सन 1970 में समाजवादी आंदोलन के सिलसिले में नई दिल्ली के संसद भवन के पास हुए प्रदर्शन में मैं भी था। गिरफ्तारियां हो गयीं। अनेक नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ मैं भी तिहाड़ जेल पहुंच गया। उस समय जेल जाने वालों में मधु लिमये, राज नारायण, जनेश्वर मिश्र, किशन पटनायक, शिवानंद तिवारी, राजनीति प्रसाद, राम नरेश शर्मा, देवेंद्र कुमार सिंह सहित अनेक छोटे- बड़े नेता-कार्यकर्ता थे।
कुछ ही दिनों तक जेल में रहना पड़ा। रिहा किया तो मुझे छपरा तक का मुफ्त रेल टिकट के लिए जेल प्रशासन ने एक संबंधित कागज भी दिया। दिल्ली स्टेशन के काउंटर पर उस कागज को दिखाने पर मुफ्त में टिकट भी मिल गया। मेरे साथ छपरा से देवेंद्र जी थे। बाद में वे बिहार सरकार के जनसंपर्क विभाग के अफसर बने थे। अब नहीं रहे।
तब कड़ाके की ठंड थी। संभवतः दिसंबर का महीना था। वह भी दिल्ली की ठंड। फिर भी जेल में नेता जी यानी राज नारायण जी कंबल ओढ़े सुबह-सवेरे सभी बंदियों के पास जाते थे। सबका हाल चाल पूछते थे। किसे चाय मिली या नहीं, इसका वे बड़ा ध्यान रखते थे। मैंने महसूस किया कि व्यक्तिगत रूप से कार्यकर्ताओं का ध्यान रखने में राज नारायण जी अन्य बड़े नेताओं से बहुत अलग थे।
वैसे जेल में हमें कोई कष्ट नहीं हुआ। छात्र व युवा ही अधिक थे। सबका मनोबल ऊंचा था। जो वार्ड मिला था, वह छात्रावास जैसा ही था। एक कमरे या यूं कहिए कि सेल में तीन लोगों के रहने की व्यवस्था थी। एक सीमेंट का तख्त था। उस कमरे में दो निवाड़ की खाट बाहर से लाकर लगा दी जाती थी। एक मोटा तोशक और एक मोटी रजाई। उसी में शौचालय भी था।
सामने खुला मैदान था।
जाड़े के दिन में मैदान की घास पर हम धूप का आनंद लेते थे। शिवानंद जी के पास एक रेडियो भी था। वे घास पर लेटकर अपने सीने पर रेडियो रख लेते थे और न्यूज सुनते रहते थे। बिस्किट के साथ सुबह -सुबह चाय। उसके बाद अच्छे गुणवत्ता वाला नाश्ता। भोजन आदि। हां, फाइव स्टार भोजन-नाश्ता तो नहीं ही था, जिसकी मांग आज के ‘फाइव स्टार’ नेता करते हैं। भले वे भ्रष्टाचार के आरोप में ही जेल क्यों नहीं गए हों।
आज के पी.चिंदबरम और हमारी जेल यात्रा का अंतर समझने के लिए एक उदाहरण सुनिए।
जेपी आंदोलन में कई जेल यात्राएं कर चुके एक नेता चारा घोटाले में जेल गए तो संवाददाता उनका हालचाल लेने पहुंच गया।
पूछा,
‘दोनों जेल यात्राओं में कैसा फर्क महसूस हो रहा है ?’
नेताजी ने कहा,
‘दुर मरदे ! कहां हम तब सीना तानकर जेल जाते थे और सीना तानकर निकलते थे। आज तो चोर बनाकर जेल भेज दिया। दोनों में फर्क आपको नहीं बुझा रहा है ?’
बेचारा चिदंबरम ! !
पता नहीं, वे कैसा महसूस कर रहे होंगे !
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