इस देश में तांगे हंै घोड़े के आगे !
------------------
कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने लिखा है कि
‘जैसे-जैसे कृषि आय बढ़ेगी तो ग्रामीण क्षेत्रों में मांग भी बढ़ेगी।
और, उससे आद्योगिक विकास का पहिया भी तेजी से घूमने लगेगा।
मंदी के दौर में मांग बढ़ाना एक बड़ी चुनौती है,जो केवल खेती से ही पूरी की जा सकती है।’
--दैनिक जागरण-10 सितंबर 2019
आजादी के तत्काल बाद से ही चैधरी चरण सिंह जैसे कुछ नेताओं और जानकार लोगों ने सरकारों से बार -बार कहा कि इस कृषि प्रधान देश में खेती के विकास के बिना उद्योग-धंधे नहीं बढ़ेंगे।
यानी, जब तक देश के अधिकतर लोगों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ेगी तब तक कारखाने के माल को खरीदेगा कौन ?
किन्तु हमारे अधिकतर स्वतंत्रता सेनानियों को तो सफेद पोश लोगों के लिए जल्द से जल्द रोजगार पैदा करने थे।
आरोप है कि अपवादों को छोड़कर उस रोजगार में उनके बाल-बच्चे और जाति- बिरादरी व लगुए -भगुए को लग जाना था।उनके अपने लोग कहां मिट्टी में अपने हाथ गंदा करने जाते !
इसीलिए बड़े -बड़े सार्वजनिक उपक्रम खड़े किए गए।
जो होना था,वह हुआ।धीरे -धीरे अधिकतर सार्वजनिक उपक्रम ध्वस्त होते चले गए।
यदि अब भी हमारी सरकारें कृषि आधारित उद्योगों के जाल बिछाए तो खेती मुनाफे का काम हो जाएगा।किसानों की क्रय- शक्ति बढ़ेगी।फिर तो कारखानों के माल भी बिकेंगे।यानी कारखाने विकसित होंगे।
यानी आजादी के तत्काल बाद ‘तांगे को घोड़े से आगे खड़ा कर दिया गया।उसका खामियाजा आज भी यह देश भुगत रहा है।
------------------
कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने लिखा है कि
‘जैसे-जैसे कृषि आय बढ़ेगी तो ग्रामीण क्षेत्रों में मांग भी बढ़ेगी।
और, उससे आद्योगिक विकास का पहिया भी तेजी से घूमने लगेगा।
मंदी के दौर में मांग बढ़ाना एक बड़ी चुनौती है,जो केवल खेती से ही पूरी की जा सकती है।’
--दैनिक जागरण-10 सितंबर 2019
आजादी के तत्काल बाद से ही चैधरी चरण सिंह जैसे कुछ नेताओं और जानकार लोगों ने सरकारों से बार -बार कहा कि इस कृषि प्रधान देश में खेती के विकास के बिना उद्योग-धंधे नहीं बढ़ेंगे।
यानी, जब तक देश के अधिकतर लोगों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ेगी तब तक कारखाने के माल को खरीदेगा कौन ?
किन्तु हमारे अधिकतर स्वतंत्रता सेनानियों को तो सफेद पोश लोगों के लिए जल्द से जल्द रोजगार पैदा करने थे।
आरोप है कि अपवादों को छोड़कर उस रोजगार में उनके बाल-बच्चे और जाति- बिरादरी व लगुए -भगुए को लग जाना था।उनके अपने लोग कहां मिट्टी में अपने हाथ गंदा करने जाते !
इसीलिए बड़े -बड़े सार्वजनिक उपक्रम खड़े किए गए।
जो होना था,वह हुआ।धीरे -धीरे अधिकतर सार्वजनिक उपक्रम ध्वस्त होते चले गए।
यदि अब भी हमारी सरकारें कृषि आधारित उद्योगों के जाल बिछाए तो खेती मुनाफे का काम हो जाएगा।किसानों की क्रय- शक्ति बढ़ेगी।फिर तो कारखानों के माल भी बिकेंगे।यानी कारखाने विकसित होंगे।
यानी आजादी के तत्काल बाद ‘तांगे को घोड़े से आगे खड़ा कर दिया गया।उसका खामियाजा आज भी यह देश भुगत रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें