति क्या है ?
मान लीजिए कि इसमें से एक लाख करोड़ रुपए सफेद धन है।
यानी 1999 लाख करोड़ रुपए काला धन है।
इस पर सरकार को कोई टक्स नहीं मिला।
इनमें से कम से कम एक तिहाई राशि टैक्स में जानी चाहिए थी।
यानी, 666 लाख करोड़ रुपए केंद्र सरकार को मिलने चाहिए थे।
पर नहीं मिले।
एक अपुष्ट खबर के अनुसार उसी अवधि में इस देश के कुछ अत्यंत प्रभावशाली -सत्ताधारी लोगों ने अपनी छत पर रखे गमलों में कोबी तथा कुछ अन्य चीज उगा कर और उसे बेच कर करोड़ों रुपए आय प्राप्त की और उसे अपने आयकर रिटर्न में शामिल किया।
खैर, 666 लाख करोड़ रुपए सरकार के यहां पहुंचे होते तो
देश का कितना विकास व लोगों को कितना कल्याण होता ?
क्या ऐसी बोगस छूट लेने की परंपरा अब भी जारी है ?
अब मोदी है तब भी यह सब मुमकिन हो रहा है ?
इस संबंध में ताजा व वास्तविक जानकारी लोगों को मिलनी ही चाहिए।
केंद्र सरकार इसकी जांच के काम में देश के सर्वाधिक ईमानदार अफसरों को लगाए।
यह भी जांच कराए कि 2011 का उपर्युक्त आंकड़ा कितना सही और कितना गलत है ?कहीं टाइपिंग मिस्टेक तो नहीं !!
यह जानने की भी उत्सुकता है कि इस संबंध में अदालत में दाखिल विजय शर्मा की जनहित याचिका किस स्टेज में है ?
याद रहे कि विजय शर्मा ने आर.टी.आई.के जरिए सरकार से यह भी पूछा था कि 6 लाख 57 हजार ऐसे आयकर दाताओं में से ऊपर के सौ लोगों के नाम बताए जाएं जिन्होंने सर्वाधिक राशि का रिटर्न फाइल किया।
पर केंद्र सरकार ने यह सूचना देने से इनकार कर दिया।
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