ऊर्जा बचत के प्रति जागरुक तीन बड़ी हस्तियों का
जिक्र करना चाहता हूं। जवाहरलाल नेहरू, कर्पूरी ठाकर और आई.पी.एस. अफसर सुधीष्ठ नारायण सिंह।
कर्पूरी जी से शुरु करता हूं। 1972-73 की बात है। तब मैं राजनीतिक कार्यकत्र्ता की हैसियत से कर्पूरी जी का निजी सचिव था।
पटना के वीरचंद पटेल पथ के एक बंगले में वे रहते थे।
बड़ा सा हाॅल था।कई पंखे थे।
कर्पूरी जी जब कभी कहीं से आते थे तो पहला काम यही करते थे।अनावश्यक रुप से जल रही बत्तियों और चल
रहे पंखों को खुद ही आॅफ करते थे।
वे वहां मौजूद किसी को भी ऐसा करने को कह सकते थे।
पर वे खुद राह दिखाना चाहते थे।
बिहार काॅडर के आई.पी.एस.अफसर के एक सहकर्मी के अनुसार वे बत्ती -पंखा कौन कहे,अनावश्यक चल रहे नल को भी खुद ही बंद करते थे।
अब जवाहरलाल जी के बारे में।
पंडित जी नहीं चाहते थे कि तीनमूत्र्ति भवन के उनके सोने के कमरे में ए.सी.चले।
दिल्ली की गर्मी में उनके सहकर्मी एक बीच का रास्ता निकालते थे।
प्रधान मंत्री के आॅफिस से लौटने के समय से करीब तीन-चार घंटे पहले उनके सहकर्मी उनके कमरे की ए.सी.चला देते थे।
और उनके पहुंचने के आधा घंटा पहले ए.सी.आॅफ कर देते थे।
सहकर्मी चाहते थे कि पंडित जी की बात भी रह जाए और उन्हें भीषण गर्मी भी न झेलनी पड़े।
जिक्र करना चाहता हूं। जवाहरलाल नेहरू, कर्पूरी ठाकर और आई.पी.एस. अफसर सुधीष्ठ नारायण सिंह।
कर्पूरी जी से शुरु करता हूं। 1972-73 की बात है। तब मैं राजनीतिक कार्यकत्र्ता की हैसियत से कर्पूरी जी का निजी सचिव था।
पटना के वीरचंद पटेल पथ के एक बंगले में वे रहते थे।
बड़ा सा हाॅल था।कई पंखे थे।
कर्पूरी जी जब कभी कहीं से आते थे तो पहला काम यही करते थे।अनावश्यक रुप से जल रही बत्तियों और चल
रहे पंखों को खुद ही आॅफ करते थे।
वे वहां मौजूद किसी को भी ऐसा करने को कह सकते थे।
पर वे खुद राह दिखाना चाहते थे।
बिहार काॅडर के आई.पी.एस.अफसर के एक सहकर्मी के अनुसार वे बत्ती -पंखा कौन कहे,अनावश्यक चल रहे नल को भी खुद ही बंद करते थे।
अब जवाहरलाल जी के बारे में।
पंडित जी नहीं चाहते थे कि तीनमूत्र्ति भवन के उनके सोने के कमरे में ए.सी.चले।
दिल्ली की गर्मी में उनके सहकर्मी एक बीच का रास्ता निकालते थे।
प्रधान मंत्री के आॅफिस से लौटने के समय से करीब तीन-चार घंटे पहले उनके सहकर्मी उनके कमरे की ए.सी.चला देते थे।
और उनके पहुंचने के आधा घंटा पहले ए.सी.आॅफ कर देते थे।
सहकर्मी चाहते थे कि पंडित जी की बात भी रह जाए और उन्हें भीषण गर्मी भी न झेलनी पड़े।
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