कभी ऐसा भी सलूक किया गया था प्रेस के साथ !
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‘इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर के अनुसार पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने सितंबर 1979 में बंबई में कहा था कि
‘मैं इस बात की कोई गारंटी नहीं दे सकती कि मेरे फिर से सत्ता में आने के बाद प्रेस पर सेंसरशिप लागू नहीं की जाएगी।’
‘सभी देशों मेंं किसी न किसी स्वरूप में सेंसरशिप मौजूद है।
मैं कैसे कोई गारंटी दे सकती हूं ?’
‘हां, इमरजेंसी में कुछ पत्रकारों को अन्यायपूर्ण तरीके से दंडित किया गया।
पर, अपने ढाई साल के कार्यकाल में पूर्व सूचना मंत्री एल.के.आडवाणी ने ए.आई.आर.,दूरदर्शन और अधिकतर अखबारों में आर.एस.एस. के लोगों को बहाल करवाया।’
याद रहे कि 1980 में सत्ता में आने के बाद इंदिरा गांधी ने प्रेस सेंसरशिशप लागू तो नहीं किया,पर अगले प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने 1988 में प्रेस मानहानि विधेयक लाया जिसे देशव्यापी विरोध के कारण वापस ले लिया था।
याद रहे कि इमरजेंसी में प्रेस सूचना ब्यूरो की अनुमति के बिना किसी अखबार में एक लाइन भी नहीं छप सकती थी।
उन दिनों प्रतिपक्षी नेताओं के नाम अखबारों से गायब थे।वे बिना सुनवाई के जेलों में बंद थे।उनके नाम छपते भी थे तो उनकी निंदा करने के लिए।
हर शाम अखबार के संपादकीय विभाग के सदस्य अगले दिन छपने वाले पूरे अखबार की सामग्री लेकर स्थानीय पी.आई.बी.आॅफिस में जाते थे । केंद्र सरकार के उस सरकारी आॅफिस से पास करवा कर उस पर मुहर लगवा लाते थे।तभी अखबार छपता था।
संजय गांधी ने सूचना मंत्री से कहा था कि वे आकाशवाणी के हर बुलेटिन को पहले दिखा लें ,फिर वह प्रसारित हो।
ऐसा करने से जब सूचना मंत्री आई.के.गुजराल ने मना कर दिया तो उन्हें हटा कर वी.सी.शुक्ल को उस पद पर बैठाया गया।संजय गांधी तब संविधानेत्तर सत्ता के सबसे ताकतवर व बड़े केंद्र थे।
ऐसा था कांग्रेसी सरकारों का प्रेस प्रति सलूक !
है इसका कोई जोड़ा ???
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‘इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर के अनुसार पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने सितंबर 1979 में बंबई में कहा था कि
‘मैं इस बात की कोई गारंटी नहीं दे सकती कि मेरे फिर से सत्ता में आने के बाद प्रेस पर सेंसरशिप लागू नहीं की जाएगी।’
‘सभी देशों मेंं किसी न किसी स्वरूप में सेंसरशिप मौजूद है।
मैं कैसे कोई गारंटी दे सकती हूं ?’
‘हां, इमरजेंसी में कुछ पत्रकारों को अन्यायपूर्ण तरीके से दंडित किया गया।
पर, अपने ढाई साल के कार्यकाल में पूर्व सूचना मंत्री एल.के.आडवाणी ने ए.आई.आर.,दूरदर्शन और अधिकतर अखबारों में आर.एस.एस. के लोगों को बहाल करवाया।’
याद रहे कि 1980 में सत्ता में आने के बाद इंदिरा गांधी ने प्रेस सेंसरशिशप लागू तो नहीं किया,पर अगले प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने 1988 में प्रेस मानहानि विधेयक लाया जिसे देशव्यापी विरोध के कारण वापस ले लिया था।
याद रहे कि इमरजेंसी में प्रेस सूचना ब्यूरो की अनुमति के बिना किसी अखबार में एक लाइन भी नहीं छप सकती थी।
उन दिनों प्रतिपक्षी नेताओं के नाम अखबारों से गायब थे।वे बिना सुनवाई के जेलों में बंद थे।उनके नाम छपते भी थे तो उनकी निंदा करने के लिए।
हर शाम अखबार के संपादकीय विभाग के सदस्य अगले दिन छपने वाले पूरे अखबार की सामग्री लेकर स्थानीय पी.आई.बी.आॅफिस में जाते थे । केंद्र सरकार के उस सरकारी आॅफिस से पास करवा कर उस पर मुहर लगवा लाते थे।तभी अखबार छपता था।
संजय गांधी ने सूचना मंत्री से कहा था कि वे आकाशवाणी के हर बुलेटिन को पहले दिखा लें ,फिर वह प्रसारित हो।
ऐसा करने से जब सूचना मंत्री आई.के.गुजराल ने मना कर दिया तो उन्हें हटा कर वी.सी.शुक्ल को उस पद पर बैठाया गया।संजय गांधी तब संविधानेत्तर सत्ता के सबसे ताकतवर व बड़े केंद्र थे।
ऐसा था कांग्रेसी सरकारों का प्रेस प्रति सलूक !
है इसका कोई जोड़ा ???
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