बुधवार, 25 सितंबर 2019

भारत के बारे में अमरीकियों की बदलती धारणा
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अस्सी के दशक में माइकल टी.काॅफमैन पटना आए थे।
वे उन दिनों नई दिल्ली में न्यूयार्क टाइम्स के ब्यूरो प्रमुख
थे।
मैं तब दैनिक ‘आज’ में था।
जार्ज फर्नांडिस ने उन्हें कहा था कि पटना में पूरे बिहार का हाल सुरेंद्र तुम्हें बता देगा।
 मुझसे उनकी लंबी बातचीत हुई।
मैंने यूंहीं उत्सुकतावश उनसे पूछा कि अमेरिका के लोग भारत के बारे में क्या सोचते हैं ?
उन्होंने कहा कि सोचने की फुर्सत ही कहां है ?
मैंने जोर डाला -कुछ तो सोचते हैं ?
खास कर भारत के विशेषज्ञ भी तो होंगे।
फिर वे पाटलिपुत्र अशोका के अपने कमरे की दीवाल पर टंगे दुनिया के नक्शे की ओर अपनी कलम घुमाई और पूछा, ‘किधर है इंडिया !
और जोर देने पर उन्होंने कहा कि आपको बुरा लगेगा,इसलिए मैं नहीं बताऊंगा।
मैंने फिर जोर दिया।
फिर उन्होंने कहा कि भारत के बारे में कुछ लोग कहते हैं कि वहां के एक तिहाई लोग कचहरियों में रहते हैं।
अन्य एक तिहाई लोग अस्पतालों में।
बाकी एक तिहाई लोग मनमौजी हैं।
काॅफमैन ने कहा कि यदि आप अमेरिका में होते तो सबसे पहला काम यह होता कि आपको किसी निकट के अस्पताल में भर्ती करा दिया जाता।
याद रहे कि मैं उन दिनों और भी दुबला-पतला था ।
वे कहना चाहते थे कि अस्पताल जाने लायक स्थिति तो एक तिहाई भरतीयों की है,पर वे जा नहीं पाते।
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इतने वर्षों के बाद अमेरिका के लोग भारत के बारे में आज क्या सोचते होंगे ?   .
कोई आयडिया ?
मैंने सुना है कि अब सिर्फ सपेरों का देश नहीं माना जाता। 

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