यातायात नियमों के उल्लंघन पर जुर्माने की रकम में भारी वृद्धि की जरुरत महसूस की गई थी।
नतीजतन जुर्माना बढ़ाया गया। काफी बढ़ा दिया गया। सरकार को लगा कि कम बढ़ाने से काम नहीं चलेगा। इस कदम का आम तौर पर स्वागत ही हुआ है। उसी तरह भ्रष्टाचारियों के लिए भी सजा में बढ़ोत्तरी जरुरी मानी जा रही है। ट्रैफिक नियम भंग पर जुर्माने में हाल की बढ़ोत्तरी से पहले वाले जुर्माने का कोई असर नहीं हो रहा था। 2016 में देशभर में सड़क दर्घटनाओं में करीब डेढ़ लाख लोग मरे। उसी अवधि में बिहार में करीब 5 हजार लोगों की जानें गईं।
याद रहे कि इस देश में भ्रष्टाचार के आरोप में दोषियों के लिए सामान्यतः तीन से सात साल तक की कैद की सजा का अभी प्रावधान है। वह सजा बुरी तरह नाकाफी साबित हो रही है। पर, चीन में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप साबित हो जाने के बाद फांसी तक की सजा का प्रावधान है।
हर साल डेढ़ लाख लोगों की जान जाने पर तो यातायात उल्लंघन के मामले में यहां सजा बढ़ा दी गई। पर, सवाल है कि भ्रष्टाचार के कारण प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हर साल कितने लोगों की जानें जाती हैं ? निश्चित तौर पर डेढ़ लाख से काफी अधिक लोगों की जानें जाती हैं।
नकली और मिलावटी दवाओं के कारण बड़ी संख्या में लोगों की जानें जाती हैं। मिलावटी खाद्य व भोज्य पदार्थ और भी अधिक लोगों की जानें लेते हैं। भ्रष्टाचार के कारण मौतों के और भी उदाहरण हैं। संबंधित सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत के बिना इतने बडे़ पैमाने पर नकली सामान तैयार हो ही नहीं सकते जितने अपने देश में तैयार होते हैं।
इस देश में अब कितने ऐसे सरकारी दफ्तर बचे हैं जहां बिना रिश्वत के लोगों के काम हो जाते हैं? यदि भ्रष्टाचारियों के लिए सजा बढ़ा दी जाए तो उसका सकारात्मक असर यातायात पर भी पड़ेगा।
आर्यभट्ट का भव्य स्मारक
इधर आर्यभट् के जन्मस्थान और शोधस्थल पर उनका स्मारक बनाने के लिए भी बिहार सरकार सचेष्ट रही है। ताजा खबर है कि पटना के उपनगर खगौल में आर्यभट्ट का भव्य स्मारक बनाने का प्रस्ताव है। आर्यभट्ट का जन्म पटना में ही हुआ था। पटना का तब नाम कुछ और था। संभवतः खगौल के मोतीचौक पर आर्यभट्ट की एक मूर्ति लगेगी।
एक सामाजिक कार्यकर्ता के अनुसार खगौल को आसपास के मुख्य मार्गों से जोड़ा जाना है।आसपास के इलाकों को विकसित किया जाना है। इसके लिए खगौल और एन.एच.-98 के बीच की सड़क के चौड़ीकरण का प्रस्ताव है। यह सड़क अभी पतली है जो नवरतनपुर और कोरजी होते हुए चकमुसा के पास एन.एच.-98 से मिलती है। आर्यभट्ट की प्रतिष्ठा के अनुरुप किसी स्मारक की लंबे समय से जरुरत महसूस की जाती रही है।
बहाल हों ऊर्जा बचत सेवक
यह आम दृश्य है ! सरकारी कार्यालय खाली है, किन्तु बत्तियां जल रही हैं और पंखे चल रहे हैं।
जो सरकारी सेवक सबसे अंत में कार्यालय से निकला, उसका कर्तव्य था कि वह बत्ती -पंखा बंद कर देता। पर, अधिकतर सेवक ऐसा नहीं करते। नतीजतन बिहार में मंत्रियों, अफसरों और कर्मचारियों की सुविधा के लिए चलने वाले बत्ती, पंखे, एसी और बिजली के अन्य उपकरणों पर हर साल 12 सौ करोड़ रुपए खर्च होते हैं। इसे कम करके छह सौ करोड़ रुपए आसानी से किया जा सकता है। पर यह काम भला कौन करेगा ?
इसलिए क्यों नहीं हर सरकारी बिल्डिंग के लिए ‘ऊर्जा बचत कर्मचारी’ की बहाली हो। उसका काम सिर्फ यही हो कि वह घूम -घूम कर यह देखता रहे कि कहां के कमरे -हाॅल में अकारण बिजली का उपयोग हो रहा है।
और अंत में
वैसा काम उससे पहले या बाद में किसी ने नहीं किया। राघव बाबा ने कुछ बच्चों को जुटाया।
एक रिक्शे पर लाउड स्पीकर रखवाया। बच्चों का जुलूस निकला। आगे- आगे राघव बाबा। वे माइक पर खुद नारा लगाने लगे। ‘राघव बाबा जिंदावाद !’ ‘इस क्षेत्र की जनता मुर्दाबाद !!’
राघव बाबा का यह नारा बच्चे दुहराते जाते थे। सड़क के किनारे खड़े दर्शकों का खूब मनोरंजन हुआ। राजनीतिक हलकों में दशकों तक इस रोचक घटना की चर्चा रही। हालांकि आज के पराजित लोग भी अपनी या अपने मनपसंद दल की हार की खीझ कुछ दूसरे तरीकों से निकालते रहते हैं।
(13 सितंबर 2019--कानोंकान-प्रभात खबर-बिहार-से)
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